नीरज उत्तराखंडी/उत्तरकाशी
हिमाचल, उत्तराखण्ड और कश्मीर सेब बागवानों ने अपनी कड़ी मेहनत से अपने-अपने राज्य का नाम सेब उत्पादन में रोशन कर रहें हैं, लेकिन उत्तराखंड सरकार और विभाग की लापरवाही और गैरजिम्मेदाराना रवैये के चलते सेब मंडी की स्थापना करना तो दूर समय पर काश्तकारों को फल पेटियां तक नहीं मिल पा रही है। उत्तराखंड के उत्तरकाशी तथा देहरादून के सेब उत्पादक क्षेत्र में बागवानों को समय पर सेब की पेटियां तक नसीब नहीं हो पा रही है । बागवानों को हिमाचल प्रदेश से मंहगी दरों पर बाजार से फल पेटियां खरीदने को मजबूर होना पड़ रहा है। हिमाचल प्रदेश के ट्रेडमार्क पर उत्तराखंड का सेब बिक रहा है। उत्तराखंड का सेब अपनी पहचान को तरस रहा है।
उत्तरकाशी के प्रमुख सेब उत्पादक क्षेत्र आराकोट बंगाण के कोठीगाङ के थुनारा,भुटाणू,किरोली,मैजणी,डा मटी,जाकटा,चींवा,डगोली,टिकोची, मोरी ब्लाक के फतेह पर्वत के दोणी,भितरी, सौड सांकरी, कोटगांव,पोखरी तथा नौगांव की श्योरी फल पट्टी, पुरोला के जरमोला धडोली, शिकारू, हर्षिल,गंगोत्री, जौनसार-बावर के कथियान, ओबरा सेरा, कूणा, बागी, रडू, मुन्धोल, प् यूनल आदि कई गाँव मे सेब का बम्पर उत्पादन हो रहा है।
देश की राजधानी दिल्ली सहित आगरा, कानपुर, सहारनपुर की मंडियों में उत्तरकाशी तथा देहरादून जिलों के सीमांत गाँव में उत्पादित सेब भले ही अपनी खुशबू और रंग बखूबी बिखेर रहे हैं लेकिन इसका सारा श्रेय यहाँ के मेहनतकश किसानों और बागवानों को जाता है। लेकिन सरकारी महकमे का ये हाल है कि समय पर फल पेटियां तक उपलब्ध नहीं करवा पाता है। कोठीगाङ, हर्षिल, कथियान, चकराता के सेब पूरे राज्य में प्रसिद्ध है लेकिन पौध संरक्षण और विपणन के उचित प्रबंध न होने के कारण बागवानों को उचित दाम नहीं मिलते। किसान मंडियों के आढतियो, ट्रक, यूटिलिटी, परिवहन मालिकों के जाल में फंसा हुआ है। उत्तराखंड में हिमाचल की तरह सघन सेब उत्पादक क्षेत्रों में मंडियां स्थापित नहीं है। यहाँ कोठीगाङ, हर्षिल, सांकरी, नौगांव, पुरोला, त्यूनी,जोशीमठ जहां सेब का उत्पादन निरन्तर बढ़ रहा है इन क्षेत्रों में लघु मंडियां क्लेकशन, ग्रेडिंग सेंटर तथा सेब फरवर्डिग केन्द्र स्थापित किये जाने की आवश्यकता है।
सेब उत्पादन से लाखों कारोबारियों को रोजगार मिलता है चाहे गत्ता उद्योग हो, आढती, सेब खरीदने वाली कम्पनियां हो चाहे दवाएं और उर्वरक बनाने वाली हो या ट्रांसपोर्ट कम्पनियां लेकिन सेब उत्पादन क्षेत्र में परेशानियां बढ़ रही है। मजदूर आसानी से नहीं मिल पा रहे हैं। मंहगाई की वजह से उत्पादन लागत कई गुना बढ़ गई है। कुदरत का कहर नगदी फसलों को नुकसान पहुंचा रहा है, रोग व्याधियों की अधिकता, छिड़काव के लिए पानी की समस्या, जंगली जानवरों और पक्षियों से फसल सुरक्षा की समस्या के चलते कई लोग बागवानी से मुँह मोड़कर दूसरे कार्य या नौकरियों की ओर रूख करना शुरू कर दिया है।बागवानों पर बाजार पूरी तरह हावी है। किसान लूट रहा है।
