गिरीश गैरोला
उत्तरकाशी। पूरे देश में कोरोना के खिलाफ जंग के मैदान में आमने-सामने उतरे कोरोना वारियर्स को जनता से मिलते सम्मान की बात कुछ बड़े बाबूओं को नागवार गुजरने लगी है, लिहाजा हुकूमत की पावर दिखा कर सेवा करने वालों को दरकिनार करने की कोशिश की जाने लगी है।
दरअसल करीब 100 साल के अंतराल में होने वाली इस तरह की महामारी से निपटने का कोई पुराना अनुभव मौजूद न होने की वजह से फील्ड में मिल रहे अनुभव के आधार पर स्थानीय स्तर पर ही एक्सपर्ट के विवेक से तय किया जा रहा है कि इस मामले से किस तरह से निपटा जाए !
हादसों और आपदाओं से जूझ रहे उत्तरकाशी जिले में देवी आपदाओं की तर्ज पर ही कोरोना से जूझने का उपार किया जा रहा है, जबकि कोरोना एक मेडिकल डिजास्टर है, जिसमें मेडिकल से जुड़े तकनीकी जानकारों को ही निर्णय लेने की छूट दी जानी चाहिए।
डाक्टर और प्रशासन के बीच पावर गेम !!
लेकिन क्या धरातल पर ऐसा हो रहा है? बाहरी व्यक्ति के जिले में प्रवेश के साथ ही संभावित संदिग्ध के साथ कौन सा परीक्षण और कौन सा उपचार किया जाना है, इसका अंतिम फैसला डॉक्टर्स की टीम को ही करने की इजाजत होनी चाहिए या राजस्व अधिकारी को?
ऐसे में कई बार हालात हास्यास्पद बनने लगे हैं। दरअसल कोरोना वार में आमने-सामने खड़े डॉक्टर्स, पुलिसकर्मी सफाई कर्मी, और मीडिया कर्मियों को समाज में अलग-अलग स्थानों पर पुष्प वर्षा और पुष्प हार से सम्मानित किया जा रहा है, जो कुछ लोगों को हजम नहीं हो रहा है। लिहाजा हुकूमत के साथ पावर गेम का प्रयोग कर पूरी मेहनत का श्रेय खुद लेने के लिए बजट न सिर्फ बजट पर कुंडली मारी जा रही है, बल्कि तकनीकी रूप से सक्षम डॉक्टर्स के फैसलों को भी रद्दी की टोकरी में डाल दिया जा रहा है।
डाक्टर पीपीई किट मास्क से भी महरूम
हालात यह हैं कि जिला अस्पताल में मैक्सिमम एक्सपोज हो रहे डॉक्टर्स के पास न तो पर्याप्त मास्क हैं, न सर ढकने का और ना ही पीपीई किट।
उत्तरकाशी जिले में इसी विवाद के चलते प्रशासन और मेडिकल से जुड़े लोगों में तनातनी साफ तौर पर महसूस की जा सकती है।
डाक्टर को जांच के बजाय किया क्वारंटाइन, उनके ड्राइवर को ऐसे ही छोड़ा
उत्तरकाशी के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ शिव प्रसाद कुड़ियाल ने बताया कि उत्तरकाशी जिले के बॉर्डर पर जैसे ही उनकी गाड़ी पहुंची तो वहां मौजूद राजस्व विभाग के कर्मचारियों ने उन्हें चिन्यालीसौड़ में ही 14 दिन क्वॉरेंटाइन करने का फरमान सुना दिया, जबकि डॉक्टर साहब की गाड़ी चला रहे वाहन चालक को ऐसे ही छोड़ दिया।
किस को गाइडलाइंस के अनुसार आवश्यक सेवा मानते हुए छूट दी गई है और किसे नहीं यह तो साफ लिखा गया है तो फिर क्या लोगों के स्वास्थ्य की चिंता के बजााए मौका मिलने पर पावर गेम दिखाने की कोशिश की जा रही है? कहीं ऐसा तो नहीं कि अपने परिजन मरीज को लेकर डॉक्टर के क्लीनिक में खड़ा रहने की सजा दी जा रही है, देख लो हम भी कुछ है?
