डा० राजेन्द्र कुकसाल
उद्यान विभाग की विभिन्न योजनाओं में आज भी आलू, मटर अदरक, लहसुन, प्याज आदि की व्यवसायिक खैती करने वाले कृषकों को समय पर उन्नत किस्मों के प्रमाणित बीज नहीं मिल पा रहें है, वहीं दूसरी ओर योजनाओं में करोड़ों रुपए हाइब्रिड बीज के नाम पर बर्बाद किए जा रहे हैं।
उद्यान विभाग द्वारा हाइब्रिड (संकर) बीज के नाम पर योजनाओं में किया जा रहा है सरकारी धन का दुरपयोग।
योजनाओं की गाइडलाइंस तथा शासन द्वारा समय-समय पर विभाग को उन्नतशील किस्मौ के बीज, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, केन्द्रीय/राज्य के कृषि अनुसंधान संस्थानों, कृषि विश्वविद्यालयौं द्वारा संस्तुत/ उत्पादित, राष्ट्रीय/राज्य बीज निगमौं से बीज क्रय करने के निर्देश दिये जाते रहे हैं, किन्तु उद्यान विभाग इन संस्थाओं से बीज क्रय नहीं करता।
विभाग द्वारा योजनाओं में अधिकतर बीज निजि कम्पनियों, बहुराष्ट्रीय बीज कम्पनियों या दलालों के माध्यम से क्रय किए जा रहे हैं, जो कि घोर वित्तीय अनियमितता है।
योजनाओं में वितरित किए जाने वाले बीज निम्न गुणवत्ता के व महंगे होते हैं। बीजों की गुणवत्ता पर कई बार सवाल भी उठते रहे हैं किन्तु निशुल्क ( मुफ्त) में होने के कारण व आगे विभागीय योजनाओं का लाभ न मिलने के डर से कृषक बीजों की गुणवत्ता पर ज्यादा शोरगुल नहीं करते।
योजनाओं में खुले आम डाका डाला जा रहा है लगता है जैसे राज्य में कोई देखने वाला है ही नहीं*।
हाइब्रिड (संकर) बीज का सच
हाइब्रिड (संकर) बीजों से अधिक उपज प्राप्त होती है, किन्तु इन बीजों से कई नुकसान भी हैं।
1.हाब्रिड बीज बहुत मंहगे होते हैं, जिस कारण आवंटित बजट के अनुसार योजना का लाभ कम ही कृषकों को मिल पाता है।
2.आगामी बर्षौ के लिए कृषक इनसे गुणवत्ता वाले बीज नहीं बना पाते। प्रत्येक बर्ष नया बीज क्रय करना होता है। योजनाओं के बन्द होने पर आर्थिक रूप से कमजोर कृषकों के लिए मुश्किलें खड़ी हो जायेंगी ।
3. हाइब्रिड बीजों में अधिक बर्षा व सूखे को सहने की क्षमता स्थानीय उन्नत किस्मों (क्षेत्र विशेष की भूमि व जलवायु में रची-बसी किस्मै) की अपेक्षा कम होती है।
4.हाइब्रिड बीज एक विशेष रोग या वायरस से मुक्त बनाया जाता है किन्तु इन पर अन्य कीट व बीमारियां अधिक लगती है जबकि स्थानीय उन्नत शील किस्में क्षेत्र विशेष में लगने वाली बीमारियों व कीटों के प्रतिरोधी होती है।
5. हाइब्रिड सब्जियों की उपज में स्थानीय/उन्नत शील किस्मों की तुलना में पोषक तत्वों का अभाव होता है।
6.हाइब्रिड बीजों की खेती में अधिक उपज लेने हेतु, अधिक रसायनिक खाद व कीट व्याधि नाशक दवाओं का प्रयोग होता है, जिससे इनसे प्राप्त उपज में इन रसायनों का प्रभाव रहता है , जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है।
7.जैविक खेती में स्थानीय, उन्नतशील प्रजातियां से खेती की जाती है, हाइब्रिड बीजों का प्रयोग प्रतिबंधित होता है।
8. हाइब्रिड बीजों से खेती करने पर लागत बहुत अधिक आती है साथ ही फसल की देखभाल भी अधिक करनी होती है।
