सत्य परेशान हो सकता है लेकिन पराजित नहीं।अदालत ने अपर सचिव सुमन सिंह वल्दिया बाइज्जत बरी कर दिया है।
आज के समय में यह घटनाक्रम सामान्य जरूर लग रहा है, लेकिन वाकया कतई भी मामूली नहीं है।
यह उस सत्य की विजय है,जिसे कुत्सित षडयंत्रों के कुचक्र से परेशान किया गया। लेकिन आखिरकार सत्य की विजय हुई, और षडयंत्रकारियों को उनके किए की सजा हुई।
वाकया वर्ष 2013 में घटित हुआ जब उत्तराखंड सचिवालय के चर्चित अपर सचिव जेपी जोशी प्रकरण में अपर सचिव सुमन सिंह वल्दिया को भी लपेट गया और उन्हें गिरफ्तार किया गया। हर सूरत में वाल्दिया की गिरफ्तार सभी को हैरान करने वाली थी।
इसमें पुलिस की भूमिका सीधे तौर पर संदिग्ध ठहराई गई है। पुलिस ने अपनी जांच में यह बताया था कि अपर सचिव जेपी जोशी के पूरे मामले में सुमन सिंह वल्दिया की भूमिका है। इस आरोप में 16 माह जेल में रहने के बाद सुमन सिंह वल्दिया को जमानत मिली थी।
पुलिस जांच ने जिस आधार पर सुमन सिंह वल्दिया को आरोपी बनाया था,उनकी औचित्यहीनता पर शुरू से ही वाल्दिया की सच्चाई और ईमानदारी हावी रही। लेकिन फिर उन्हें फंसाने के लिए कुचक्र रचे गए। बताया जा रहा है कि इसमें राजनैतिक दबाव था और तात्कालीन मुख्यमंत्री का ऐसा दबाव था कि अदालत की चौखटर पर भी साजिशकर्ताओं की दलीलें हावी रही। और 16 महीने तक सुमन वल्दिया को जमानत नहीं मिली।
एक ईमानदार व निष्ठावान अधिकारी के लिए 16 महीने का वक्त बहुत लंबा होता है। लेकिन इसके बावजूद सुमन सिंह वाल्दिया ने हिम्मत नहीं हारी और अदालत में षडयंत्र से सीधे लोहा लिया। जाहिर तौर पर किसी सच्चे इंसान को झूठे मामले में फंसाया जाए तो उसके भीतर साजिशों से टकराने का जज्बा अपेक्षाकृत मजबूत होगा। रात दिन के यही सपने रहे कि सच्चाई हर हाल में सामने आनी चाहिए। और उन्होंने झूठ के पर्दाफास के लिए मुसीबतों से लोहा लिया।
आखिरकार सत्य की जीत हुई और अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश पटियाला हाउस कोर्ट अपर सचिव सुमन सिंह वल्दिया पूरे सम्मान के साथ बरी कर दिया है।