मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत पूरी तरह से शराब कारोबारियों की मुट्ठी में कैद हो चुके हैं। शराब कारोबारी करोड़ों का उपकर घोटाला कर रहे हैं लेकिन त्रिवेंद्र सरकार उन्हें बचा रही है।
उदाहरण के तौर पर मां शीतला उद्योग ने एक ही नंबर के चालान नौ-नौ जिलों में लगाकर उत्तराखंड के राजस्व को करोड़ों का चूना लगाया है, लेकिन सरकार कोई कार्यवाही करने को तैयार नहीं। जबकि यह मामला कूट रचना, धोखाधड़ी और सरकार को नुकसान पहुंचाने का है।
आबकारी के सेस(उपकर) घोटाले पर कोई कार्यवाही नही। टैक्स चोरी चरम पर
आबकारी विभाग मे 2019 के सितम्बर माह मे खुलने वाले सेस घोटाले मे जिम्मेदार अफसरों द्वारा मुख्यमंत्री कार्यालय के इशारे पर फ़ाईल दबाकर लीपपोती करने का प्रयास किया जा रहा है।
विदित है कि राज्य मे 2015 से शराब की बिक्री पर 2% का आपदा सेस लागू किया गया था। राज्य की शराब निर्माता कम्पनी माँ शीतला उद्योग के निदेशकों द्वारा पहले तो सेस देयता हेतु जमा किये जाने वाले चालानों मे कूटरचना करके एक ही चालान को एक से अधिक जनपदों में प्रयुक्त करते हुए भारी अनियमितता की गई और राज्य के विभिन्न जनपदों में ₹1.82 करोड़ का गबन कर लिया गया और राजस्व की क्षति की गई।
जब कुछ सतर्क और जिम्मेदार अधिकारियों के द्वारा मामले की जानकारी आबकारी मुख्यालय को दी गयी तो मामले की गम्भीरता को देखते हुये आबकारी आयुक्त ने इसकी जांच हेतु कुमाऊं मंडल के संयुक्त आबकारी आयुक्त के के कांडपाल की अध्यक्षता मे दिनांक 21 सितंबर को एक जांच कमेटी का गठन कर दिया।
उक्त शराब निर्माता इकाई द्वारा भांडा फूट जाने के बाद आनन फानन मे सेस की गबन की गयी धनराशि को जाँच कमेटी बनने की भनक लगने पर दिनांक 20 और 29 सितम्बर को जमा करा दिया गया।
दोष सिद्ध, बचा रहे गिद्ध
एक वर्ष की लम्बी जाँच के बाद उक्त शराब निर्माता इकाई पर चालानों को एक से अधिक जनपदों में कूट रचना करके धोखाधड़ी करने का दोष सिद्ध हुआ है।
ये है घोटाला
वर्ष 2018-19 में 68 चालान, बस 2019-20 में 47 चालानों का मां शीतला संबंधित तीन कंपनियों द्वारा एक से अधिक जनपदों में उपयोग किया गया। इनमें चालान नंबर, जमा धनराशि और जमा तिथि एक समान हैं, लेकिन चालानो में जनपद अलग-अलग अंकित हैं। एक नंबर का चालान तो नौ अलग-अलग जनपदों में उपयोग किया गया है।
जिस पर आबकारी सचिव ने आबकारी आयुक्त को नियम 34 के अन्तर्गत आवश्यक विधिक कार्यवाही करने के आदेश दिये हैं, जिसमे नियमानुसार इस इकाई को काली सूची मे डालकर इसके निदेशकों के ऊपर धोखाधड़ी की धाराओं मे प्राथमिकी दर्ज करने का प्रावधान है।
जांच की ठंडी आंच
लेकिन आश्चर्य की बात है कि कोई कार्यवाही होती नही दिख रही है। जिसका कारण इस निर्माता इकाई के निदेशक के ऊपर मुख्यमंत्री का हाथ होना बताया जा रहा है।
हाल ही में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने जनता की जेब से पैसे वसूलने के लिए शराब की बिक्री पर आपदा टैक्स के बाद अब 0.5% खेल टैक्स लागू कर दिया है। लेकिन टैक्स जमा करने में शराब निर्माता कंपनियों ने जो खेल किया है उस पर कोई कार्रवाही नही की जा रही है।
लीपापोती
पर्वतजन से बातचीत में आबकारी कमिश्नर से लेकर विभाग के अन्य शीर्ष अधिकारियों ने इस टैक्स चोरी के खिलाफ अभी तक किसी भी तरह की कार्यवाही से इनकार किया है।
अहम सवाल आपकारी विभाग पर भी खड़ा होता है कि, जब चालान ऑनलाइन जमा होता है तो फिर ऑनलाइन पोर्टल पर जिले के नाम का ऑप्शन क्यों नहीं रखा गया हालांकि इस प्रकरण के बाद विभाग ने इस चूक को ठीक कर दिया है।
मां शीतला उद्योग के एमडी नवनीत अग्रवाल का कहना है कि उन्होंने कोई भी धोखाधड़ी नहीं की है।बकौल अग्रवाल,-“विभाग के संज्ञान में आने से पहले हमने खुद की गलती पकड़ में आने पर चालान का पूरा पैसा जमा करा दिया तथा चालान में गलती करने वाले कर्मचारी को भी हटा दिया था। विभाग ने इस के डेढ़ महीने बाद पता चलने पर नोटिस भेजा। अग्रवाल कहते हैं कि हमारी मंशा कहीं से भी गलत नहीं थी।”—नवनीत अग्रवाल, एमडी मा शीतला उद्योग
पर्वतजन के पाठकों के शेयर और कमेंट पर अब यह निर्भर करता सरकार और शराब निर्माताओं की सांठगांठ पर क्या फर्क पड़ता है ! ऐसे टैक्स चोर सरकार के साथ मिलकर घोटाला करते रहेंगे या जनता का पैसा हजम करने वालों पर कोई कार्रवाही होगी !