अमर उजाला ने छुपाया आतंकी को एडमिशन देने वाले स्कूल का नाम। बीबीसी ने दिखाई कश्मीरियों की पिटाई की झूठी खबर तो द वायर पोर्टल ने भी दिखाई कश्मीरी छात्रों द्वारा खुद को कमरे में बंद करने की एक तरफा खबर। खड़े हुए सवाल
एक ओर पुलवामा आतंकी हमले मे सीआरपीएफ के वीरेंद्र राणा, मोहनलाल रतूड़ी और राजौरी में शहीद हुए मेजर चित्रेश बिष्ट की शहादत के गम में अभी पूरा उत्तराखंड और देश डूबा हुआ है वहीं मीडिया अपने अलग ही खेल में रमा हुआ है।
इस आतंकी हमले ने पाकिस्तान का चेहरा ही बेनकाब नहीं किया बल्कि मीडिया का चेहरा भी बेनकाब किया है।
कुछ दिन पहले ही उत्तराखंड के एक गांव की लड़कियों को वैलेंटाइन के लिए परफेक्ट बताने तथा वहां तक वायु तथा सड़क मार्ग से पहुंचने का रास्ता बताने वाली खबर छाप कर उत्तराखंडियों के निशाने पर आए अमर उजाला अखबार का एक और चेहरा बेनकाब हुआ है।
इससे ऐसा लगता है कि वाकई अमर उजाला में गंभीर संपादकीय दूरदृष्टि दोष उत्पन्न हो गया है। अमर उजाला अखबार ने आज 17 फरवरी को पेज नंबर 5 पर अगल बगल 2 खबरें प्रकाशित की हैं।
पहली खबर में कश्मीरी छात्र कैशर राशिद की देशद्रोही टिप्पणी के कारण निशाने पर आए प्रेम नगर देहरादून स्थित कॉलेज सुभारती मेडिकल का नाम प्रकाशित किया है तो वहीं बगल की एक दूसरी खबर में सुरक्षाबलों के हाथों मारा गया आतंकी शोएब लोन दून के जिस शिक्षण संस्थान में पढ़ा था, उस शिक्षण संस्थान का नाम लिखने के बजाय एक शिक्षण संस्थान लिखा है।
अल्पाइन इंस्टीट्यूट अभी भारी विज्ञापन देने वाला इंस्टीट्यूट है, जबकि आजकल सुभारती मेडिकल कॉलेज का दिवाला निकल गया है।
ऐसे भी अमर उजाला पर सवाल उठ रहा है कि अख़बार ने दिवाला निकल चुके कॉलेज का तो नाम छाप दिया लेकिन विज्ञापनों की संभावना वाले कॉलेज का नाम छुपा दिया।
जाहिर है कॉलेजों के नाम छापने छुपाने में “पिक एंड चूज” का खेल हुआ है। जबकि टाइम्स ऑफ इंडिया ने अपने पहले पन्ने पर कॉलेज का नाम खोलते हुए साफ-साफ लिखा है कि अहमद लोन अल्पाइन इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी एंड मैनेजमेंट प्रेम नगर में बायोटेक्नोलॉजी का छात्र था और उसने अपना सेकंड ईयर का बैचलर कोर्स भी पूरा किया था।
सवाल उठ रहे हैं कि अमर उजाला ने संस्थान का नाम तो दूर कॉलेज का इलाका तक नहीं लिखा कि कहीं पता ना चल जाए।
” कश्मीरी छात्रों की सोशल मीडिया में राष्ट्र विरोधी टिप्पणी पर कॉलेजों में बवाल हुआ था, उसमें भी केवल इसी इंस्टीट्यूट का नाम नहीं छापा गया।”
पत्रकार जगत के लोग ही सवाल उठा रहे हैं कि कॉलेज का नाम न छापना पॉलिसी का मामला हो सकता है तो फिर सुभारती और बीएफ आईटी जैसे कॉलेजों के नाम कैसे छापे ??
यह न सिर्फ पाठक और पत्रकारिता के साथ धोखा है, बल्कि अखबार के संपादक इस अखबार की भी हत्या कर रहे हैं। जाहिर है कि इतनी बड़ी खबर मे संस्थान का नाम छुपाने के लिए मालिकों ने नहीं कहा होगा ! यह स्थानीय संपादकीय स्तर पर ही तय हुआ होगा।
जाहिर है कि इस करतूत पर सीधे-सीधे अखबार के मालिकानों के बजाय संपादकों पर ही सवाल खड़े होते हैं।
बीबीसी तथा द वायर जैसे न्यूज़ पोर्टल ने भी कश्मीरी छात्रों के पक्ष में फर्जी खबरें चलानी शुरू कर दी हैं। यह एक देशद्रोह से कम अपराध नहीं है।
जाहिर है कि इन आतंकी हमलों ने पाकिस्तान को ही बेनकाब नहीं किया बल्कि अखबारों के चेहरे भी बेपर्दा कर दिए हैं।