बिना अनुमति के चल रहा था मेडिकल कैंप
20 रु के पंजीकरण पर एनजीओ कर्मी कर रहे थे इलाज
इलाज के नाम पर हजारों रु की बेची जा रही थी दवा
विवाद के बाद मामला पहुंचा थाने मे
केमिस्ट संघ के विरोध पर डीएम खुद पहुंचे मौके पर
एसडीएम को सौंपी जांच
गिरीश गैरोला// उत्तरकाशी
उत्तराखंड मे नियम कानून भले ही किताबों की शोभा बढ़ा रहे हों किन्तु धरातल पर उनका अनुपालन तब तक नहीं होता, जब तक सड़क पर हँगामा नहीं हो जाता।
अब झोला छाप फर्जी डॉक्टर की बात हो या एनजीओ के नाम पर अपनी दवा बेचने की बात, हँगामा होने पर ही संबन्धित विभाग कानून की किताबों की धूल झाड़ते हुए धारा टटोलते हुए नजर आते हैं।सोसाइटी एक्ट 1860 मे नो लॉस नो प्रॉफ़िट के साथ व्यापक जनहित मे काम करने वाले पंजीकृत एनजीओ की आड़ मे कई लोग निजी दुकान चलाने मे लगे हैं।ऐसा ही एक मामला उत्तरकाशी मे देखने को मिला जब आयुर्वेद के नाम पर मरीजों को महंगी दवा बेचने के बाद केमिस्ट संघ ने थाना कोतवाली मे तहरीर दी।
केमिस्ट संघ ने आरोप लगाया कि एनजीओ निशुल्क मरीजों की जांच करते हैं और निशुल्क ही दवा देते हैं। किन्तु यहां पर 20 रु की पंजीकरण पर डॉ परामर्श दे रहे थे और वहीं पर प्रति मरीज को 500 से 2000 तक की दवा भी बेची जा रही थी। इतना ही नहीं आयुर्वेदिक दवा के साथ एलोपैथी दवा भी बेची जा रही थी जिसकी न तो सीएमओ से कोई अनुमति ली गयी और न ही आयुर्वेदिक अधिकारी से।
मामला बढ़ता देख एनजीओ ने भी मौके से अपना समान समेटना सुघरू ही किया था कि डीएम मौके पर पहुंचे और उन्होने एसडीएम को पूरी जांच रिपोर्ट पेश करने के निर्देश दिये हैं।
उत्तरकाशी के हनुमान चौक मे एनजीओ कर्मी20 रु के पंजीकरण शुल्क लेकर मरीजों की जांच कर रहे थे। मरीज के हाथ के अंगूठे को किसी स्कैनरनुमा मशीन से टच कर किसी क्वांटम मशीन से पूरे शरीर कि जांच रिपोर्ट निकाली जा रही थी जिसके बाद मरीजों को महंगी-महंगी दवा आयुर्वेद के नाम पर बेची जा रही थी।उत्तरकाशी केमिस्ट संघ के सुरजीत बिष्ट और माधव जोशी ने बताया कि उक्त एनजीओ कर्मी आयुर्वेदिक दवा के साथ एलोपैथिक दवा भी मरीजों को बेच रहे थे, जिसकी न तो सीएमओ से कोई अनुमति ली गयी थी और न जिला आयुर्वेदिक अधिकारी से।
डीएम के निर्देश पर एसडीएम देवेंद्र नेगी ने जिला आयुर्वेदिक अधिकारी कार्यालय मे सभी एनजीओ कर्मियों को तलब किया और उनके दस्तावेजों की जांच शुरू की।वरिष्ठ मआयुर्वेदिक चिकित्सक डॉ. कुसुम उनियाल ने बताया कि बिना अनुमति के कोई भी कैंप नगर मे नहीं लगाया जा सकता और न ही कोई दवा बेची जा सकती है.
जांच के बाद जिला आयुर्वेदिक अधिकारी डॉ एके त्यागी ने भी माना कि बिना विभाग की जानकारी मे लाये ही गैर कानूनी रूप से कैंप चल रहा था साथ ही उन्होने एनजीओ द्वारा जांच के लिए प्रयोग की जाने वाली क्वांटम मशीन के प्रयोग को भी अवैध बताया है। एनजीओ के चिकित्सकों के डिग्री की जांच की जा रही है।
डीएम के निर्देश के बाद एसडीएम देवेंद्र नेगी ने विधिवत अनुमति के बिना सड़क पर बैठ कर मरीज देखने और दवा बेचने पर प्रतिबंद लगा दिया है।
सूबे मे फेरी लगाकर समान बेचने वालों को भी पुलिस वेरिफिकेशन के बाद ही किसी क्षेत्र विशेष मे व्यापार की अनुमति दी जाती है।भवन स्वामियों को भी बिना आईडी और पुलिस वेरिफिकेशन के किराएदार रखने की इजाजत नहीं हो वहां बिना जिला स्तरीय अधिकारियों को सूचित किए कैसे कोई एनजीओ आयुर्वेद के नाम पर मरीजों की जांच कर दवा बेच सकते हैं। एक तरफ एलोपैथ दवा बिना पंजीकरण के कोई नहीं बेच सकता है तो आयुर्वेद के लिए कैसे छूट दी जा सकती है!
आयुर्वेदिक दवा भी जड़ी बूटियों से ही बनी है या इसमे भी कोई केमिकल मिलाया गया है, आखिर इसकी जांच कौन करेगा!