हरीश रावत सरकार कार्यकाल के आखिरी समय में एक निर्णय लिया गया था जिसके अनुसार 5 साल की सेवा पूरी कर चुके 21000 कार्मिकों को विनियमित किया जाना था। किंतु सरकार ने कुल 447 कार्मिकों और अधिकारियों को तो विनियमित कर दिया था लेकिन बाकी सभी आज भी संविदा पर काम कर रहे हैं।
अब सरकार के इस आधे अधूरे निर्णय के कारण कई पेच फंस गए हैं। फल स्वरूप जो कार्मिक विनियमित हो गए हैं, उनका भी विरोध हो रहा है और जो विनियमित नहीं हो पाए वह भी कुंठा महसूस कर रहे हैं।
सरकार द्वारा कुल 447 कार्मिकों एवं अधिकारियों को आनन फानन में विनियमित किया गया था, जबकि 5 साल की सेवा पूर्ण कर चुके 21000 कार्मिक जिसमे 15000 उपनल कार्मिक भी शामिल है विनियमितीकरण के इंतज़ार में थे जो अब भी संविदा में कार्य कर रहे हैं। सरकार को या तो विनियमित कार्मिकों को भी वापस संविदा में लाना चाहिए या अन्य 21000 कार्मिकों को भी विनियमित किया जाना चाहिए। सरकार समान शर्तो के साथ काम कर रहे कार्मिकों के साथ अलग अलग व्यवहार नहीं कर सकती है।
न्याय विभाग ने माना भर्तियां अवैध
उत्तराखण्ड शासन द्वारा विनियमितीकरण नियामवली 2016 के आधार पर उच्च शिक्षा विभाग उत्तराखंड में समूह ‘क’ के IAS, IPS समकक्ष पदों में 30 दिसम्बर 2016 को 176 असिस्टेंट प्रोफ़ेसर्स को विनियमित किया गया।
तत्पश्चात हिमांशु जोशी एवं अन्य द्वारा विनियमितीकरण नियामवली,2016 को उच्च न्यायालय, नैनिताल में चुनौती दी गई जिस पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति सुधांशु धुलिया की खंडपीठ द्वारा विनियमितीकरण नियमावली को निरस्त कर दिया।
प्रमुख सचिव के आदेश भी ढक्कन
न्यायालय के निर्णय के अनुपालन में कार्मिक विभाग द्वारा दिनांक 07 जनवरी,2019 को संशोधित नियामवली,2018 बनाई गई जिसमें विनियमितीकरण नियामवली के आधार पर विनियमित कर्मिको के पदों को रिक्त मानते हुए संगत सेवा नियमावली के आधार पर भरने के साथ -साथ विनियमित कार्मिकों को 10 नंबर वेटेज देने का प्राविधान किया गया।
संशोधित नियामवली को उच्च शिक्षा विभाग में 2016 नियामवली के आधार पर विनियमित किये गए 6 असिस्टेंट प्रोफ़ेसर्स ने न्यायालय में हेमा मेहरा एवं अन्य बनाम उत्तराखंड राज्य में चुनौती दी गई जिस पर सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ द्वारा 15 फरवरी,2019 को पारित निर्णय में संशोधित नियामवली,2018 को सही बताया था 2016 नियामवली के आधार पर विनियमित 176 अस्सिटेंट प्रोफ़ेसर्स सहित सभी के विनियमितीकरण को नियामवली बनने के दिन यानी 14 दिसम्बर,2016 से ही खारिज होने का निर्णय पारित किया।
उच्च न्यायालय ने निरस्त किया विनियमितीकरण फाइल साल भर से मंत्री जी के पास
उच्च न्यायालय द्वारा पारित निर्णय को शासन द्वारा न्याय विभाग को भेजा गया जिसपर न्याय विभाग द्वारा भी विनियमितीकरण को अवैध एवं शून्य बताते हुए विनियमितीकरण को खत्म करने की सलाह दी एवं उच्च शिक्षा विभाग द्वारा सभी कार्मिकों को वापस संविदा में करने को प्रस्ताव तैयार किया जिस पर विभागीय मंत्री द्वारा भी अपनी सहमति प्रदान कर दी गई किन्तु विभागीय मंत्री द्वारा दिनाँक 19/08/2019 को फ़ाइल को दोबारा अवलोकन हेतु अपने पास मंगाया गया जो अब तक मंत्री जी के पास ही है।
चार दिन में निस्तारित होने वाली होने वाली फ़ाइल को 9 महीने से दबाए हुए है उच्च शिक्षा मंत्री डॉ. धन सिंह रावत
निवर्तमान मुख्य सचिव राकेश शर्मा के दिनांक 28 अक्टूबर, 2015 को जारी शासनादेेेश के अनुसार किसी भी फ़ाइल को 4 दिन में एक स्तर से निर्णय ले लेना आवश्यक है।
ताकि लाल फीताशाही को कम किया जा सके किन्तु उच्च शिक्षा राज्य मंत्री डॉ धन सिंह रावत उच्च शिक्षा विभाग में 2106 विनियमितीकरण नियमावली के आधार पर विनियमित किये गए कार्मिकों के विनियमितीकरण को रद्द करने से संबंधित फ़ाइल को 16 अगस्त, 2019 से अपने पास दबाए हुए है।
जहाँ सरकार कार्मिकों के महंगाई भत्ते को फ्रिज कर रहे है, वहीं उत्तराखंड सरकार संविदा के सापेक्ष प्रतिमाह 80 लाख रुपये अवैध करार दी गई सेवा पर खर्च कर रही है जिसे फरवरी, 2019 के हेमा मेहरा मामले में निर्णय आने के बाद रद्द कर देना चाहिए था सरकार द्वारा मार्च 2020 में अवैध नियुक्त सहायक प्राध्यापकों को सातवे वेतन आयोग का एरियर भी प्रदान कर दिया गया है।
ज्ञातव्य है कि:
गौरतलब है कि ग्रेड पे के हिसाब से यह पद आईएएस से भी बड़ा है। आईएएस का स्टार्टिंग ग्रेड पे 5400 है और इनका 6000 है। सबसे ज्यादा ग्रेड पे 6600 जुडिशरी में है उसके बाद उच्च शिक्षा में और फिर आईएएस का है।
आर. टी. आई. में प्राप्त सूचना के अनुसार जनवरी,2017 से दिसंबर 2019 तक उच्च शिक्षा में 2016 नियमावली के आधार पर विनियमित कर्मिकों को 45 करोड़ रुपये वेतन दिया जा चुका है। हेमा मेहरा वाले निर्णय को आये भी 1 साल हो गया है किंतु विभाग द्वारा अब तक भी विनियमितीकरण खत्म नहीं किया गया जबकि न्यायालय द्वारा अवैध करार देते ही विभाग का प्रथम दायित्व यह होता है कि अवैध क्रियाकलाप को रोका जाए।