कमल जगाती/नैनीताल
उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने गंगा नदी किनारे अतिक्रमण और सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत से उस पर आश्रम बनाने के मामले में नाराज होकर जिलाधिकारी पौड़ी को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने को कहा है। खण्डपीठ ने गलत जवाब देने के लिए पर्यावरण मंत्रालय को भी सही स्थिति बताने को कहा है।
मुख्य न्यायाधीश रमेश रंगनाथन और न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ के सम्मुख आज जिलाधिकारी पौड़ी को जांच कर जवाब देने को कहा गया था।
जिलाधिकारी की तरफ से कोई जवाब नहीं आया तो खण्डपीठ ने नाराज होकर जिलाधिकारी को 16 दिसंबर को तलब कर लिया। पर्यावरण विभाग की तरफ से अधिवक्ता ने न्यायालय को बताया कि आश्रम के पास केवल 597 कमरे हैं और उन्होंने पर्यावरण सुधार के लिए एस.टी.पी.प्लांट भी लगाया है। इसके जवाब में याची अधिवक्ता विवेक शुक्ला ने न्यायालय को बताया कि आश्रम में 597 नहीं, बल्कि 1000 से अधिक कमरे हैं, जिनका एस.टी.पी.प्लांट भी समय समय में खराब हो जाता है। एस.टी.पी.प्लांट की गलत सूचना देने के आरोप में प्रदूषण विभाग से न्यायालय ने स्पष्टिकरण मांग लिया है।
मामले के अनुसार हरिद्वार निवासी अधिवक्ता विवेक शुक्ला ने जनहित याचिका दायर कर न्यायालय से कहा कि ऋषिकेश में परमार्थ निकेतन स्वर्गाश्रम ने गंगा के किनारे 70 मीटर में कब्जा किया है। ये सरकारी भूमि है, यहां गंगा में पुल का निर्माण कर नदी में एक मूर्ति भी बनाई गई और व्यवसायिक भवनों का निर्माण किया गया है। यहां आश्रम ने बैंक और अन्य लोगों को किराए पर सरकारी जमीन दी है और इनसे होने वाले कूड़े को गंगा नदी में डाला जा रहा है। याचिकाकर्ता ने न्यायालय से इस पर रोक लगाने के साथ इस स्थान को अतिक्रमण मुक्त कराने की प्रार्थना की है।
मुख्य न्यायाधीश की खण्डपीठ ने आदेश के बावजूद जिलाधिकारी पौड़ी को जांच कर जवाब नहीं देने के लिए व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने के लिए कहा है, साथ ही न्यायालय ने पर्यावरण विभाग को अस्पष्ट जवाब देने के लिए स्पष्टिकरण देने को कहा है।