उत्तराखंड में भारतीय जनता पार्टी ने घोषित लक्ष्य 25 करोड़ से अधिक सहयोग निधि जुटाकर भले ही राहत की सांस ली हो लेकिन पर्वतजन को कुछ ऐसे सबूत मिले हैं, जिससे सहयोग निधि जुटाने में सरकारी सिस्टम के दुरुपयोग की पोल खुलती है।
सहयोग निधि जुटाने के लिए सरकार ने मुख्यमंत्री कार्यालय के प्रभाव का भी दुरुपयोग किया है।
भाजपा के ही कार्यकर्ताओं ने सहयोग निधि के चित्र मुख्यमंत्री के ओएसडी धीरेंद्र पंवार को सौंपने के फोटो ग्राफ सोशल मीडिया पर शेयर किए हैं।
आम लोगों से सहयोग निधि लेते हुए यह फोटोग्राफ कई जगह खुद मुख्यमंत्री के ओएसडी धीरेंद्र धीरेंद्र पंवार ने सार्वजनिक किए हैं तो कहीं एबीवीपी के कार्यकर्ताओं अथवा भाजपा नेताओं ने धर्मेंद्र कुमार को सौपे हैं।
धीरेंद्र पंवार खुद एक जगह एक कार्यकर्ता के पूछने पर बताते हैं की कार्यक्रम में उनके पास हजार-हजार रुपए के 30 चेक सौंपे गए हैं।
धीरेंद्र पंवार मुख्यमंत्री के ओएसडी हैं। इन्हें मुख्यमंत्री के विकास कार्य की मॉनिटरिंग और विकास की गति को तेज करने का जिम्मा सौंपा गया है। लेकिन पद और प्रभाव का इस्तेमाल कर सहयोग निधि जुटाने के कारण समाज में उनकी जमकर आलोचना भी हो रही है और लोग उन पर गलत राजनीति करने के लिए नाराज भी हैं सोशल मीडिया पर एक व्यक्ति की टिप्पणी सुलभ संदर्भ के लिए दी जा रही है।
आजीवन सहयोग निधि जुटाने का कार्य सरकार का नहीं बल्कि भारतीय जनता पार्टी संगठन का है। ऐसे में सरकारी वेतन पर भारतीय जनता पार्टी के लिए काम करना ना सिर्फ पद और प्रभाव का दुरुपयोग है, बल्कि इससे जीरो टॉलरेंस का दावा करने वाली सरकार पर भी सवालिया निशान खड़े होते हैं।
विकास कार्यों को गति देने के नाम पर सरकारी सिस्टम के बाहर से नियुक्त किए गए इस तरह के ओएसडी भारी भरकम वेतन तो ले रहे हैं लेकिन इनका आउटपुट क्या है इसकी समीक्षा करने की कोई परवाह नहीं कर रहा।
सचिवालय के सूत्रों के अनुसार मुख्यमंत्री सरकारी कर्मचारियों के लिए परेशानी का सबब बन गए हैं। वह हर तरह के विभागों में में मनचाहे बदलाव करा रहे हैं, जबकि उनकी जिम्मेदारी कुछ नहीं है। ऐसे में अगर कुछ गलत हो गया तो सारी जिम्मेदारी सरकारी कर्मचारियों के सर मढ दी जाएगी।
ऐसा हरीश रावत सरकार के कार्यकाल में भी हो चुका है। हरीश रावत के द्वारा नियुक्त किए गए किस तरह के बाहरी कर्मचारियों ने अनुसूचित जाति उपयोजना का पैसा अधिकारियों पर दबाव डलवाकर अपनी मनमर्जी से आवंटित करवा दिया था।
मुख्यमंत्री कार्यालय के दबाव में अधिकारियों ने इन कर्मचारियों के अनुसार काम तो कर दिया लेकिन कार्य नहीं के लेवल पर सारी जिम्मेदारियां डीएम पर फिक्स कर दी।
जब यह पैसा जिलों में गया तो नीति के विपरीत खर्च नहीं हो पाया और वापस हो गया।
यदि ऐसा नहीं किया जाता तो बाद में ओ ओएसडी ,पीआरओ के द्वारा डाले गए दबाव के कारण सरकारी कर्मचारियों पर गाज गिरने तय थी।
कांग्रेस बार-बार कहती रही है कि सहयोग निधि जुटाने के लिए सरकार अपने पद प्रभाव का दुरुपयोग कर रही है। हालांकि कांग्रेस अपने आरोप सिद्ध नहीं कर सकी लेकिन पर्वतजन को हासिल इन तस्वीरों से साफ पता चलता है कि सरकार ने पार्टी के काम में अपने पद और प्रभाव का दुरुपयोग किया है।