जयसिंह रावत
दिल्ली चुनाव के नतीजों पर उत्तराखण्डवासियों की नजर भी टिक गयी है। इस चुनाव में दिलचस्पी का एक कारण तो वहां उत्तराखण्ड के लाखों मतदाता होना तो है ही, लेकिन इसके साथ ही यह चर्चा भी जोरों पर है कि अगर भाजपा दिल्ली भी हार गयी, जिसकी ज्यादा सम्भावना है, तो वह अपने बचे खुचे राज्यों में सत्ता बचाने के लिये सबसे पहले त्रिवेन्द्र सिंह रावत जैसे अपने अलोकप्रिय मुख्यमंत्रियों की बलि चढ़ायेगी।
केजरीवाल पर इतना दुलार !!
फिर हमारे वाले पर इतना गुस्सा क्यों भई ?
हाल ही में भाजपा समर्थक एक टीवी चैनल द्वारा किये गये एक सर्वेक्षण में त्रिवेन्द्र रावत से कहीं अधिक कांग्रेस शासन में मुख्यमंत्री रहे हरीश रावत को लोकप्रियता के अंक मिलने और आये दिन पार्टी के अंदर से ही मिल रही शिकायतों से भाजपा आलाकमान त्रिवेन्द्र रावत से काफी नाराज बताया जा रहा है।
भाजपा के एक वरिष्ठ नेता के अनुसार पार्टी अध्यक्ष बदले जाने के बावजूद दिल्ली चुनाव तक पार्टी की वास्तविक बागडोर अमित शाह के पास ही है। शाह द्वारा इन दिनों रात के डेढ-दो बजे तक दिल्ली में भाजपा चुनाव कार्यालयों का दौरा किया जाना भी साबित करता है कि एक के बाद एक राज्यों से सत्ता गंवाने के बाद पार्टी के लिये दिल्ली चुनाव कितने महत्वपूर्ण हैं। उक्त नेता के अनुसार अगर दिल्ली चुनाव में भाजपा हार जाती है तो इसे बहुत बड़ा झटका माना जायेगा और इसके बाद पार्टी बहुत बड़े सांगठनिक फैसले लेने से नहीं चूकेगी।
पार्टी सूत्रों के अनुसार नेतृत्व परिवर्तन के लिये जो 5 राज्य राडार पर हैं, उनमें उत्तराखण्ड सबसे ऊपर है, जहां 2022 में विधानसभा चुनाव होने हैं। सूत्रों के अनुसार भाजपा नेतृत्व अब राज्यों में अपनी सरकारों की अलोकप्रियता का खामियाजा भुगतने से बचना चाहती है।
अगर इसी तरह एक के बाद एक राज्य हाथ से निकलते गये तो उसका राज्य सभा में अपने दम पर बहुमत जुटाने का सपना चकनाचूर हो जायेगा और इसे मोदी युग के पतन की शुरुआत का संकेत भी माना जायेगा।
मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत के कार्यालय और उनके परिजनों के स्टिंग करने पर जिस चैनल के मालिक की देहरादून से लेकर झारखण्ड तक की जेलों में दुर्गति कराई गयी थी, उनका चैनल इन दिनों पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी सरकार के लिए मुसीबत बना हुआ है।
जानकारों के अनुसार चैनल के मालिक ने सभी स्टिंग विजय वर्गीय आदि सम्पर्कों के माध्यम से तो भाजपा आला कमान को पहुंचा ही रखे हैं। लेकिन पार्टी के अन्दर भी असन्तुष्ट नेता त्रिवेन्द्र रावत की अहंकारपूर्ण एवं भाई भतीजे वाली कार्यवाही की शिकायत पार्टी नेतृत्व को निरन्तर करते रहते हैं।
यह भी चर्चा है कि मुख्यमंत्री के बर्ताव से नाराज सतपाल महाराज, हरक सिंह रावत एवं यशपाल आर्य जैसे दमदार मंत्री भी मुख्यमंत्री के खिलाफ आला कमान के कान भरते रहते हैं। सतपाल महाराज की आरएसएस एवं पार्टी नेतृत्व के साथ सीधी पहुंच भी त्रिवेन्द्र रावत के लिये घातक मानी जा रही है।
त्रिवेन्द्र रावत को प्रधानमंत्री की ओर से अगस्त 2018 से लेकर हाल ही तक मिलने का समय न मिलना भी त्रिवेन्द्र के प्रति नाराजगी को माना जा रहा है। प्रधानमंत्री द्वारा आयोजित समीक्षा बैठकों में मुख्यमंत्री रावत द्वारा पेश ओडीएफ समेत विभिन्न केन्द्रीय योजनाओं की सफलता के झूठे आंकड़ों की पोल खुलने से भी मोदी नाराज बताये जाते हैं।
त्रिवेन्द्र रावत ने उत्तराखण्ड को 31 मई 2017 को ही खुले में शौच मुक्त घोषित कर देश में चौथा राज्य बनने की वाहवाही लूटी थी। जबकि कैग की रिपोर्ट के अनुसार अभी तक लगभग 67.39 प्रतिशत परिवार ही राज्य में खुले में शौचमुक्त हुये हैं। इसी तरह सौभाग्य एवं उज्जवला येजनाओं के अवास्तविक दावों और गायों द्वारा सांस में ऑक्सीजन छोड़े जाने जैसे अनर्गल बयानों ने भी त्रिवेन्द्र रावत की छवि पार्टी नेतृत्व के समक्ष खराब की है।
कुछ दिन पहले मुख्यमंत्री कैबिनेट के विस्तार के लिये पार्टी नेतृत्व से अनुमति लेने के नाम पर दिल्ली गये थे। लेकिन उसके बाद भी मंत्रिमण्डल का विस्तार न होना भी अटकलों को जन्म दे रहा है। मुख्यमंत्री के करीबियों का कहना है कि अमित शाह ने मंत्रिमण्डल विस्तार की अनुमति नहीं दी थी। अटकलें यहां तक हैं कि अगला मुख्यमंत्री ही नये ढंग से मंत्रिमण्डल का गठन करेगा। मंत्रिमण्डल में दो पद शुरू से खाली हैं और एक पद प्रकाश पन्त के निधन के बाद खाली हुआ है। मुख्यमंत्री के पास 40 से अधिक विभाग हैं जिनमें स्वास्थ्य, वित्त, लोक निर्माण, ऊर्जा, उद्योग एवं आबकारी जैसे विभाग हैं और सबसे अधिक जन शिकायतें इन्हीं विभागों की होती हैं।
वरिष्ठ एवं अनुभवी विधायकों को काट कर अपने चहेते एवं विवादास्पद लोगों को मंत्रिमण्डल में शामिल किये जाने से सरकार की परफार्मेंस तो खराब जा ही रही है साथ ही सुयोग्यों की उपेक्षा भी पार्टी के अन्दर असन्तोष का कारण बन हुआ है। इसी तरह अपने चहेते एवं पार्टी के बाहर के करीबियों को लालबत्तियों का तोहफा देना भी असन्तोष का कारण बना हुआ है। माना जा हरिद्वार महाकुंभ को सम्पन्न कराने के लिये भाजपा किसी सुलझे और अनुभवी को मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी सौंप सकती है। केन्द्रीय मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक की अचानक अति सक्रियता को भी महाकुंभ से जोड़ा जा रहा है।
जयसिंह रावत
ई-11, फ्रेंड्स एन्कलेव, शाहनगर,
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