उत्तराखंड के सहकारी बैंकों में विगत काफी लंबे समय से सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। विगत 2 सालों में कई ऐसे निर्णय हुए हैं, जिनसे सरकारी बैंकों पर जल्दी ही दिवालिया होने की नौबत आ सकती है।
क्या है असल कारण
इन निर्णयों के पीछे असली कारण भारी भरकम कमीशन खोरी और भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप निकल कर सामने आ रहे हैं।
चाहे बैंकों का सीबीएस कराने वाली कंपनी बदलने का निर्णय हो या फिर बैंकों के एटीएम मशीनों को बदलने का निर्णय। यह सारे कार्य सरकारी बैंकों cooprative bank uttarakhand में सरकार और उच्च स्तरीय अधिकारियों के द्वारा किए जा रहे हैं और इन कार्यों का बैंक के कर्मचारी और कर्मचारी यूनियन विरोध कर रहे हैं लेकिन फिर भी कोई इनकी सुनने को राजी नहीं है। आखिर क्यों !!
कौन है इस फैसले के पीछे
इस निर्णय के पीछे एक मोहरा उत्तराखंड सचिवालय का अपर सचिव बीएम मिश्र है जो उत्तर प्रदेश से दो चार साल पहले ही उत्तराखंड आए हैं और नौ महीने बाद इनका रिटायरमेंट है।
बीएम मिश्र ने सहकारी बैंक का कोई भी घोटाला नहीं खोला और किसी भी भ्रष्ट अफसर पर एक तरह से संरक्षण का ही वरदहस्त रखा है फिर आखिर इन अफसर को सहकारी बैंक का भला करने का राग क्यों शुरू करना पड़ रहा है !
नौ महीने मे रिटायरमेंट। अब भलाई का जुनून
आखिर नौ महीने बाद ही रिटायर होने वाले यह अधिकारी सहकारी बैंकों की भलाई के नाम पर एक अच्छी खासी कंपनी को क्यों बदल रहे हैं ! जबकि इसका चौतरफा विरोध हो रहा है। आखिर इन अफसर के पीछे कौन खड़ा है !
किसी भी बैंक में अथवा संस्थान में इस तरह के निर्णय तभी लिए जाते हैं जब कर्मचारियों को कोई दिक्कत हो सहकारी बैंकों में या दुर्लभ उदाहरण सामने आ रहा है कि बैंकों के कर्मचारियों को अपने उच्च स्तरीय अधिकारियों और शासन तथा सरकार के निर्णयों का विरोध करना पड़ रहा है लेकिन इसके बावजूद शासन और सरकार अपने निर्णय बैंकों पर थोप रही है, जिसका कोई आधार नहीं है।
किसी को नही परेशानी, अफसर क्यों परेशान
आखिरकार जब बैंकों को पुराने एटीएम और पुराने सॉफ्टवेयर में काम करने में कोई दिक्कत नहीं है और वह इनको बदले जाने का खुलेआम विरोध कर रहे हैं तो फिर आखिर क्यों इस तरह के निर्णय सहकारी बैंकों पर थोपे जा रहे हैं !
अहम सवाल यह है कि विप्रो का यह फिनेकल सॉफ्टवेयर 10 राष्ट्रीय बैंकों में सफलतापूर्वक संचालित किया जा रहा है। फिर इसे सहकारी बैंक मे ही क्यों बदला जा रहा है ! अपर सचिव महोदय को यह भी तो बताना चाहिए कि आखिर उनके द्वारा लाए जा रहे टीसीआईएल में क्या गुण है !
आखिर इसके पीछे किसका हित निहित है !