डाक्टर ने उठाए गंभीर सवाल
डॉक्टर शिव कुडियाल को 3 दिनों तक जिला अस्पताल क्वॉरेंटाइन में रखा गया। इस दौरान उनका भोजन बनाने वाले व्यक्ति को भी क्वॉरेंटाइन के लिए भेज दिया गया। डॉक्टर शिव कुड़ियाल ने बताया कि सैंपल रिपोर्ट नेगेटिव आने तक उन्होंने सिर्फ मैगी खाकर काम चलाया है। स्वास्थ्य को लेकर सजग और कोरोना महामारी के लिए चिंतित महानगरों में तो पुलिस और अन्य विभाग के वे लोग उन लोगों को भी अपने घर जाने की इजाजत नहीं है, जो सीधे पब्लिक या बाहरी लोगों के संपर्क में आ रहे हैं। तो क्या ऐसा उत्तरकाशी में भी हो रहा है? जो लोग भोजन पैकेट बांट रहे हैं अथवा बाहर से आने वाले लोगों की जांच कर रहे हैं या सैनिटाइज कर रहे हैं, क्या वह भी क्वॉरेंटाइन में जा रहे हैं। यदि नहीं तो सिर्फ डॉक्टर्स पर ही यह नियम क्यों कैसे?
नियम का पालन करने में कोई हर्ज नहीं है, किंतु किसी पावर गेम को साधने के लिए नियमों की आड़ लेना क्या उचित है?
बताते चलें उत्तरकाशी जिला अस्पताल में डॉक्टर शिव कुड़ियाल सबसे वरिष्ठ डॉक्टर हैं और उन्होंने सीएमएस का पद सिर्फ इसलिए छोड़ दिया, क्योंकि बार-बार मरीजों को छोड़कर उन्हें डीएम की मीटिंग में जाना पड़ता था। उनके पास रेडियोलॉजी और सीटी स्कैन जैसे महत्वपूर्ण कार्यों का दायित्व भी है। इसलिए उन्होंने अपने अधीनस्थ दूसरे डॉक्टर के लिए सीएमएस का पद छोड़ दिया।
डॉ कुड़ियाल ने बताया उन्हें बैक पेन के चलते एक्सपर्ट डॉक्टर ने रेस्ट करने की सलाह दी थी, किंतु उन्होंने देश भर में चल रहे कोरोना वार में अपना योगदान देने के लिए अस्पताल आना ज्यादा बेहतर समझा, किंतु यहां आने के बाद न तो उन्हें पर्याप्त मास्क दिए जा रहे हैं, न सर ढकने के लिए और न पीपीई किट, उन्हें एक मास्क को 3 से 4 दिन तक प्रयोग करना पड़ रहा है।
जिला अस्पताल की स्थिति को इससे बेहतर और कैसे समझा जा सकता है, जब विदेश में रहने वाली एक बेटी को उत्तरकाशी जिला अस्पताल वार रूम में ड्यूटी दे रहे अपने चीफ फार्मासिस्ट पिता को मास्क देने के लिए डीएम उत्तरकाशी से निवेदन करना पड़ा।
देशभर में बड़ी तादाद में लोग महामारी से निपटने के लिए दान दे रहे हैं। उसके बावजूद भी जिले में डॉक्टर्स को ही पूरे किट नहीं दी जा रही है। अस्पतालों को बजट के लिए बार-बार डीएम ऑफिस का रुख करना पड़ रहा है।
बाहरी जिले से आने वाले लोगों का स्वैब टेस्ट कर 3 दिन के भीतर आने वाली रिपोर्ट से मरीज के संक्रमण का पता चल जाता है, किंतु सैंपल टेस्ट का खर्च बचाने के लिए ही लोगों को 14 दिन तक क्वॉरेंटाइन करवाया जा रहा है। इसके लिए जिला अस्पताल, आयुर्वेदिक अस्पताल पंचकर्म के साथ गढ़वाल मंडल विकास निगम को भी उपयोग में लाया जा रहा है।
पावर गेम साधने को नियमों की आड़
अफसोस है कि दानवीरों का दान उन डॉक्टर्स के लिए मास्क नहीं खरीद पा रहा पीपीई किट नहीं खरीद पा रहा है और सबसे बड़ी बात कि बाहर से आने वाले लोगों का स्वैब टेस्ट का खर्च बचाया जा रहा है।
डॉक्टर शिव ने बताया कि कोरोना वायरस एक मेडिकल डिजास्टर है, लिहाजा मरीज के साथ किस तरह का व्यवहार और किस तरीके से इलाज किया जाना चाहिए, इसके लिए सीएमओ और वरिष्ठ डॉक्टरों को अनुमन्य किया जाना चाहिए। साथ ही उन्हें अपने अनुभव के आधार पर बजट का उपयोग करने की छूट होनी चाहिए, तभी कोरोना वार पर जिले की रणनीति को लेकर किसी को साबाशी अथवा उत्तरदाई ठहराया जा सकता है।
कोरोना वारियर्स भट्ट ने भी उठाई डाक्टरों की समस्या
कोरोना राहत में सक्रिय भूमिका निभाने वाले जिला पंचायत सदस्य संगठन के प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप भट्ट भी प्रशासनिक लापरवाही को लेकर काफी नाराज हैं।