सरकार का ध्यान किसान बागवान की वजाय कारोबारियों, कम्पनियों और बिचौलियों के प्रोत्साहन में ज्यादा रहा है। सरकार को किसानों को उसकी उपज का सही दाम तथा सेब खरीदने वाली कम्पनियों पर दाम को लेकर दबाव बनाकर किसान नीति बनाकर सहयोग कर सकती है लेकिन बहरहाल ऐसा कुछ होता नहीं दिख रहा है। किसानों और बागवानों को उनकी हालत में छोड़ दिया गया है।
उत्तरकाशी के प्रमुख सेब उत्पादक क्षेत्र आराकोट बंगाण के कोठीगाङ के थुनारा,भुटाणू,किरोली,मैजणी,डा
देश की राजधानी दिल्ली सहित आगरा, कानपुर, सहारनपुर की मंडियों में उत्तरकाशी तथा देहरादून जिलों के सीमांत गाँव में उत्पादित सेब भले ही अपनी खुशबू और रंग बखूबी बिखेर रहे हैं लेकिन इसका सारा श्रेय यहाँ के मेहनतकश किसानों और बागवानों को जाता है। लेकिन सरकारी महकमे का ये हाल है कि समय पर फल पेटियां तक उपलब्ध नहीं करवा पाता है। कोठीगाङ, हर्षिल, कथियान, चकराता के सेब पूरे राज्य में प्रसिद्ध है लेकिन पौध संरक्षण और विपणन के उचित प्रबंध न होने के कारण बागवानों को उचित दाम नहीं मिलते। किसान मंडियों के आढतियो, ट्रक, यूटिलिटी, परिवहन मालिकों के जाल में फंसा हुआ है। उत्तराखंड में हिमाचल की तरह सघन सेब उत्पादक क्षेत्रों में मंडियां स्थापित नहीं है। यहाँ कोठीगाङ, हर्षिल, सांकरी, नौगांव,
सेब उत्पादन से लाखों कारोबारियों को रोजगार मिलता है चाहे गत्ता उद्योग हो, आढती, सेब खरीदने वाली कम्पनियां हो चाहे दवाएं और उर्वरक बनाने वाली हो या ट्रांसपोर्ट कम्पनियां लेकिन सेब उत्पादन क्षेत्र में परेशानियां बढ़ रही है। मजदूर आसानी से नहीं मिल पा रहे हैं। मंहगाई की वजह से उत्पादन लागत कई गुना बढ़ गई है। कुदरत का कहर नगदी फसलों को नुकसान पहुंचा रहा है, रोग व्याधियों की अधिकता, छिड़काव के लिए पानी की समस्या, जंगली जानवरों और पक्षियों से फसल सुरक्षा की समस्या के चलते कई लोग बागवानी से मुँह मोड़कर दूसरे कार्य या नौकरियों की ओर रूख करना शुरू कर दिया है।बागवानों पर बाजार पूरी तरह हावी है। किसान लूट रहा है।
सरकार का ध्यान किसान बागवान की वजाय कारोबारियों, कम्पनियों और बिचौलियों के प्रोत्साहन में ज्यादा रहा है। सरकार को किसानों को उसकी उपज का सही दाम तथा सेब खरीदने वाली कम्पनियों पर दाम को लेकर दबाव बनाकर किसान नीति बनाकर सहयोग कर सकती है लेकिन बहरहाल ऐसा कुछ होता नहीं दिख रहा है। किसानों और बागवानों को उनकी हालत में छोड़ दिया गया है।