अनुज नेगी
देहरादून।
उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत का भविष्य भी अधर में लटका दिख रहा है। मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत को 10 सितम्बर तक विधानसभा की सदस्यता ग्रहण करनी है, जो कि समयाभाव के चलते कठिन लग रहा है।
संविधान के अनुच्छेद 164 (4) के प्रावधानों के भरोसे तीरथ सिंह रावत ने विधायक न होते हुये भी मुख्यमंत्री की कुर्सी तो संभाल ली, उनको इसी अनुच्छेद के प्रावधानों के तहत 6 महीने के अन्दर विधायिका की सदस्यता भी हासिल करनी है।
विधायिका की सदस्यता हासिल करने की अवधि 9 सितम्बर 2021 को पूरी हो रही है। इसके लिये उन्हें उपचुनाव जीतना अति आवश्यक है,जिसकी संभावना लगभग समाप्त हो गयी है।इसलिए राज्य में नेतृत्व परिवर्तन या फिर राष्ट्रपति शासन का ही विकल्प बच सकता है।
इसी बीच गंगोत्री विधानसभा की रिक्त सीट से मुख्यमंत्री को उपचुनाव लड़ाने की तैयारियां भी शुरू हो गयी हैं। मगर पार्टी यह भूल ही गए कि गंगोत्री सीट 22 अप्रैल को भाजपा विधायक गोपाल सिंह रावत के निधन से खाली हुयी थी और लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951की धारा 151( क ) के अनुसार विधानसभा का शेष कार्यकाल 23 मार्च 2022 तक होने के कारण इस सीट पर भी समय एक साल से कम होने के कारण उपचुनाव नहीं हो सकता।
वहीं तीरथ सिंह रावत ने गलत फहमी में सबसे बड़ी गलती अल्मोड़ा जिले की सल्ट विधानसभा सीट से चुनाव न लड़ कर कर दी। इसके लिये तीरथ सिंह से अधिक कसूरवार उनकी पार्टी और सरकार है। जिन्होंने मुख्यमंत्री को सही सलाह नहीं दी। सल्ट विधानसभा के उपचुनाव के लिये प्रदेश स्तर पर भाजपा की कोर कमेटी ने प्रत्याशी का चयन कर अनुमोदन के लिये केन्द्रीय नेतृत्व को भेज दिया था।
निर्वाचन आयोग उप चुनाव के लिए तैयार नहीं
मुख्य निर्वाचन आयुक्त सुशील चन्द्रा ने एक समाचार ऐजेंसी को दिए गए इंटरव्यू में दावा किया था कि, आयोग का कोरोना महामारी के दौरान चुनाव कराने का अनुभव है इसलिए अगले पंजाब, उत्तराखण्ड, गोवा, उत्तर प्रदेश, हिमाचल और मणिपुर में विधानसभा चुनाव कराने में कोई दिक्क्त नहीं होगी।मगर अयोग की 5 मई को जारी विज्ञप्ति में सीधे-सीधे कोराना महामारी का संकट टलने तक उप चुनाव टालने की स्पष्ट घोषणा भी की गई है।
6 माह के अन्दर विधायक बनने के आसार कम
संविधान के अनुच्छेद 164 (4) के प्रावधानों का लाभ उठाते हुए तीरथ सिंह रावत गत 5 मई को बिना चुनाव जीते ही मुख्यमंत्री तो बन गये , मगर इसी अनुच्छेद की इसी उपधारा में यह प्रावधान भी है कि अगर निरन्तर 6 माह के अन्दर गैर सदस्य मंत्री विधायिका की सदस्यता ग्रहण नहीं कर पाए तो उस अवधि के बाद वह मंत्री नहीं रह पाएगा। यही प्रावधान अनुच्छेद 75(5) में केन्द्रीय मंत्रिमण्डल के लिए भी है।
गैर विधायक दो बार मंत्री नहीं बन सकता
मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत के पास बिना चुनाव जीते दुबारा मुख्यमंत्री बनने का विकल्प नहीं बचा हुआ है। एस.आर. चौधरी बनाम पंजाब राज्य एवं अन्य मामले में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश ए.एस. आनन्द की अध्यक्षता वाली सुप्रीमकोर्ट की तीन सदस्यीय पीठ ने 17 अगस्त 2001 को दिए फैसले में स्पष्ट किया कि विधानसभा के एक ही कार्यकाल में किसी गैर विधायक को दूसरी बार 6 माह तक के लिए मंत्री नियुक्त नहीं किया जा सकता।
उस समय तेज प्रकाश सिंह को राजिन्दर कौर भट्ठल ने बिना चुनाव जीते मंत्री बना दिया था। इससे पहले जगन्नाथ मिश्र बनाम यूनियन ऑफ इंडिया के मामले में भी लगभग ऐसा ही फैसला आया था।
यही नहीं बी.आ. कपूर बनाम तमिलनाडु राज्य मामले में स्पष्ट हुआ था कि अगर कोई व्यक्ति चुनाव लड़ने के अयोग्य घोषित हो चुका हो तो उसे भी मंत्री या मुख्यमंत्री नियुक्त नहीं किया जा सकता। इसीलिए जयललिता पुनः मुख्यमंत्री नहीं बन सकीं।