9.योजनाऔ में बहु राष्ट्रीय बीज कम्पनियों से हाइब्रिड बीज क्रय करने से विदेशी कंपनियों को ही आर्थिक लाभ पहुंचता है।
हाइब्रिड सब्जी बीजों का कड़ुवा सच
उद्यान विभाग द्वारा सब्जी उत्पादन को बढावा देने के उद्देश्य से 90 के दशक में बहुराष्ट्रीय बीज कंपनियों द्वारा उत्पादित सब्जी के हाब्रिड बीजों के निशुल्क प्रदर्शन जिला योजना के अंतर्गत, सघन वे मौसमी सब्जी उत्पादन योजना में निशुल्क बांटने का प्राविधान रखा गया था।
इस योजना के अंतर्गत विभागीय कर्मचारियों की देख रेख में हाइब्रिड सब्जी उत्पादन की तकनीक, सब्जी उत्पादकों को समझाने के उद्देश्य से योजना चलायी गयी, जिसके अन्तर्गत कास्तकारौ को निःशुल्क हाइव्रिड सब्जी बीज, कीट व व्याधि नाशक रसायन उपलव्ध कराने के साथ उत्पादन के आकडें लेने के भी निर्देश होते थे।
वर्तमान में इस योजना के अन्तर्गत विभाग द्वारा केवल हाइव्रिड बीज क्रय कर कृषकौं को निःशुल्क (मुफ्त) में वितरित किये जाते है।
शुरू के बर्षौं में बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा उच्च स्तर पर प्रलोभन दिए गए, जिसके चलते इस मद में धन का आवंटन अधिक होने लगा। धीरे-धीरे निचले स्तर के आहरण वितरण अधिकारियों (DDO) को भी कमिशन में शामिल किया गया, आज हाइब्रिड बीज खरीद पर बहुराष्ट्रीय कम्पनियों कम्पनियों 30- 40 प्रतिशत तक का कमिशन खरीददार/आहरण वितरण अधिकारियों ( DDO) को देते हैं।यही कारण है कि उद्यान विभाग में सब्जी उत्पादन पर ज्यादा योजनाएं प्रस्तावित की जाती है। सब्जी उत्पादन की जितनी भी योजनाएं चल रही है (जिला योजना, राज्य सैक्टर की योजनाएं, केन्द्र सरकार की हार्टिकल्चर टैक्नोलॉजी मिशन, कृषि विकास योजना, पैरी अर्बन सब्जी उत्पादन योजना, DPA , बाह्य सहायतीत योजनाएं आदि) यहां तक कि सूखा राहत मैं भी सब्जी हाइब्रिड बीज कृषकों को निशुल्क ( मुफ्त में) बितरित किये जाते रहे हैं।
विभाग सब्जी हाइब्रिड बीजों को 20 हजार से लेकर एक लाख रुपए प्रति किलो की दर से क्रय करता है ,जिसे प्रगतिशील व सब्जी की व्यवसाइक खेती करने वाले कृषक नहीं बोते।
हाइब्रिड सब्जी बीज से सब्जी उत्पादन करने वाले कृषक हाइब्रिड सब्जी बीज की व्यवस्था हिमांचल प्रदेश या सीधे बीज उत्पादक कम्पनियों से स्वयमं करते हैं ।
कृषकों का कहना है कि
1.विभाग द्वारा क्रय किये गये हाइब्रिड बीज की कोई विश्वसनीयता नही है, क्योंकि विभाग के पास ऐसा कोई तत्रं नही है जो आपूर्ति किये गये बीज की शुद्धता बता सके।
2.जिन किस्मों के बीज की आवश्यक्ता होती है उनका समय पर बीज नहीं मिलता।
3.बिभाग द्वारा दिये गये हाइव्रिड सव्जी बीजों में कभी कभी जमाव ही नहीं होता बीज आपूर्ति क्रताओं द्वारा पुराने बीजों को ही पुनः पैकिगं कर कास्तकारों को बाटं दिये जाते हैं।
4- राज्य में सब्जी के हाइब्रिड बीज उद्यान विभाग द्वारा हिमाचल प्रदेश सरकार की निर्धारित दरों से 20 से 50 प्रतिशत से अधिक दरौ पर क्रय किया जाता है।
हिमाचल सरकार की दरैं-
Approved Rates of Hybrid Seed during 2017-2018
S.No. Name of Hybrid Seed Rate per Qtl.
