मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र के विभाग में गड़बड़झाला
देहरादून। उत्तराखंड की प्रमुख सचिव राधा रतूड़ी ने अपने आदेश से अर्थ एवं संख्या विभाग के संयुक्त निदेशक को नवम्बर 2014 में उत्तराखंड सेवा अधिकार आयोग में बिना सेवा शर्त के प्रतिनियुक्त पर सचिव पद पर बैग डोर से तैनात कर दिया, जिसकी नियोजन विभाग को भनक तक नही लगी। उस अधिकारी ने चुपके से कार्यभार भी ग्रहण कर लिया और रामास्वामी प्रमुख सचिव नियोजन के अनुपस्थिति में सेवा अधिकार आयोग के मुख्य आयुक्त आलोक जैन की सिफारिश पर रणबीर सिंह प्रमुख सचिव के हस्ताक्षर से नियोजन विभाग से मुक्त के आदेश करा दिये। निदेशालय ने एलपीसी जारी नही की तो मुख्य आयुक्त जैन ने ताव में आकर नियम की अनदेखी कर अपने मन से एक उच्च वेतन मान में वेतन निर्धारित कर दिए।
उनके आदेश से वित्त विभाग ने भी दबाव में आकर वेतन दे दिया, उधर रामास्वामी प्रमुख सचिव नियोजन ने पूरे प्रकरण पर चुप्पी साध ली। वहीं भ्रष्टाचार उन्मूलन एवं जन सेवा विभाग के शासनादेश के अनुसार सेवा के अधिकार आयोग के सचिव पद पर आईएएस/अखिल भारतीय सेवा/प्रान्तीय सेवा व सचिवालय सेवा के अधिकारी गणो से विज्ञप्ति के आधार पर आवेदन प्राप्त कर लिए जाने थे। इस प्रकार शासनादेश का खुला उल्लंघन हुआ है। उसी अधिकारी को विभाग में अपर निदेशक पद पर पदोन्नति कर फिर उच्च स्केल में सेवा का अधिकार आयोग में नियोजन, वित्त, कार्मिक व सुराग भ्रष्टाचार विभाग के मिली भगत से 6 वर्ष से लगातार नियुक्त कर दी गयी।
इसी खेल को देखते हुए एक मात्र संयुक्त निदेशक ने भी जुगाड लगाकर अपने लिए एक अपर निदेशक पद सृजित कराकर पदोन्नति पा ली। इस प्रकार 2 पद हो गए। सवाल यह है कि, विभाग में एकल पद अपर निदेशक की जरूरत होने से बनाया गया होगा तो फिर नियम के विरूद्ध दूसरे विभाग में भेजने की आवश्यकता क्यों आन पडी। जब जरूरत ही नही है तो व्यक्तिगत हित के लिए एक अतिरिक्त अपर निदेशक पद फिर सृजित क्यो किया गया? जबकि विभाग में 60% पद खाली पड़े है। जिसकी कोई सुध क्यो नही ले रहा है। जबकि सभी विभाग मुख्य मंत्री के पास है इस वर्ष रोजगार वर्ष घोषित है। अब देखना है कि, मुख्य मंत्री घोर अनियमितता पर क्या कार्रवाई करते है क्योंकि इस मामले में टॉप के ब्यूरोक्रेसी संलिप्त है। इसी प्रकार 20 वर्षो से अनावश्यक पद सृजित कर राज्य का वित्तीय बोझ निरन्तर बताया गया है।