उत्तराखंड क्रांति दल युवा प्रकोष्ठ द्वारा धरना स्थल पर बैठे असम राइफल के पूर्व सैनिकों को समर्थन दिया गया| अध्यक्षता कर रहे पूर्व कमांडेंट राजेन्द्र सिंह नेगी ने कहा कि, देश के सबसे पुराने अर्धसैनिक बल की स्थापना 24 मार्च 1835 को हुई थी| धरने का मुख्य कारण असम राइफल का दोहरे नियंत्रितकरण के खिलाफ था|
उन्होंने बताया कि, असम राइफल अपने कर्तव्यों का निर्वहन रक्षा मंत्रालय के अधीन कर रही| जबकि सुविधाएं गृह मंत्रालय के माध्यम से पुलिस बल की मिल रही है| उनका स्पष्ट मानना है कि, असम राइफल को पूर्ण रूप से भारतीय सेना में समाहित किया जाए, धरने को समर्थन देने पहुंचे उक्रांद युवा प्रकोष्ठ के केंद्रीय अध्यक्ष राजेंद्र सिंह बिष्ट ने कहा कि, असम राइफल आजादी से पूर्व एवं आजादी के बाद देश के लिए अभूतपूर्व योगदान रहा है| जिसमें प्रथम विश्व युद्ध, द्वितीय विश्व युद्ध, वर्ष 1962 में चीन का भारत पर आक्रमण, वर्ष 1965 तथा वर्ष 1971 में पाकिस्तान के साथ सैन्य युद्ध में भाग लेकर अपने अद्वितीय शौर्य पराक्रम का प्रदर्शन कर देश और दुनिया में अपनी अलग उत्कृष्ट पहचान बनाई थी|
बिष्ट ने कहा कि, केंद्र सरकार इसे संज्ञान में लेकर शीघ्र उचित निर्णय ले, जिस प्रकार भारतीय सेना के लिए समान कार्य के लिए समान वेतन है| इसे असम राइफल के लिए भी लागू किया जाए, असम राइफल के ऊपर थोपे गए बिजनेस रुल 1961 को समाप्त किया जाए, जिसके तहत असम राइफल को पुलिस बल की श्रेणी में रखा गया है|
जबकि कार्य सेना के अधीन कर रही है, साथ ही असम राइफल के सेवानिवृत्त सैनिकों के लिए वन रैंक वन पेंशन लागू किया जाए| साथ ही 2004 के बाद सेवारत सैनिकों को भी पूर्व की भांति पुरानी पेंशन प्रणाली की जाए, इस अवसर पर उत्तराखंड क्रांति दल युवा प्रकोष्ठ के देहरादून जिला अध्यक्ष सीमा रावत, जिला महामंत्री विनीत सकलानी, केंद्रीय संगठन सचिव कमल कांत, सचिन नोटियाल, वरिष्ट नेता भगवती डबराल आदि उपस्थित रहे|