मनीष मैक
मुख्यमंत्री के अपर सचिव डॉ मेहरबान सिंह बिष्ट ने रेशम विभाग में भर्ती के लिए गया एक अधियाचन सेवा नियमावली में बदलाव करने के नाम पर लोक सेवा आयोग से वापस मंगा लिया और फिर भूल गए। इस फाइल पर 7 महीने से कोई काम नहीं हुआ है। अहम सवाल यही है कि क्या सरकार ऐसे ही सुस्त और अकर्मण्य अफसरों के भरोसे ही रोजगार वर्ष मनाएगी !
अधियाचन वापस मंगाने का पत्र
अहम बात यह है कि संशोधनों के नाम पर अधियाचन वापस मंगा कर मेहरबान सिंह खुद भी सो गये। उन अधियाचन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है। इसके कारण इन भर्तियों के लिए योग्य अभ्यर्थी तैयारी करते करते ओवर एज हो रहे हैं।
उत्तराखंड में रेशम विभाग के अंतर्गत सहायक निदेशकों की भर्ती वर्ष 2017 से रुकी पड़ी है।
इस साल अप्रैल 2019 में रेशम विभाग के अधिकारी वर्ग ‘क’ और ‘ख’ की भर्तियों के लिए एक अधियाचन लोक सेवा आयोग में गया तो उसे मुख्यमंत्री के अपर सचिव मेहरबान सिंह बिष्ट ने यह कहते हुए वापस मंगा लिया कि “अभी रेशम विभाग की सेवा नियमावली में संशोधन होना है, इसलिए भेजा गया अधियाचन की प्रक्रिया को स्थगित करते हुए वापस करने का कष्ट करें।”
मेहरबान सिंह बिष्ट ने इस पत्र में लिखा कि “सेवा नियमावली के संशोधन हो जाने के उपरांत स्वच्छ अधियाचन यथा समय प्रेषित कर दिया जाएगा 6 महीने बाद भी ना तो नियमावली में कोई संशोधन हो पाया है और न ही अधियाचन लोक सेवा आयोग में गया है।”
आजकल उत्तर प्रदेश तथा दूसरे राज्यों की पूरी तरह से गिरफ्त में आ चुके उत्तराखंड के मुख्यमंत्री और उनके अपर सचिव चुन-चुन कर उत्तराखंड की भर्तियों में पहले से चली आ रही शैक्षिक योग्यताओं के पैमाने को बदलने पर लगे हैं।
इसके लिए विभागों की सेवा नियमावली में बाकायदा संशोधन किया जा रहा है और उत्तराखंड लोक सेवा आयोग में जा चुके अधियाचनों को वापस मंगाया जा रहा है।
उत्तराखंड में कई विभागों की भर्तियों के लिए गढ़वाल और कुमाऊं विश्वविद्यालय मे पढ़ाई जाने वाली डिग्रियों से ही काम चल जाता था।
लेकिन उत्तर प्रदेश के कुछ लोगों को यह भलीभांति मालूम है कि इससे उत्तराखंड के लोगों को भर्ती परीक्षा में बैठने का अवसर मिल जाएगा, इसलिए वे इस जोड़-तोड़ में लगे हुए हैं कि इन विभागों की ऐसी भर्ती के लिए विषय विशेष में ही डिग्री डिप्लोमा होने को अनिवार्य कर दिया जाए जो उत्तराखंड में नहीं पढ़ाए जाते हैं।
इससे उत्तराखंड के अधिकांश अभ्यर्थी विभाग की इन परीक्षा में नहीं बैठ पाएंगे और उन्हें मौका मिल जाएगा। और यही हो भी रहा है।
अधिकारी एक बार भी यह नहीं सोच रहे हैं कि इससे उत्तराखंड के बेरोजगारों के अरमानों पर पानी फिर जाएगा।
उत्तराखंड सरकार इस वर्ष को “भर्ती वर्ष” के रूप में मना रही है और यह वर्ष भी बिना भर्तियों के लगभग बीत चुका है। भर्तियों की बात केवल अखबारों में बयानबाजी तक सीमित है। इसके पीछे असली खलनायक तो उत्तराखंड के सचिवालय में फोर्थ फ्लोर पर ही बैठे हैं।
पहले भी चर्चाओं में रह चुके हैं मेहरबान
मेहरबान सिंह बिष्ट जिस भी विभाग में रहे अपने ऐसी ही जन विरोधी कार्यो के लिए चर्चाओं में रहे। मुख्यमंत्री ने जब मेहरबान सिंह बिष्ट को पीसीएस अधिकारी होने के बावजूद अपना अपर सचिव बनाया कर फोर्थ फ्लोर में बिठाया था तब भी इसका विरोध हुआ था।
इसके बाद मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने मेहरबान सिंह बिष्ट को सूचना महानिदेशक का भी दायित्व सौंपा तो तब भी इनका विरोध हुआ था।
मेहरबान सिंह बिष्ट के खिलाफ सूचना विभाग में भी आए दिन पत्रकारों द्वारा धरना प्रदर्शन किया जाता रहा है।
यहां तक कि मेहरबान सिंह बिष्ट द्वारा पत्रकारों के खिलाफ दमनकारी नीतियां अपनाने के विरोध में पत्रकारों ने मेहरबान सिंह बिष्ट के खिलाफ दून में कैंडल मार्च और मशाल जुलूस भी निकाला था।
मुख्यमंत्री की छवि खराब करने में मेहरबान सिंह बिष्ट का भी बड़ा हाथ है। मेहरबान सिंह बिष्ट जब टिहरी में पुनर्वास विभाग का दायित्व देख रहे थे, तब भी इन पर कई सवाल खड़े हुए थे।
ऐसे अफसर को फोर्थ फ्लोर पर बिठाना मुख्यमंत्री के जीरो टोलरेंस पर बड़े सवाल खड़े करता है।