मनीष
उत्तराखंड सरकार ने महात्मा गांधी की 150 वीं जयंती के अवसर पर सजा भुगत रहे 8 कैदियों को रिहा करने के आदेश दिए हैं। लेकिन इसमें से अधिकांश कैदी ऐसे हैं जो अपनी सजा का काफी बड़ा हिस्सा जेल में काट चुके हैं। अब उनकी रिहाई के लिए मात्र कुछ दिन या एक दो महीने ही शेष हैं।
ऐसे में केवल एक दस्तूर निभाने भर के लिए ऐसे कैदियों को छोड़े जाने का क्या तुक है ! और इससे कैदियों को क्या फायदा होगा ! तथा सरकार को क्या फायदा होगा ! यह अपने आप में चर्चा का विषय बन गया है।
उदाहरण के तौर पर हरिद्वार के मोंटी नामक एक अपराधी को 1 साल की सजा हुई है और वह 11 महीने 26 दिन की सजा काट चुका है। ऐसे में सरकार चंद दिन पहले उसे रिहाई का आदेश सुनाकर किस तरह अपनी पीठ थपथपाना चाहती है यह समझा जा सकता है !
उसी तरह से देहरादून के गुड्डू को भी 3 साल की सजा सुनाई गई थी और वह 2 साल 11 माह 16 दिन की सजा काट चुका है।
यही नहीं 1 साल की सजा भुगत रहे विकासनगर के कुलदीप को भी जेल में 11 महीने 11 दिन हो गए हैं। डेढ़ साल का सजायाफ्ता ऋषिकेश निवासी संजय जेल में 1 साल 4 महीने और 13 दिन काट चुका है। वहीं ऋषिकेश का ही सोनू भी 1 साल की सजा सुनाए जाने के बाद 10 महीने 11 दिन जेल में रह चुका है।ऋषिकेश की ही शालू 6 महीने की सजा के 4 महीने 11 दिन जेल में बिता चुकी है।
अब भला चंद दिन पहले इनकी रिहाई के लिए कितना होमवर्क किया गया होगा, कितनी सरकारी मशीनरी काम पर लगी होगी, कितनी फाइलें ऊपर नीचे दौड़ी होंगी और अब हासिल पाई क्या है ! यह आप समझ सकते हैं।
इस तरह के फिजूल के कार्यों में पूरी सरकारी मशीनरी को झोंक देने से सरकार को भी कोई खास फायदा नहीं होता। उल्टा अन्यत्र व्यस्तता के कारण आवश्यक कार्य जरूर छूट जाते हैं।
गृह विभाग के प्रमुख सचिव आनंद वर्धन ने सोमवार को इस प्रकार के आदेश जारी किए हैं।
गौरतलब है कि यह आदेश भारत सरकार के निर्देश पर जारी किए गए थे। इन कैदियों को 5 अक्टूबर को जेल की चारदीवारी से बाहर कर दिया जाएगा।