स्मार्ट सिटी विकसित करने के लिए उत्तराखंड सरकार को केंद्र सरकार से 22 करोड रुपए प्राप्त हुए। लेकिन स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के अंतर्गत न तो सरकार ने कोई प्रोजेक्ट प्लान बनाया और ना ही कोई टेंडर की कार्यवाही अभी तक शुरू की है। आप अंदाजा लगा सकते हैं डबल इंजन सरकार की उत्तराखंड में क्या स्पीड है !
पहले सचिव दिलीप जावलकर को स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट का सीईओ बनाया गया था, लेकिन इस दिशा में एक इंच भी काम आगे नहीं बढ़ पाया। अब उनसे स्मार्ट सिटी का दायित्व वापस लेकर शैलेश बगौली को सौंपा गया है। पिछले दिनों पार्लियामेंट में एक सवाल का जवाब देते हुए केंद्रीय आवास एवं शहरी विकास मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने बताया कि उत्तराखंड को दिए गए 22 करोड में से धेले भर का काम नहीं हो पाया है। काफी लंबे समय तक तो स्मार्ट सिटी का काम शहरी विकास विभाग और नगर निगम के अंतर्गत कार्य विभाजन तथा आपसी तालमेल ना होने के कारण लटका रहा।
पहले चयन नही, अब काम नही
इतना जरूर है कि पिछली सरकार में एमडीडीए के तत्कालीन वीसी मीनाक्षी सुंदरम ने देहरादून को स्मार्ट सिटी में चयनित किए जाने के लिए जी तोड़ मेहनत की थी लेकिन तब केंद्र में भाजपा तथा राज्य में कांग्रेस सरकार होने के कारण राजनीतिक कारणों से देहरादून को स्मार्ट सिटी में चयनित नहीं किया गया था।
राज्य में भाजपा की सरकार बनते ही देहरादून को स्मार्ट सिटी के लिए चयनित कर लिया गया और 22 करोड रुपए भी अबमुक्त कर दिए गए लेकिन सरकार बनते ही मीनाक्षी सुंदरम को एमडीडीए से हटा दिया गया। उसके बाद से न तो एमडीडीए का कामकाज पटरी पर आ पाया और ना ही स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट की किसी ने सुध ली।
केंद्रीय मंत्री ने यह खुलासा भी किया कि दूसरे हिमालय राज्य हिमाचल प्रदेश ने 8.20 करोड़ के दो टेंडर स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के अंतर्गत जारी किए हैं।
अब अतिक्रमण हटाओ अभियान का बहाना
अधिकारियों का कहना है कि अतिक्रमण हटाओ अभियान के कारण स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट को फिलहाल टाल दिया गया है। सवाल यह है कि स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट डेढ़ साल से गतिमान है, जबकि अतिक्रमण हटाओ अभियान तो मात्र एक माह पहले ही शुरू हुआ है। हालांकि गढ़वाल कमिश्नर शैलेश बगौली कहते हैं कि उन्हें स्मार्ट सिटी के लिए काफी देर में चुना गया है फिर भी इसकी डीपीआर आदि तैयार हो गई है और अगले महीने तक टेंडर आमंत्रित किए जाएंगे। हालांकि वह इस विषय में विस्तृत जानकारी नहीं दे पाए।
स्मार्ट सिटी के लिए आए 22 करोड रुपए पर हाथ तक नजर लगाने वाली सरकार अवैध बस्तियों को हटाए जाने के खिलाफ खुलकर हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ खड़ी हो गई और बाकायदा अध्यादेश तक ले आई। इससे स्पष्ट है कि सरकार ‘स्मार्ट सिटी’ नहीं बल्कि ‘स्लम सिटी’ की पैरोकार है।