1. Tomato 20,500 per Kg.
2. Cabbage 17,500 per Kg.
3.Capsicum 50,000 per Kg.
4. Capsicum (Coloured) 70,000 per Kg.
5. Cauliflower 21,000 per Kg.
6.Cucumber 12,000 per Kg.
7. Cucumber (Poly house) 7.50 per Seed
8.Chillies 29,500 per Kg.
9. Brinjal (Round) 9,000 per Kg.
10. Brinjal (Long) 10,000 per Kg.
11. Radish 1,000 per Kg.
12. Lady’s Finger (Okra) 1,200 per Kg.
13. Bottle Gourd 4,000 per Kg.
14. Bitter Gourd 6,000 per Kg.
15. Broccoli 40,000 per kg.
उत्तराखंड राज्य में विभाग/शासन द्वारा हाइब्रिड सब्जी बीजों की कोई दरें निर्धारित नहीं की गई है।आहरण वितरण अधिकारी अपने कमिशन के चक्कर में महंगा से महंगा हाइब्रिड बीज क्रय करते हैं। शासन/ निदेशालय से इन हाइब्रिड सब्जी बीजों को क्रय करने की कोई वित्तीय और प्रशासनिक स्वीकृति भी आहरण वितरण अधिकारियों द्वारा नहीं ली जाती।
उत्तराखंड में sustainable development , निरंतर विकास, सतत् विकास,स्थाई विकास, टिकाऊ विकास, जीरो बजट खेती तथा जैविक फसल उत्पादन, समेकित व संतुलित खेती की बड़ी बड़ी बातें की जाती है, दूसरी तरफ विभागौं द्वारा निशुल्क हाइव्रिड बीज वितरित किये जा रहे हैं, जिनका प्रयोग जैविक खेती में प्रतिवन्धित है।हाइव्रिड बीजों से कास्तकार आगामी बर्षों के लिये गुणवत्ता वाले बीज नहीं बना सकता है साथ ही इन हाइब्रिड बीजों के कारण उन्नत स्थानीय बीज जो यहां की भूमि में रचे-बसे हैं भी नष्ट हो रहे हैं। जैविक खेती के लिए स्थानीय परमपरागत किस्में या उन्नतशील open pollinated किस्मों के बीज ही बोये जा सकते है।
हाइव्रिड सब्जी बीज बहुत महंगा होता है, एक लाख रुपया प्रति किलो तक जब कि Open pollinated उन्नतशील किस्मौ का बीज 200 से 500 रुपये तक ही होता है जिससे ज्यादा वास्तविक कृषकों को लाभान्वित किया जा सकता है, साथ ही कृषक आगामी बर्षौ के लिये अपनी फसल से बीज भी बना सकेगा ।
राज्य में अधिकतर कृषक आलू , मटर , अदरक, लहसुन,प्याज आदि की व्यवसायिक खेती करते हैं , विभाग योजनाओं में करोड़ों रुपए हाइब्रिड बीज क्रय कर एक ओर सरकारी धन का दुरपयोग कर रहा है, वहीं दूसरी ओर कृषकों को समय पर योजनाओं में आलू , मटर , अदरक, लहसुन, प्याज आदि के उन्नत शील किस्मों के प्रमाणित बीज राज्य के कृषकों को उपलब्ध नहीं करा पा रहा है।
विभाग द्वारा आपूर्ति किये गये सब्जी बीजों की गुणवत्ता पर कई बार प्रश्नचिन्ह भी लगते रहते है, क्योंकि बीज कृषकों को विभागीय योजनाओं में मुफ्त (निशुल्क) में बितरित किया जाता है, साथ ही विभागीय योजनाओं में मिलने वाला लाभ आगे के लिए बन्द न हो, इसलिए कृषक भी बीजों की निम्न गुणवत्ता पर कम ही सवाल उठाते हैं।
पुष्प उत्पादन की योजना-
राज्य में कृषकों की आय दुगनी करने के उद्देश्य से उद्यान विभाग द्वारा पुष्प उत्पादन की कई योजनाएं चलाई जा रही है। योजनाओं में फूलों के हाइब्रिड बीज क्रय कर कृषकों को निशुल्क वितरित किए जा रहे हैं।
