उत्तराखंड हाईकोर्ट ने वन विभाग में तैनात लगभग दो हजार आउटसोर्स कर्मियों की नौकरी खत्म करने के आदेश पर अंतरिम रोक लगाते हुए कर्मचारियों को बड़ा सहारा दिया है। वरिष्ठ न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की एकलपीठ ने स्पष्ट किया कि जहां पद और काम उपलब्ध हों, वहां विभाग इन कर्मचारियों की सेवाएं जारी रखे।
क्या है मामला
वन विभाग में लंबे समय से काम कर रहे दिनेश चौहान सहित करीब 300 आउटसोर्स कर्मियों ने याचिका दायर कर बताया कि विभाग ने उनका अनुबंध इसलिए समाप्त कर दिया क्योंकि उनके वेतन का भुगतान जिस मद से होना था, उसमें बदलाव कर दिया गया। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि मद परिवर्तन की वजह से न केवल उनका वेतन रोका गया, बल्कि विभाग ने उनसे नियमित काम लेना भी बंद कर दिया।
सरकार का तर्क
राज्य सरकार ने अदालत को बताया कि इन कर्मचारियों के भुगतान के लिए अब कोई अलग वित्तीय मद उपलब्ध नहीं है, इसलिए उनसे आगे सेवाएं लेना संभव नहीं रह गया था। इस आधार पर विभाग ने सेवा समाप्ति का निर्णय लिया।
2023 के आदेश और ताजा फैसला
फरवरी 2023 में भी कोर्ट ने सेवा समाप्ति पर अस्थायी रोक लगाई थी। नवीन सुनवाई में अदालत ने कर्मचारियों के पक्ष में निर्णय दोहराते हुए स्पष्ट कर दिया कि बिना वैध कारण आउटसोर्स कर्मियों को नहीं हटाया जा सकता। इस आदेश का सीधा लाभ वन विभाग में कार्यरत लगभग 2 हजार आउटसोर्स कर्मचारियों को मिलेगा।
मद परिवर्तन से पैदा हुआ संकट
बता दें कि वर्ष 2023 में तत्कालीन अपर मुख्य सचिव आनंद वर्धन ने आउटसोर्स पदों पर कार्यरत कर्मियों के भुगतान को पारिश्रमिक (दैनिक वेतन) मद से करने के निर्देश जारी किए थे, जबकि भुगतान परंपरागत रूप से मद 27 के तहत होना तय था। आदेश बदलते ही कई आउटसोर्स और पीआरडी कर्मचारियों को समय पर भुगतान न मिलने लगा और उनकी आजीविका पर प्रभाव पड़ा।
कर्मचारियों का विरोध और तनाव
वेतन न मिलने की समस्या बढ़ने पर देहरादून स्थित वन विभाग कार्यालय में आउटसोर्स कर्मचारियों ने जोरदार विरोध प्रदर्शन किया था। इसी दौरान देहरादून डीएफओ कार्यालय में तैनात एक आउटसोर्स कर्मचारी ने मानसिक और आर्थिक दबाव के चलते आत्महत्या का प्रयास भी किया था।
हाईकोर्ट के इस हस्तक्षेप ने महीनों से अनिश्चितता झेल रहे आउटसोर्स कर्मचारियों को राहत और स्थिरता की उम्मीद दी है।


