प्रवासियों का घर लौटना निकट भविष्य की कई चुनौतियों में से एक है। ध्यान अब ग्रामीण इलाकों में स्थानांतरित हो गया है। जब लाखों प्रवासी घर लौट जाएंगे , तब क्या होगा ? ज्यादातर के पास पैसे नहीं हैं। वे क्या करेंगे ? सरकार ने प्रधान जी को प्रवासियों को या आने वाले व्यक्ति को क्वारनटाइन करने की जिम्मेदारी दी है। अच्छी बात है, परन्तु क्या प्रधान बिना बजट के कब तक इस व्यवस्था को चला सकता है !
क्वारनटाइन होने वाले व्यक्ति को जब घर से ही खाने रहने की व्यवस्था की जानी है तो सोशियल डिस्टेंस के टूटने के चांस बढ़ जायेंगे।
लेकिन प्रधान जी भी किसी से यह नही कह सकते हैं कि आप क्वारनटाइन केंद्र मे मत आओ क्योंकि खाना आदि की व्यवस्था करने के लिये बजट की व्यवस्था नही है।
पिछले दिनों उत्तराखंड एक गांव मे बनी एक झोपड़ी की तस्वीर काफी वायरल हुई थी, जिसमें झोपड़ी के बाहर क्वारंटाइन का बोर्ड लगा हुआ था और बगल में एक व्यक्ति बैठा हुआ था। हालांकि बाद में संबंधित ग्राम प्रधान ने दावा किया कि यह फोटो किसी शरारती तत्व ने खींची है और ऐसा उनके गांव में नहीं हुआ है।
बहरहाल इस फोटो की हकीकत जो भी हो लेकिन बिना संसाधनों के होम क्वॉरेंटाइन किए हुए प्रवासी अधिकांशत मूलभूत सुविधाओं से भी वंचित होकर रहने को मजबूर हैं।
समाजसेवी तथा “बौडी आवा” अभियान चला रहे सुशील बहुगुणा ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर मांग की है कि वह मुख्यमंत्री राहत कोष मे से कम से कम एक लाख की धनराशि प्रवासियों हेतु सीधे प्रधान जी के खाते मे भेजने का प्रबंध करने करेंगे।
प्रवासियों का आने वाले महीनों में उनका परिवार कैसे जीवित रहेगा ? गांव उनके लिए कितना तैयार है !
गांव लौटने वाले कितने प्रवासी श्रमिकों को खेती में काम मिलेगा और कृषि उत्पाद को समय पर बाजार उपलब्ध कराने के लिए क्या किया जा रहा है ?
इस बात को लेकर काफी चर्चा हो रही है कि गांव लौटने वाले प्रवासी श्रमिकों को मनरेगा के तहत काम दिया जा रहा है। लेकिन जमीनी हकीकत उत्साहजनक नहीं है।
सुशील बहुगुणा कहते हैं कि तैयारी अपूर्ण है और भविष्य तनावपूर्ण है। ऐसे मुश्किल वक्त में वह गांव मे ही रुक पाये, इसके लिये प्रधान जी को एक प्रधान निधि के नाम से कम से कम 10 लाख का रिवॉल्विंग फण्ड देना चाहिए। चाहे कोरोना की वजह से ही हमें उत्तराखंड मे पलायन को रोकना है।
सुशील बहुगुणा कोरोना का सकारात्मक पक्ष गिनाते हुए कहते हैं कि कोरोना के कारण कुछ अच्छा भी हुआ है कि हमें एक साथ प्रवासी लोग मिले हैं, जो अपने गांव को छोड़कर चले गये थे। उनसे पहाड़ मे रुकवाने का यह अच्छा मौका है।
बहुगुणा कहते है कि प्रधान लोग कोरोना महामारी मे अपनी जिम्मेदारी का निर्वाहन अच्छी ढंग से कर रहे हैं। आपको भी उनको धनराशि निर्गत कर उनका साथ देना चाहिए।
कल्जीखाल ब्लॉक के ग्राम प्रधान नरेंद्र सिंह नेगी सेवानिवृत्त कैप्टन है उन्होंने भी शासन से सहयोग की अपील की है।
कांग्रेस के किशोर उपाध्याय ने उठाई मांग
कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय ने भी मुख्यमन्त्री और सरकार पर कोरोना की महामारी में ग्राम पंचायतों को संकट में डालने का आरोप लगाया है और कहा है कि ग्राम प्रधानों पर ज़िम्मेदारी तो डाल दी गयी, लेकिन उन्हें संसाधन उपलब्ध नहीं किये गये हैं।
प्रधान संगठन के पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष जगदंबा डंगवाल ने वर्तमान अव्यवस्था के चलते ग्राम सभाओं में आपस में मतभेद और कलह पैदा होने की आशंका जताई है।
उन्होंने सरकार से मांग की है कि पंचायत भवनों की स्थिति ठीक नहीं है और वह गांव से निर्जन स्थानों पर भी हैं, इसलिए ब्लॉक स्तर पर राजकीय इंटरमीडिएट कॉलेजों को क्वॉरेंटाइन सेंटर बनाया जाना चाहिए और क्वारंटाइन अवधि समाप्त होने के बाद ही सभी मेडिकल जांच कराने के उपरांत गांव में जाने की अनुमति दी जानी चाहिए, ताकि गांव में आपसी भाईचारा बना रहे और इस बीमारी से लड़ा जा सके।
प्रधान की जिम्मेदारी
गौरतलब है कि प्रधानों को जिम्मेदारी दी गई है कि वे सामुदायिक स्थानों पर बिजली पानी साफ-सफाई आदि की व्यवस्था करेंगे और क्वॉरेंटाइन में आए खर्चे का ब्यौरा डीएम को उपलब्ध कराएंगे।
उपाध्याय ने सीएम को पत्र लिखकर कहा है कि राहत कोष में इस निमित अच्छा-ख़ासा पैसा आ भी गया है।अभी तक एक भी पैसा ग्राम प्रधानों को निर्गत नहीं हुआ है। आज भी मैंने प्रदेश के हर कोने के लगभग 36 प्रधानों से बात की है।अब जगह-जगह झगड़े होने शुरू हो गये हैं। एक-आध दिन तो रहने-खाने की व्यवस्था लोग कर लेंगे, लेकिन इतनी लम्बी अवधि तक कैसे व्यवस्था होगी !
रजनी कांत तिवाड़ी कहते हैं कि प्रधानों के लिए कोई स्पष्ट गाइडलाइन नहीं है। यदि एक गांव में तीन व्यक्ति अलग-अलग जोन से आएंगे तो भला वह एक ही क्वॉरेंटाइन सेंटर में किस तरह से 14 दिन रहेंगे, इस पर कोई स्पष्टता नहीं है, जिसके कारण गांव में कलह होना सुनिश्चित है।
कई जगह तो महिलायें भी आ रही हैं और उनके लिये अलग से व्यवस्था लाज़मी है। फिर उपाध्याय ने मुख्यमंत्री से तत्काल एक -एक लाख रुपये ग्राम प्रधानों के खाते में डलवाने के लिए अनुरोध किया है।