सरकार की गलत नीतियों की वजह से और राजनीतिक मतभेद के चलते अतिथि शिक्षकों के महत्वपूर्ण चार साल बर्बाद हो चुके हैं।
सरकार के सिर्फ झूठे आश्वासनों की नींव पर अतिथि शिक्षकों का पांचवा साल भी दाँव पर लगा है।
अतिथि शिक्षक अब भी सरकार पर पूरा भरोसा बनाये बैठे हैं,क्योंकि इस भर्ती के दौरान समय-समय पर सरकार द्वारा किये गये दावों और शिक्षा के पूर्व इतिहास को देखते हुए सैकड़ों लोग अपनी जमी-जमाई नौकरी छोड़कर यहाँ आये थे।
अतिथि शिक्षकों की भर्ती में 100 प्रतिशत पारदर्शिता और सभी संवैधानिक कोटा में तय मानकों के अनुसार बराबर हिस्सा का निरीक्षण करके सभी लोगों को सुरक्षित भविष्य की आस नजर आने लगी थी।
इन्हें मौखिक रूप से ये भी आश्वासन दिया गया था कि दो तिहाई अतिथि शिक्षक तीन या पांच सालों में प्रर्दशन के आधार पर स्थाई होंगे,लेकिन सरकार ने अतिथि शिक्षकों का मामला इस तरह उलझा दिया है, जिसका हल न सरकार के पास है और न कोर्ट को ढूंढे मिल रहा है।
हमारी न्याय पालिका सब कुछ समझने के बाद भी किंकर्तव्यविमूढ़ बनी है ! अतिथि शिक्षक की भर्ती के दौरान कई विभागों में आऊटसोर्सिंग और बैक डोर भर्ती हुई थी। “पहले आओ और पहले पाओ” वाले आवेदकों को रोजगार दिया गया था। वे शिक्षक अभी तक बरकार बने हैं, लेकिन अतिथि शिक्षक एक ठोस प्रकिया के तहत चुने गये थे, फिर भी अतिथि शिक्षक ही बाहर बैठे हैं, ये कैसी नाइंसाफी है !
अन्य विभागों मे अतिथि शिक्षकों के समकालीन हुई भर्ती के लिए सुधारात्मक प्रयास निरन्तर हो रहे हैं , किन्तु एक प्रकिया के तहत चुने गये अतिथि शिक्षकों को नक्कारा और संवेदनशील न्यायपालिका के गले में लटका रखा है। इस उठापठक और द्वेष पूर्ण राजनीति के चलते 6-7 अतिथि शिक्षकों ने आत्महत्या कर ली है, लेकिन किसी भी मीडिया ने अतिथि शिक्षकों की खबरें नही दिखाई। क्या कारण है कि सिनेमा या राजनीतिक घटनाओं पर तो हमारी सारी मीडिया बिछी रहती है लेकिन जनता के हित पर मीडिया खामोश रहती है, क्या मिडिया को सिर्फ मसाला चाहिए !
आखिर अतिथि शिक्षक भी हमारे ही राज्य के निवासी हैं, उनके भी परिवार हैं।इनकी तरफ से संवेदनहीन होना कल्याण कारी सरकार से अपेक्षित नही है।जाहिर है कि सरकार को ही कोई न कोई रास्ता निकालना होगा।