दून के इन जनऔषधि केन्द्रों पर बिक रही है ब्रांडेड दवा!
मोदी कमाई के लिये जेनरिक के नाम पर ब्रांडेड का खेल?
ऐसे कैसे मिलेगा जैनरिक दवाओं को बढ़ावा?
सस्ती दवा के दावे हवा हैं यहां…
देहरादून। केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार ने देशवासियों को सस्ती दरों पर दवा उपलब्ध करवाने के उद्देश्य से देशभर में जनऔषधि केंद्र खोले। खुलने के बाद कुछ जन औषिधि केन्द्र तो अच्छा कार्य कर रहे हैं वहीं कुछ सरकार की योजना पलीता लगाते नजर आ रहे हैं। बडी संख्या में जनऔषधि केन्द्रों की शिकायत मिल रही है वह जेनरिक की जगह मरीजों को ब्रांडेड दवा बेच रहे हैं। मरीज से लेकर डाॅक्टरों द्वारा शिकायतों के वावजूद कार्यवाही के नाम पर खानापूर्ति ही नजर आती है। केंद्र सरकार ने जनऔषधि केंद्र खोलकर आम जनता को सस्ती दवा उपलब्ध करवाने का दावा किया था तो माना जा रहा था कि न सिर्फ इससे जबरदस्त कमाई का धंधा बन चुके इस व्यवसाय पर लगाम लगेगी बल्कि डॉक्टरों, मेडिकल कंपनियों की सांठगांठ भी टूटेगी। लेकिन इन जनऔषधि केंद्रों की हालत देखकर साफ लगता है कि ऐसा कुछ नहीं हुआ है। उल्टा अब कुछ जनऔषधि केन्द्र भी मरीजों को ब्रांडेड दवा बेचते हुए नजर आ रहे हैं। जनऔषधि केन्द्रों में 50 प्रतिशत से भी कम दरों पर दवा उपलब्ध होने के साथ ही 600 प्रकार की दवा और 154 से ज्यादा सर्जिकल आइटम होने का दावा किया गया लेकिन पड़ताल में कई केन्द्रों पर यह दावे गलत साबित हुए हैं।
उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में भी कई जनऔषधि केन्द्रों का यही हाल है। प्रदेश के दूसरे बड़े अस्पताल कोरोनेशन यानि राजकीय दीनदयाल उपाध्याय चिकित्साल में रोज करीब 1000 से 1500 मरीज आते हैं। जाहिर है उन्हें दवाओं की भी जरूरत होती है और सभी दवाएं अस्पताल से उपलब्ध नहीं हो पातीं।
शायद इसीलिए कोरोनेशन अस्पताल में जनऔषधि केन्द्र खोला गया था लेकिन यहां आकर भी मरीजों को निराशा ही हाथ लगती है। कई मरीजों को यहां डॉक्टर तो मिल जाते हैं लेकिन दवा न अस्पताल से मिलती है और न ही जनऔषधि केंद्र से। इनमें से कुछ खुशनसीब भी होते हैं जिन्हें अस्पताल या जनऔषधि केन्द्र से दवा मिल जाती है।
लेकिन गजब तब होता है जब डाॅक्टर की लिखी जेनरिक दवा की जगह जनऔषधि केंद्र के कर्मचारी ब्रांडेड दवा पकड़ा देते हैं। कोरोनेशन अस्पताल पहुंचे मरीज सूरज मणि जब जनऔषधि केंद्र से दवा लेकर डाॅक्टर विजय सिंह पंवार के पास जांच कराने पहुंचे तो डाॅक्टर साहब दवाई देखकर हैरान में पड़ गए। उन्होने कहा कि दवाई कहां से ली। मरीज सूरज मणि ने कहा कि जनऔषधि केंद्र से। डाॅक्टर सहाब ने कहा मैने तो जेनेरिक लिखी है उन्होंने ब्रांडेड दवा क्यों दे दी। डाॅक्टर विजय सिंह पंवार मरीज को लेकर सीएमएस डाॅक्टर बीसी रमोला के पास पहुंचे। जहां उन्होंने जनऔषधि केंद्र की शिकायत करते हुए मरीजो को जेनरिक के नाम पर ब्रांडेड दवा बेचने का आरोप लगाया। सीएमएस रूम में मौजूद डाॅ एनएस बिष्ट ने भी डाॅक्टर पंवार का समर्थन करते हुए कहा कि उनके सामने भी इस तरह की कई शिकायते आ चुकी हैं। इसलिए इस प्रकरण पर कड़ी कार्यवाही होनी चाहिए। ताकि भविष्य में इस तरह की पुनरावृत्ति न हो।
