उत्तराखंड में हरिद्वार के खनन उपनिदेशक ने ई टेंडरिंग के दौरान एक डिफॉल्टर बोलीदाता को उसकी धरोहर राशि लौटा कर विभाग को एक करोड रुपए का चूना लगा दिया है।
जब मामला संज्ञान में आया तो उसे मात्र कारण बताओ नोटिस जारी करके इतिश्री कर दी गई। यह मामला 15 मार्च 2018 का है।
गौरतलब है कि खनन विभाग में हरिद्वार जिले में एक उपखनिज लॉट के लिए ई टेंडर निकाला था। भगवानपुर तहसील के दौलतपुर में 22.585 हेक्टेयर में एक खनन के लाॅट के लिए टेंडर आमंत्रित किए गए थे।
इसके लिए तीन सबसे ऊंची बोली लगाने वालों मे से पहले बोली दाता ने यह लॉट लेने से मना कर दिया तो उसकी धरोहर राशि जप्त कर ली गई।
फिर दूसरे नंबर वाले देहरादून के प्रणव रस्तोगी को यह लॉट आवंटित किया गया था। 3 अप्रैल 2018 को विभाग ने प्रणव रस्तोगी से तय रकम 31.16 करोड रुपए का 10% राशि के रूप में 3.1 करोड़ रुपए और इससे संबंधित मूल दस्तावेज जमा करने को कहा।
लेकिन उसने तय समय में ना तो मूल दस्तावेज विभाग में जमा कराए और ना ही लॉट लेने में कोई दिलचस्पी दिखाई।
इस पर खनन निदेशक विनय शंकर पांडे ने 26 अप्रैल 2018 को आदेश जारी किया था कि रस्तोगी की धरोहर राशि 9,850 225 रुपए जप्त कर लिए जाएं।
लेकिन हरिद्वार के उप निदेशक दिनेश कुमार ने यह धरोहर राशि बोलीदाता रस्तोगी को वापस लौटा दी। मामला संज्ञान में आने पर विनय शंकर पांडे ने दिनेश कुमार को कारण बताओ नोटिस जारी किया है।
अहम सवाल यह है कि जब पहले नंबर के सबसे ऊंची बोली लगाने वाले की धरोहर राशि जप्त कर ली गई थी तो दूसरे नंबर वाले के लाॅट लेने से इंकार करने पर उसकी धरोहर राशि वापस कैसे कर दी गई !
जाहिर है कि यह दिनेश कुमार की मिलीभगत थी। खनन व्यवसाइयों से इसी तरह की मिलीभगत के कारण विभाग को हर माह अरबों का चूना लग रहा है।
देखना यह है कि दिनेश कुमार के खिलाफ कुछ कार्यवाही भी होती है या फिर सिर्फ कारण बताओ नोटिस देकर छोड़ दिया जाता है।
पर्वतजन के सूत्रों के अनुसार खनन व्यवसायी तथा कुमार के खिलाफ कार्यवाही न करने को लेकर मुख्यमंत्री कार्यालय से जुड़े एक बड़े अफसर का दबाव है। यह अफसर मुख्यमंत्री की विधानसभा क्षेत्र में अवैध खनन का पूरा कारोबार संभालता है।