रिपोर्ट- जगदम्बा कोठारी
देहरादून।
उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के सत्ता से बेदखल होने के बाद उनके राज में हुए बड़े-बड़े घोटाले सामने आने लग गए हैं। जीरो टॉलरेंस का दम भरने वाली त्रिवेंद्र सरकार के कथित जीरो टॉलरेंस की पोल खुलने लग गई है।
त्रिवेंद्र सरकार का ऐसा ही एक बड़ा भ्रष्टाचार सूचना विभाग से सामने आया है। जहां त्रिवेंद्र रावत के इशारे पर सूचना विभाग ने राज्य सरकार की उपलब्धियों का बखान करने के लिए एक निजी चैनल को 1 साल के भीतर करोड़ों रुपए के विज्ञापन जारी कर दिए। इस चैनल का नाम नेपाल-1 है। इस चैनल का उत्तराखंड में न तो कोई अस्तित्व है और न ही दर्शक।
बंदी की कगार पर चल रहे इस चैनल को मुख्यमंत्री के औद्योगिक सलाहकार केएस पंवार ने अक्टूबर 2019 में खरीदा था। जिसके बाद त्रिवेंद्र सरकार इस नेपाली चैनल पर मेहरबान हो गई और 1 साल के भीतर इस चैनल को करोड़ों रुपए के विज्ञापन जारी कर दिए गए। जबकि इस समाचार चैनल का उत्तराखंड की खबरें एवं जनता से कोई सरोकार नहीं है।
नेपाली मूल के इस चैनल को प्रतिमाह लाखों रुपए के विज्ञापन जारी होने लग गए जो कि 1 साल के भीतर करोड़ों की लागत पर पहुंच गये।
पढ़िए आप भी कि किस तरह सूचना विभाग ने राज्य सरकार की उपलब्धियों का प्रचार प्रसार करने के लिए हाशिए पर चल रहे चैनल ‘नेपाल-1’ पर करोड़ों रुपए की बरसात कर जनता की गाढ़ी कमाई को किस तरह बंदरबांट कर लुटाया गया।
अक्टूबर 2019 में तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के औद्योगिक सलाहकार केएस पंवार ने घाटे में चल रहे इस चैनल को खरीदा। जिसके बाद सूचना विभाग ने 1200 रुपए प्रति 10 सेकेंड की दर से चैनल को विज्ञापन देना शुरू कर दिए। सूचना अधिकार अधिनियम के तहत मांगी गई सूचनाओं से यह हैरान करने वाले यह आंकड़े प्राप्त हुए।
1- चैनल को पहला विज्ञापन 16 नवंबर 2019 को जारी किया गया | जिसकी लागत 72 हजार रुपए थी।
2- 2 लाख 30 हजार 4 सौ रुपए की लागत का अगला विज्ञापन 24 दिसंबर 2019 से 31 दिसंबर 2019 तक के लिए जारी किया गया।
3- पुनः 30 दिसंबर 2019 से 11 जनवरी 2020 तक के लिए 2 लाख 59 हजार 2 सौ रुपए का दिया गया।
4- 9 जनवरी 2020 से 11 जनवरी तक के लिए पुनः 72 हजार रुपए का विज्ञापन जारी किया गया।
5- 14 जनवरी 2020 से 23 जनवरी तक के लिए 2 लाख 58 हजार रुपए का विज्ञापन दिया गया।
6- गणतंत्र दिवस 2020 में अपनी उपलब्धियों के प्रचार प्रसार के लिए 25 और 26 जनवरी को 14 लाख 4 हजार रुपए का अगला विज्ञापन बांटा गया।
7- 26 जनवरी 2020 को ही पुनः 7 लाख 56 हजार रुपए का विज्ञापन 9 फरवरी 2020 तक के लिए दिया गया।
8- 9 मार्च 2020 से 13 मार्च तक के लिए 2 लाख 10 हजार रुपए का विज्ञापन पुनः दिया गया।
9- 17 मार्च से 23 मार्च 2020 को 2 लाख 72 हजार रुपए का विज्ञापन द्वारा दिया गया।
10- 2 दिन बाद ही 19 मार्च को 3 लाख 67 हजार रुपए का विज्ञापन दिया गया।
11- 26 मार्च से 1 अप्रैल तक के लिए दोबारा से 4 लाख 21 हजार रुपये का विज्ञापन जारी किया गया।
12- इतना ही नहीं बल्कि कोरोना काल में भी मुख्यमंत्री जी की दरियादिली इस चैनल पर बनी रही। 25 अप्रैल से 1 मई तक के लिए 4 लाख रुपए का विज्ञापन जारी किया गया।
13- 23 अक्टूबर से 11 नवंबर तक के लिए 6 लाख 79 की लागत का नया विज्ञापन जारी किया गया।
14- गत वर्ष राज्य स्थापना दिवस के लिए 7 और 8 नवंबर को 5 लाख 60 हजार रुपए का विज्ञापन दिया गया।
15- नवंबर माह में ही 14 तारीख से 30 नवंबर तक के लिए 6 लाख 50 हजार रुपए का विज्ञापन फिर से इस चैनल को बांटा गया।
विज्ञापनों में हुई इस बंदरबांट में पूर्व मुख्यमंत्री के चहेतों ने खूब लूट मचाई। यह तो एक चैनल का ही मामला है। त्रिवेंद्र राज में सरकार के पक्ष में लिखने वाले गोदी मीडिया के अखबारों एवं पोर्टलों को भी इसी तरह लाखों रुपए के विज्ञापन दिए गए। विज्ञापन वितरण की इस प्रणाली में उन मीडिया संस्थानों को दूर रखा गया जो समय समय पर त्रिवेंद्र सरकार की कारगुजारियों से जनता को वाकिफ करवाते थे।
अब त्रिवेंद्र रावत के सत्ता से बेदखल होने और नए मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत की ताजपोशी के बाद देखना होगा कि विज्ञापन में हुए इस भ्रष्टाचार की निष्पक्ष जांच के साथ सूचना विभाग के दोषी अधिकारियों पर तीरथ सरकार कोई कार्रवाई करती है या नहीं।