देहरादून के महिला प्रौद्योगिकी संस्थान के मामले में उच्चतम न्यायालय ने दिनांक एक अप्रैल 2019 को अंतिम निर्णय दे दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने 40 शिक्षकों व कर्मचारियों द्वारा राज्य सरकार, उत्तराखंड तकनीकी विश्वविद्यालय एवं महिला प्रौद्योगिकी संस्थान, देहरादून के विरुद्ध दायर की गयी सभी 22विशेष अनुमति याचिकाओं को समाप्त कर दिया। इन याचिकाओं मे नैनीताल उच्च न्यायालय के 20 केस में पारित किए गए 3 निर्णयों को चुनौती दी गई थी। न्यायमूर्ति संजय किशन कौल एवं न्यायमूर्ति इन्दिरा बैनर्जी ने सरकार एवं संस्थान के पक्ष में निर्णय दिया है। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने अपने 25 सितंबर 2018 के अन्तरिम आदेश में राज्य सरकार को व महिला प्रौद्योगिकी संस्थान एवं हड़ताली शिक्षकों को कुछ निर्देश दिये थे। उन निर्देशों के अनुपालन में सुप्रीम कोर्ट नेराज्य सरकार व महिला प्रौद्योगिकी संस्थान दारा की गयी कार्यवाही को 1 अप्रैल के अंतिम आदेश में नियमानुसार पाया। हड़ताली कर्मियों द्वारा उच्चतम न्यायालय के निर्देशों की भी अवहेलना की गयी।
पूर्व में पूर्व कुलपति द्वारा बिना पद के संस्थान में की गई नियुक्तियाँ समाप्त कर दी गई हैं।संस्थान की प्रशासकीय परिषद संस्थान की सब गतिविधियों को देखेगी। राज्य सरकार द्वारा संस्थान में पदों का सृजन कर दिया गया है। राज्य सरकार द्वारा संस्थान व विश्वविद्यालय के रेगुलेशन्स बना दिये गए हैं। इससे संस्थान में बैकडोर नियुक्तियों पर अब रोक लग गई है व मन माने ढंग से की गयी नियुक्तिय न हो सकेंगी राज्य सरकार द्वारा नियमित निदेशक के पद पर डॉ अलकनंदा अशोक की नियुक्ति को नियमानुसार सही माना गया व हड़तालियों द्वारा लगाये गये सभी आरोपों को ग़लत मानते हुए क्योवारंटों याचिका ख़ारिज की एवं निदेशक को कार्यदक्ष पाया। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार राज्य सरकार ने उत्कृष्ट कार्य किया है एवं संस्थान में सब व्यवस्थित कर दिया गया है। इससे अब हड़ताली संविदा शिक्षकों की मनमानी नहीं चलेगी एवं शिक्षकों को प्रक्रिया व संस्थान नियमों का पालन करना पड़ेगा। पिछले 2 वर्षों से इन हड़ताली कर्मचारियों द्वारा निदेशक के उपर झूठी आरोप लगा कर दबाव बनाने व झूठी शिकायतों कर और हड़ताल/ तालाबंदी से संस्थान का बहुत नुकसान करने की कोशिश की अत: सुप्रीम कोर्ट में हड़ताली शिक्षकों और शिक्षणेतर कर्मियों को करारी हार मिली, न्यायालय ने उनसे नियमों का और प्रक्रिया का पालन करने को कहा। संस्थान के आदेशों को संविदा शिक्षकों द्वारा चुनौती दी गई थी जिन्हें सुप्रीम कोर्ट ने खारिज करते हुए आदेशों को सही पाया।