कर्मचारी यूनियन भी इसके विरोध में है लेकिन उनकी कोई सुनने को राजी नहीं। इसके पीछे भारी-भरकम कमीशन खोरी और भ्रष्टाचार के आरोप तेज हो रहे हैं। यदि वाकई ऐसा है तो यह जीरो टोलरेंस के नाम पर सबसे बड़ा धब्बा है।
क्या है हकीकत
उदाहरण के तौर पर सहकारी बैंकों में विप्रो की जगह टीसीआईएल से सीबीएस कराने की तैयारी की जा रही है। जबकि हकीकत यह है कि विप्रो कंपनी ने ही वर्ष 2013 में सहकारी बैंकों को सीबीएस कराया था और इसके सॉफ्टवेयर से कर्मचारी अच्छी तरह परिचित भी है तथा उन्हें कोई दिक्कत नहीं है। न हीं किसी दूसरे वर्जन की जरूरत है।
नाबार्ड ने भी उठाये सवाल
कर्मचारियों ने इस बदलाव का विरोध किया है तथा नाबार्ड nabard ने भी सहकारी बैंक से कंपनी बदलने का कारण पूछा है और साथ ही यह पूछा है कि इस बदलाव से बैंकों पर क्या आर्थिक प्रभाव पड़ेगा !
सारे कर्मचारियों का यह कहना है कि अगर यह बदलाव होता है तो इससे बैंकों को भारी परेशानी और नुकसान उठाना पड़ेगा लेकिन सहकारी बैंक के निबंधक बीएम मिश्र इस सॉफ्टवेयर कंपनी को बदलने पर तुले हुए हैं।
बडा सवाल
बड़ा सवाल यह है कि क्या सचिवालय के एयर कंडीशनर रूम में बैठकर आखिर बीएम मिश्र को सहकारी बैंकों में हस्तक्षेप करने की जरूरत क्यों आन पड़ी है ! रिटायरमेंट के आखिरी नौ महीने पर इस दीए की लौ क्यों इतना फड़फड़ा रही है !
आखिर उन्हें यह बदलाव करने के लिए किसने कहा ! जब किसी को शिकायत नहीं है तो आखिर बीएम मिश्र जो खुद ही नौ महीने बाद रिटायर होने वाले हैं उनको यह बदलाव करने की जरूरत क्यों पड़ी हुई है !
क्या इसके पीछे बहुत बड़ा भ्रष्टाचार कारण है या बहुत बड़ा जनहित !!
जब पल्ला झाड़ना होता है तो शासन के अधिकारी कहते हैं कि उन्हें तो पॉलिसी मैटर में ही ध्यान देना होता है। तो फिर सहकारी बैंकों के कामकाज में इस तरह का हस्तक्षेप निबंधक किसके इशारे पर कर रहे हैं !
बीएम मिश्र का कहना है कि खराब कनेक्टिविटी के कारण विप्रो को बदला जा रहा है।
बड़ा सवाल यह है कि जब किसी भी तरह की समस्या होने से सहकारी बैंक के कर्मचारी अधिकारी और यूनियन साफ मना कर रहे हैं और इस फैसले का विरोध कर रहे हैं तो फिर यह निर्णय सहकारी बैंक के लिए कितना फलदायक होगा ! अथवा यह किस अधिकारी अथवा सरकार में शामिल किस मंत्री या नेता के लिए फलदायक होगा !! यह एक बड़ा सवाल है और उत्तराखंड के लिए बहुत बड़ा दुर्भाग्य भी।
पर्वतजन जल्दी ही आपको ऐसे और निर्णय के बारे में भी हमको कराना
ऐसे निर्णय एक दिन सहकारी बैंकों को डुबो देंगे। और यह मंत्री और अधिकारी भी कार्यकाल समाप्त करके तब तक जा चुके होंगे।
बुरा होगा तो उन सभी कर्मचारियों अधिकारियों का जो इस जो इन बैंकों में काम करते हैं और रोजगार पाते हैं। साथ ही बुरा होगा तो उत्तराखंड के आम गरीब किसान और छोटे व्यवसाई का, जो अपनी विभिन्न योजनाओं के लिए इन बैंकों के भरोसे रहता है।