भूपेंद्र कुमार
परिवहन विभाग के संभागीय निरीक्षक आलोक वर्मा की डिग्रियां परिवहन मंत्री के कार्यालय से सूचना में नहीं मिली तो सूचना आयुक्त ने भी किया मंत्री कार्यालय का बचाव
कोई बड़ा अधिकारी हो या नेता हो तो कानून के रक्षक भी उसकी सुविधा के अनुसार परिभाषाएं गढऩे में पीछे नहीं रहते। कुछ ऐसा ही मामला उत्तराखंड सूचना आयोग में भी घटित हुआ है।
परिवहन विभाग में एक अधिकारी की सूचना परिवहन मंत्री कार्यालय से मांगी गई तो परिवहन मंत्री के कार्यालय ने कोई जवाब नहीं दिया और न ही इस संवाददाता को प्रथम अपीलीय अधिकारी की ओर से कोई नोटिस भेजा गया, और न ही कोई अपील का निस्तारण किया गया। इस संवाददाता ने 5 जून 2018 को लोक सूचना अधिकारी कार्यालय आवास परिवहन मंत्री उत्तराखंड सरकार यमुना कॉलोनी के पते पर पांच बिंदुओं की एक सूचना मांगी थी, जिसकी अपील 6 अगस्त 2018 को की गई थी।
सूचना आयुक्त : ममगांई
जब यह संवाददाता इस शिकायत को लेकर उत्तराखंड सूचना आयोग गया तो राज्य सूचना आयुक्त जेपी ममंगाई ने कह दिया कि ‘संभवत: परिवहन मंत्री उत्तराखंड सरकार के कार्यालय में लोक सूचना अधिकारी नामित नहीं हैं, इसलिए यह पत्र परिवहन कार्यालय को भेजा जाना चाहिए था।
जेपी ममगांई ने अपने आदेश में लिखा कि प्रथम अपीलीय अधिकारी माननीय मंत्री के आवास पर नामित नहीं हो सकते, लिहाजा उनके कार्यालय में लोक प्राधिकारी नहीं हो सकता, इसलिए मंत्री का कार्यालय सूचना नहीं दे सकता।
राज्य सूचना आयुक्त जेपी ममगाई ने इस सूचना के लिए सचिव परिवहन उत्तराखंड सरकार को पत्र लिखने की सलाह देते हुए अपील का निस्तारण कर दिया, जबकि केंद्रीय सूचना आयोग का स्पष्ट फैसला है कि केंद्र और राज्य मंत्रिमंडल पब्लिक अथॉरिटीज हैं और सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत जनता के सवालों के प्रति जवाबदेह हैं।
14 मार्च 2016 को केंद्रीय सूचना आयुक्त श्रीधर आचार्युलु ने अहमदनगर के हेमंत धागे के केस पर सुनवाई करते हुए केंद्र और राज्यों को अपने हर मंत्री को जरूरी सूचना सुविधा मुहैया कराने के लिए कहा था, किंतु राज्य सूचना आयुक्त जेपी ममंगाई को लगता है कि आमजन के हित से ज्यादा अधिक नेताओं और अफसरों के हितों का पोषण करना अधिक लाभदायक है। संभवत इसीलिए उन्होंने मंत्री के कार्यालय को साफ बचा दिया।
आलोक वर्मा
इस संवाददाता ने परिवहन मंत्री के कार्यालय से सूचना मांगी थी कि परिवहन विभाग में संभागीय निरीक्षक आलोक वर्मा की डिग्रियां प्रदान की जाएं, लेकिन राज्य सूचना आयुक्त ने इतनी महत्वपूर्ण सूचना को मंत्री के प्रभाव में दरकिनार कर दिया।
यह है पूरा मामला
उत्तराखंड में अधिकारियों की फर्जी डिग्रियां सवालों के घेरे में बनी रहती हैं। अब परिवहन विभाग के संभागीय निरीक्षक आलोक वर्मा की डिग्रियां सवालों के घेरे में हैं।
विभिन्न विभागीय तथा अन्य स्थलों से यह शिकायत पर्वतजन के इस संवाददाता के पास पहुंची तो फिर इस संवाददाता ने इस प्रकरण की उच्चस्तरीय जांच के लिए परिवहन मंत्री यशपाल आर्य को पत्र लिखा, लेकिन मंत्रालय ने भी इस पत्र का कोई संज्ञान नहीं लिया। जब इस प्रकरण में की गई कार्यवाही का ब्यौरा सूचना के अधिकार में मांगा गया तो परिवहन मंत्री के कार्यालय से इसका भी कोई जवाब नहीं आया।
आलोक वर्मा के प्रमाण पत्रों की सत्यापित छाया प्रति के लिए सूचना के अधिकार के अंतर्गत आवेदन किया गया तो परिवहन विभाग ने कोई जवाब नहीं दिया और न ही अपील का निस्तारण किया। परिवहन मंत्री का कार्यालय तथा परिवहन विभाग दोनों ही शिकायत और आरटीआई आवेदन दबा कर बैठ गए। अब इस प्रकरण पर सूचना आयोग ने भी पल्ला झाड़ लिया है।