गेंदे की खेती पर विशेष जोर दिया जा रहा है इस के पीछे का कड़ुआ सच यह है कि विभाग दस हजार रुपए से लेकर एक लाख रुपए प्रति किलो ग्राम की दर से बहुराष्ट्रीय बीज कंपनियों से हाइब्रिड गेंदें का बीज क्रय कर कृषकों को निशुल्क वितरित कर रहा है। जिस पर बीज क्रय करने वालौं (आहरण वितरण अधिकारियों) को 40 % तक का कमिशन मिलता है।
गेंदे की व्यवसायिक खेती के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा पूसा नारंगी एवं पूसा बसंती दो किस्मौ की संस्तुति की गई है तथा गेंदे की खेती करने वाले कृषक इन्हीं किस्मौं से गेंदे की व्यवसायिक खेती कर रहे हैं। इन किस्मौ का प्रर्याप्त गेंदे का बीज संस्थान में 1200 से 1500 रुपए प्रति किलो ग्राम की दर से उपलब्ध रहता है।
उद्यान विभाग, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की दरों 1200- 1500 रुपए प्रति किलो ग्राम से गेंदें फूल का बीज न क्रय कर बहु राष्ट्रीय कम्पनियों से दस हजार से एक लाख रुपए प्रति किलो ग्राम की दर से गेंदे के हाइब्रिड बीज अपने कमिशन के चलते खरीद रहा है।
योजनाओं में खुले आम डाका डाला जा रहा है राज्य में लगता है जैसे कोई देखने वाला है ही नहीं, न पहले वाली सरकारों को विकास योजनाओं में कहीं भ्रष्टाचार दिखाई दिया न अब भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस कहने वालौं को दिखाई दे रहा है ।
राज्य बनने पर आश जगी थी, कि विकास योजनायें राज्य की विषम भौगोलिक परिस्थितियों अनुसार कृषकों के हितों को ध्यान में रख कर बनेंगी, किन्तु दुर्भाग्य से राज्य को हिमाचल प्रदेश की तरह, डा० परमार जैसा दक्ष व अनुभवी नेतृत्व नहीं मिल पाया जिसका प्रशासकों ने पूरा लाभ उठाया , योजनाएं वैसे ही चल रही है जैसे उतर प्रदेश के समय में चल रही थी। कृषकों की आवश्यकता अनुसार योजनाओं में सुधार नहीं हुआ।
विभाग योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए कार्ययोजना तैयार करता है ,कार्ययोजना में उन्हीं मदों में अधिक धनराशि रखी जाती है जिसमें आसानी से संगठित /संस्थागत भ्रष्टाचार किया जा सके या कहैं डाका डाला जा सके।
यदि विभाग को/शासन को सीधे कोई सुझाव/शिकायत भेजी जाती है तो कोई जवाब नहीं मिलता। माननीय प्रधानमंत्री जी /माननीय मुख्यमंत्री जी के समाधान पोर्टल पर सूझाव शिकायत अपलोड करने पर शिकायत शासन से संबंधित विभाग के निदेशक को जाती है वहां से जिला स्तरीय अधिकारियों को वहां से फील्ड स्टाफ को अन्त में जबाव मिलता है कि किसी भी कृषक द्वारा कार्यालय में कोई लिखित शिकायत दर्ज नहीं है सभी योजनाएं पारदर्शी ठंग से चल रही है।
उच्च स्तर पर योजनाओं का मूल्यांकन सिर्फ इस आधार पर होता है कि विभाग को कितना बजट आवंटित हुआ और अब तक कितना खर्च हुआ।
राज्य में कोई ऐसा सक्षम और ईमानदार सिस्टम नहीं दिखाई देता जो धरातल पर योजनाओं का ईमानदारी से मूल्यांकन कर योजनाओं में सुधार ला सके।
वर्तमान में चल रही योजनाओं से नौकरशाहों एवं योजनाओं में निवेश आपूर्ति कर्त्ताओं (दलालों)का ही आर्थिक लाभ हो रहा है।
कृषकों के हित में जब तक योजनाओं में सुधार नहीं किया जाता व क्रियान्वयन में पारदर्शिता नहीं लाई जाती कितनी भी योजनाएं चला लो कृषकों की आय दुगनी होगी उम्मीद रखना बेमानी होगी।