रमेश पांडेय”कृषक”
29 अगस्त 2019 उत्तराखंड के लिए एक नयी उमीद की किरण लेकर आया था। उत्तराखंड उच्च न्यायालय नैनीताल ने एक अभूतपूर्व व ऐतिहासिक फैसला दिया।
6 महीने के भीतर राज्य सरकार को मद्यनिषेध नीति बनाने के निर्देश दिए। लेकिन नीति न बनाने पर अब अधिवक्ता डीके जोशी अवमानना याचिका दाखिल की है।
वर्ष 2017 मे हाई कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता और समाजसेवी डी के जोशी ने शराब के जहरीले कारोबार पर रोक लगाने के लिए एक जनहित याचिका दायर की थी।
जिसका सुखद परिणाम यह हुआ कि ठीक एक साल पूर्व 29 अगस्त 2019 को हाई कोर्ट ने राज्य को निर्देश दिए कि 6 माह के भीतर मद्यनिषेध नीति बनाये, साथ ही अन्य महत्वपूर्ण निर्देश दिए जैसे प्रदेश में संचालित सभी शराब *दुकान व बार रेस्टोरेंट में IP address युक्त CCTV लगाने के भी आदेश दिए गए।
*21 वर्ष से कम* आयु वाले व्यक्ति को शराब सेवन खरीदने के *प्रतिबंध को सख्ताई से पालन* करने हेतु निर्देश जारी किए गए।
*बद्रीनाथ,केदारनाथ,गंगोत्री,यमनोत्री,पूर्णागिरी,रीठा साहेब,हेमकुंड साहेब व नानकमत्ता तीर्थ स्थलों में शराब बंदी* लागू करने के भी निर्देश दिए।
लेकिन सरकार के महत्वपूर्ण पदों पर बैठे हुक्मरानों ने तो वही करना था जो वो अभी तक करते आये हैं। हाई कोर्ट के फैसले का भी उनपर कोई असर नही हुआ।
इसलिए हुआ अवमानना नोटिस जारी
29 फरवरी 2020 को 6 महीने की मियाद भी पूरी हो गयी थी लेकिन हाई कोर्ट के 29 अगस्त के फैसले के क्रम न कोई नीति बनी और न ही अन्य निर्देशो का पालन हुआ । ऐसे में एक बार पुनः शराब विरोधी आंदोलन को बहुत बड़ा झटका लगा लेकिन डीके जोशी हार कहां मनाने वाले थे। अभी जुलाई 2020 में उनके द्वारा पुनः हाई कोर्ट में सरकार के खिलाफ अवमानना याचिका दाखिल की है ।
कोर्ट ने सचिव आबकारी को अवमानना नोटिस जारी किए हैं। उम्मीद अभी भी बरकरार है कि पहाड़ी प्रदेश देवभूमि उत्तराखंड इस नशे के प्रकोप से मुक्त हो जाय।
ढाई सौ करोड़ से चार हजार करोड़ पंहुचा शराब से राजस्व
सड़क से कोर्ट तक की लड़ाई इतनी आसान भी नही होती लेकिन डीके जोशी कहते है कि राष्ट्र पिता महात्मा गांधी के सपनो के भारत में शराब व नशे का स्थान कहाँ, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 47 जहाँ मद्यनिषेध की बात करता है वही उत्तरप्रदेश आवकारी अधिनियम 1910( उत्तराखंड में भी लागू) के धारा 37 (क) में भी चरणबद्ध मद्यनिषेध का प्रावधान है लेकिन ये सब कागजों- किताबों से बाहर नहीं निकल पाया और साल दर साल शराब की बिक्री से राजस्व का लक्ष्य जो उत्तराखंड बनते समय 257 करोड़ का था वही इन 19-20 वर्षों में बढ़कर 4 हज़ार को भी पार कर गया है। हम किस अपने समाज को ले जा रहे हैं।
मद्य निषेध पर भी निराश किया त्रिवेंद्र सरकार ने
शराब के राजस्व पर पहाड़ी प्रदेश सरकार की निर्भरता अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है।
कम से कम मद्यनिषेध पर लोगों को बहुत आशा इस प्रचंड बहुमत वाली त्रिवेंद्र सरकार से थी वो भी तब जबकि 29 अगस्त 2019 के फैसले के बाद जब सरकार को इस संबंध में स्पष्ठ निर्देश दिए गए थे लेकिन सरकार ने अपना जनविरोधी ढर्रा कायम रखा है।
कौन हैं अधिवक्ता डी के जोशी
देवभूमि उत्तराखंड जो एक लंबी लड़ाई के बाद 9 नवम्बर 2000 को अलग पहचान के सपनों को संजोए हुए यहाँ के लोगों को आखिरकार मिल ही गया, लेकिन यहां की स्थिति में उत्तर प्रदेश के समय की स्थिति से ज्यादा सुधार नहीं हुआ। बल्कि यूं कहें कि विकास केवल माफियाओं, नेताओं व अफसरों का ही हुआ। न जल जंगल जमीन के मुद्दों पर कार्य हुआ, न अवैध खनन, तस्करी व शराब के वैध -अवैध व्यापार में कमी आयी।
स्थिति इन 19-20 सालों में बद से बदतर ही हुई है फिर भी संघर्ष की परिपाटी यहाँ के लोगों ने छोड़ी नहीं है, बल्कि अभी भी इस आशा के साथ कि हम अपने सपने के उत्तराखंड का निर्माण जरूर करेंगे , यहाँ कई हितैषी निःस्वार्थ भाव से लगे हुए है। जिनमे से एक नाम है उत्तराखंड के सुदूरवर्ती जिला बागेश्वर के गरुड़ विकास खंड के ग्राम दर्शानी से ताल्लुक रखने वाले अधिवक्ता दया कृष्ण जोशी (डीके जोशी) जो उत्तराखंड उच्च न्यायालय नैनीताल में वकालत के पेशे से जुड़े है और विगत 22 ( 15 अगस्त 1997) सालों से व्यसनमुक्त समाज के निर्माण में अथक प्रयास कर रहे हैं।
अधिवक्ता डीके जोशी द्वारा नशे के खिलाफ न केवल जनजागरण , सेमिनार, सड़क पर आंदोलन बल्कि स्वयं के प्रयासों से जनहित याचिका के माध्यम से भी लंबा संघर्ष किया है।
लगातार संघर्ष व आंदोलन के बावजूद भी जब सरकार की नीतियों से कोई उम्मीद नहीं नज़र आयी तो आखिरकार डीके जोशी ने 2017 में उत्तराखंड हाई कोर्ट नैनीताल में शराब के कारोबार से बरबाद हो रहे लोगों घरबार को रोके जाने व इस जहरीले कारोबार पर रोक लगाए जाने के उद्देश्य से खुद के नाम से एक जनहित याचिका(डीके जोशी बनाम राज्य व अन्य, संख्या 83/2017) दाखिल की ।
बताते चलें कि अधिवक्ता दया कृष्ण जोशी के अनुसार उनके जीवन का परम लक्ष्य व्यसनमुक्त समाज का निर्माण करना है और वह प्रतिवर्ष अपना जन्मदिन 21 अक्टूबर के दिन व्यसनमुक्त लोगों को सम्मानित कर मनाते हैं।