आप लोगों ने यह लोकप्रिय गजल तो सुनी ही होगी-
” ना उम्र की सीमा हो, ना जाति का हो बंधन।
जब प्यार करे कोई, तो देखे केवल मन।।”
आजकल सरकार को भी एक ऐसे (कुल”पति“) की तलाश है। उसके लिए जो विज्ञापन निकला है, उसका मजमून कुछ ऐसा ही है,- ना उम्र की सीमा हो ना शैक्षिक योग्यता का हो बंधन।
जब कुलपति बने कोई तो देखे केवल धन।”
जी हां आजकल सरकार भरसार विश्वविद्यालय के लिए एक ऐसा कुलपति तलाश रही है, जिसके लिए बाकायदा दो-दो बार “मेट्रोमोनियल” प्रकाशित किया जा चुका है।
जिसमें कहीं भी ना तो अभ्यर्थी की शैक्षिक योग्यता का जिक्र किया गया है और ना ही उम्र का।
भरसार विश्वविद्यालय के लिए जून में जो विज्ञापन निकाला गया था उसके लिए 44 आवेदन आए। 2 बार सर्च कमेटी की बैठक हो चुकी है लेकिन नतीजा शून्य रहा।
लिहाजा जुलाई में फिर से वही विज्ञापन दोबारा निकाला गया। दूसरे विज्ञापन में एक अक्षर का भी अंतर नहीं किया गया। अब इस विज्ञापन पर यह सवाल खड़े हो रहे हैं कि जब पिछले महीने 44 आवेदन आए थे और उसमें पांच-छह आवेदन तो ऐसे अभ्यर्थियों ने किए थे जो वर्तमान में भी किसी न किसी जगह कुलपति के पद पर तैनात हैं।
सवाल यह है कि जब 1 महीने पहले 44 आवेदनों में से एक भी अभ्यर्थी चुनने लायक नहीं लगा तो फिर 1 महीने बाद नया अभ्यर्थी कहां से आ जाएगा !
इस बात की आशंका है कि सरकार ने यह कार्य अपने किसी चहेते के इंतजार में किया है। सर्च कमेटी की बैठक दो बार हो चुकी है और बेनतीजा रही। अब 14 सितंबर को सर्च कमेटी की बैठक रखी गई है।
मजेदार बात यह भी है कि परंपरा के तौर पर यह एक स्थापित मान्यता है कि उसी राज्य का वाइस चांसलर उसी राज्य में दूसरी यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर की सर्च कमेटी में नहीं हो सकता, किंतु सर्च कमेटी में एक वाइस चांसलर भी है।
भरसार एक एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी है। इसकी सर्च कमेटी में कम से कम एक विशेषज्ञ तो एग्रीकल्चर क्षेत्र का विशेषज्ञ होना ही चाहिए था, किंतु ऐसा नहीं हुआ। इस सर्च कमेटी में एक यूनिवर्सिटी का नॉमिनी है वह भी नौकरशाह आईएएस सैलरी पांडेय है सरकार की नॉमिनी के तौर पर एक वीसी और एक पूर्व ब्यूरोक्रेट है।
यूनिवर्सिटी एक्ट तथा यूजीसी के रेगुलेशन के अनुसार उत्तराखंड में कुलपति के लिए 65 साल से बड़ा व्यक्ति नहीं होना चाहिए लेकिन नए कुलपति की तलाश संभवत: ऐसे व्यक्ति के रूप में की जा रही है जो यह तय आयु सीमा पार कर चुका है। इसीलिए विज्ञापन में उम्र सीमा का कोई उल्लेख नहीं किया गया।
वर्तमान में उत्तराखंड के आधा दर्जन विश्वविद्यालयों में पूर्णकालिक वाइस चांसलर नहीं है। चार विश्वविद्यालय तो उच्च शिक्षा के हैं। एक तकनीकी विश्वविद्यालय है। पंतनगर यूनिवर्सिटी को तो 2010 से कोई पूर्णकालिक कुलपति मिला ही नहीं।
कल कुलपति के लिए सर्च कमेटी की बैठक में जो नाम ही तय किया गया है, वह पर्वतजन के सूत्रों के अनुसार पूर्व ब्यूरोक्रेट डीके कोटिया का है। सवाल यह है कि आखिर विश्वविद्यालयों को रिटायर हो चुके ब्यूरोक्रेट ही क्यों चाहिए ! यह शिक्षा क्षेत्र से जुड़ा कोई बड़ा और प्रतिष्ठित नाम क्यों नहीं हो सकता !
पर्वतजन की जानकारी के अनुसार पंतनगर विश्वविद्यालय तथा भरसार विश्वविद्यालय कुलपति की नियुक्ति के लिए जो सर्च कमेटी बनी है, ऐसा लगता है कि सर्च कमेटी के सदस्य ही दोनों जगह कुलपति के पद आपस में बांट लेंगे। पंतनगर विश्वविद्यालय की सर्च कमेटी का एक सदस्य भरसार में कुलपति बन सकते हैं तथा भरसार विश्वविद्यालय की सर्च कमेटी के सदस्य पंतनगर विश्वविद्यालय में कुलपति बन सकते हैं।
यदि ऐसा हुआ तो यह कुछ कुछ ऐसा ही होगा कि जैसे अपने बेटे बेटियों के लिए जीवनसाथी की तलाश निकले बूढ़े अपने लिए ही जीवनसंगिनी तलाश कर लौट आएं।