एएनएम भर्ती घोटाला। अयोग्य लोगों को नौकरी पर रखा, योग्य अभ्यर्थियों को कर दिया बाहर
सरकारों के कारनामे भी बड़े गजब होते हैं। आइये आपको अवगत कराते है सरकार के एक ऐसे ही कारनामे से जिससे सैकड़ो सामान्य श्रेणी की प्रशिक्षित एएनएम आज खुद को ठगा हुआ महसूस कर रही हैं। आज आरक्षित श्रेणी की आवाज उठाने के लिए क़ई संगठन खड़े हो जाते हैं पर सामान्य श्रेणी के युवाओ की आवाज कोई नही उठाता। जिससे सामान्य श्रेणी के युवा आज लगातार पिछड़ते जा रहे हैं। सरकार के तीन सरकारी एएनएम प्रशिक्षण केंद्र हैं। जो देहरादून, अल्मोड़ा व ख़िरसु में हैं। यहाँ पर वर्षों से रिक्त पदों के सापेक्ष एंट्रेंस एग्जाम करवाकर प्रशिक्षण करवाया जाता है।
बता दें कि, जनरल कोटे की प्रशिक्षित एएनएम के साथ सरकार ने कैसे धोखा किया है? वर्ष 2016 अप्रैल में तत्कालीन हरीश रावत सरकार ने एएनएम के 440 पदों पर भर्ती निकाली, जिसमें जनरल कोटे की मात्र 53 पोस्ट थी। उस भर्ती प्रक्रिया में 33 सामान्य श्रेणी के पदों पर पुरानी नियमावली का हवाला देकर, सामान्य श्रेणी के अभ्यर्थियों को वंचित कर दिया गया। वहीं 114 लोगो के दस्तावेज गायब होने के बाद भी उन्हें नियुक्ति दे दी गयी। जिसे एएनएम घोटाले के तौर पर जांच में भी सही पाया गया, पर नेताओ और अधिकारियों की मिलीभगत से मामले को दबाने का पूरा प्रयास किया गया है। जिसके लिए उतराखंड क्रांति दल ने लगातार आवाज भी उठाई।
वहीं अब स्वास्थ्य सचिव अमित नेगी का ताजा बयान आया है कि, 500 पदों पर भर्ती परीक्षा करवाई जा रही है, जोकि लिखित परीक्षा के आधार पर होगी। वहीं सरकारी एएनएम प्रशिक्षण केंद्रों से ट्रेनिंग ले चुकी अभ्यर्थियों का कहना है कि, हमे सरकार ने रिक्त पदों के सापेक्ष ट्रेनिंग करवाई थी। जिसके लिए हमने बकायदा टेस्ट क्वालीफाई करके एडमिशन पाया था और ट्रेनिंग ली थी, पर अब सरकार दुबारा लिखित परीक्षा करवाकर हमसे धोखा कर रही है।
लिखित परीक्षा की बजाय वर्षवार करवाई जाए भर्ती
सामान्य श्रेणी की वर्ष 2009 की प्रशिक्षित एएनएम को आजतक नौकरी नही मिल पाई है। वहीं आरक्षित कोटे के वर्ष 2016, 17, 18 तक के प्रशिक्षणार्थी नौकरी पा चुके हैं। ऐसे में 2009 में जिन्होंने सरकारी एएनएम प्रशिक्षण केंद्रों से ट्रेनिंग ली थी, आज 11 वर्षों बाद भी उन्हें नौकरी नहीं मिल पाई है। ऐसे में अब उनको प्राइवेट कॉलेजों के नए प्रशिक्षणार्थयों के साथ परीक्षा में बैठने को मजबूर किया जा रहा है। जिंसके लिए वो तैयार नही हैं। इसके पीछे तर्क दिया जा रहा है कि, जब सरकार ने उनसे रिक्त पदों के सापेक्ष बकायदा टेस्ट लेकर ट्रेनिंग करवाई है, तो एक ही पद के लिए उन्हें दो-दो बार क्यों भर्ती परीक्षा से गुजरना पड़ रहा है।
मतलब कि, सरकार खुद नियम बनाती है फिर खुद ही तोड़ती है। जिससे जूझना आम अभ्यर्थियों को पड़ता है। नाम न छापने की शर्त पर सामान्य श्रेणी के अभ्यर्थियों का कहना है कि, बीजेपी सरकार युवाओं व कर्मचारियों की हितैषी नही है। जिससे आम जनता में इनके खिलाफ रोष बढ़ता जा रहा है। जिसका खामियाजा इन्हें 2022 में भुगतना पड़ेगा।