मरीज और डाॅक्टरों की शिकायत का संज्ञान लेते हुए सीएमएस डाॅक्टर बीसी रमोला ने जनऔषधि केंद्र की फार्मासिस्ट आरती को मौके पर बुलाया। और जेनरिक के नाम पर ब्राडेड दवा देने को लेकर जवाद तलब किया। सीएमएस बी सी रमोला ने कड़ी चेतावनी देते हुए कहा कि भविष्य में इस तरह का मामला यदि दुबारा सामने आया तो कड़ी कार्यवाही की जायेगी।
वहीं जनऔषधि केंद्र की फार्मासिस्ट आरती ने कहा कि उनके यहां जेनरिक दवायें यही मिलती है। मरीज को ब्रंाडेड दवा देने के नाम पर उन्होंने कहा कि यह दवा भी मरीज को कम कीमत पर दी गई थी।
नेहरू ग्राम जनऔषधि केन्द्र पर भी आ चुका है इस तरह का मामला सामने
राजधानी के नेहरुग्राम में जनऔषधि केंद्र सरकारी डिस्पेंसरी में भी कई बार जेनरिक के बदले ब्राडेड दवा देने और बिल न देने की शिकायत भी मरीज डाॅक्टरों से कर चुके हैं। लेकिन कार्यवाही के नाम पर यहां भी कुछ नहीं हुआ।
अपनी बीमारी के चलते परेशान मरीज या जागरूकता न होने के चलते लोग मामले की शिकायत डाॅक्टर से कर कर पल्ला झांड लेते हैं। यदि मरीज जागरूक हों और जो भी दवाई मरीज जनऔषधि केन्द्र से लें उसका बिल मांगे तो यह केन्द्र इस तरह का झोलमाल करने से बचेंगे। लेकिन आम जनता के जागरूक न होने की वजह ये पक्का बिल न लेकर थोड़े से पैसे बचाने के चक्कर में इन केन्द्रों के हौंसले बुलंद हो जाते हैं और वह कई बार जेनरिक की जगह ब्रांडेड दवाओं को बेचने से भी परहेज नहीं करते।
दून अस्पताल में खुले जनऔषधि केन्द्र में नहीं मिलती कई दवायें
जनऔषधि केंद्र उत्तराखंड में महज खानापूर्ति करते नजर आ रहे हैं। न यहां सरकारी डॉक्टरों की लिखी दवाएं मिलती हैं और न ही सस्ती दवा उपलब्ध करवाने की कोई इच्छाशक्ति इन जनऔषधि केंद्रों में नजर आती है. जाहिर है दिन भर सरकारी अस्तपाल में धक्के खाने के बाद मरीज बाहर खुली निजी दवा की दुकानों से जेब कटवाने पर मजबूर हो रहे हैं। प्रदेश के सबसे बड़े अस्पताल में से एक दून अस्पताल में रोज करीब 2500 मरीज आते हैं. जाहिर है उन्हें दवाओं की भी जरूरत होती है और सभी दवाएं अस्पताल से उपलब्ध नहीं हो पातीं। शायद इसीलिए दून अस्पताल में जनऔषधि केन्द्र खोला गया था लेकिन यहां आकर भी मरीजों को निराशा ही हाथ लगती है। दून अस्पताल पहुंचे कई मरीजों को डॉक्टर तो मिल गए लेकिन दवा न अस्पताल से मिली और न ही जनऔषधि केंद्र से। जनऔषधि केंद्रों में दवाएं न मिलना ही समस्या बड़ी है। राजधानी देहरादून में इन जनऔषधि केंद्रों की हालत देखकर ऐसा लगता है कि यह जानबूझकर एक नाकाम किए जाने वाले प्रयोग का हिस्सा हैं।