गौरतलब है कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के पास ही आबकारी विभाग है और यह छापा आबकारी विभाग के दो गुटों के बीच चल रही गैंगवार का नतीजा है।
लेकिन इस छापे के बाद आबकारी मुख्यालय के अफसरों की लंबी चौड़ी फौज की कार्रवाई सवालों में आ गई है। दरअसल शनिवार को जिला आबकारी अधिकारी व उनकी टीम ने एक अवैध रूप से ले जाए जा रही शराब के ट्रक को पकड़ा था। इससे राजस्व चोरी का खुलासा हुआ ही था साथ इस बात का भी खुलासा हुआ था कि नेटवर्क काम कर रहा है जो गलत तरीके से शराब मंगाकर पहाड़ों में भेज रहा है। महत्वपूर्ण बात यह है कि आज ट्रांसपोर्ट नगर में जिस गोदाम पर आबकारी विभाग के अफसर पहुंचे वहां पर तीन ताले लगे हुए थे।
सूत्र बताते हैं कि इसमें एक ताला उक्त कंपनी का जिसका नाम था और एक निरीक्षक आबकारी के द्वारा लगाया गया था इन दोनों को तोड़कर गोदाम की जांच की गई तो तोड़ते समय न तो कंपनी को सूचना दी गई और न ही इसमें संबंधित पुलिस थाने को सूचना दी गई।क्योंकि इस मामले में आपराधिक मुकदमा भी दर्ज किया जा चुका था।
सवाल यह भी महत्वपूर्ण है कि क्या कंपनी को सूचना देना जरूरी नहीं समझा गया ! क्योंकि कंपनी का ताला लगा हुआ था और दो दिन कंपनी इसका तकनीकी तौर पर फायदा नहीं उठा सकती कि गोदाम में रखा हुआ माल उनका नहीं था या कम था उसे ज्यादा बढ़ा कर दिखाया गया !
सवाल यह भी है कि क्या आबकारी विभाग के बड़े अफसर अपने जूनियर अफसरों को नीचा दिखाने या इस कार्रवाई में उन को नीचा दिखाने के साथ-साथ मिलीभगत का कथित आरोपी बनाने की तैयारी कर रहे हैं ! आबकारी मुख्यालय स्तर के अफसरों की टीम सत्ता के करीबी लोगों की ही टीम है।सबसे अहम् सवाल है कि यह कार्रवाई चार दिन बाद क्यों हुई !