कल टिहरी जनपद के प्रतापनगर विधानसभा में हुए भीषण सड़क हादसे में नौ मासूम बच्चों की मौत और 11 घायलों के बाद उत्तराखंड सरकार ने अपनी खाल बचाने के लिए एआटीओ एनके ओझा को निलंबित कर दिया। निलंबन का यह आदेश सचिव परिवहन के हस्ताक्षर से जारी हुआ है, किंतु एआरटीओ के निलंबन ने सरकार की असलियत की कलई खोलकर रख दी है कि इस घटना के लिए एआरटीओ से ज्यादा जिम्मेदार तो स्वयं सचिव परिवहन और सचिवालय का वह भ्रष्ट स्टाफ है, जिन्होंने विगत एक वर्ष से रोड सेफ्टी ऑडिट की फाइल ही दबा रखी है।
धुमाकोट हादसे में 45 लोगों की दर्दनाक मौत के बाद दायर पीआईएल के निस्तारण के फलस्वरूप हाईकोर्ट नैनीताल ने दिशा निर्देश दिए थे कि सभी सड़कों का रोड सैफ्टी आडिट करवाया जाए, किंतु अभी तक एक मीटर रोड का भी आडिट नहीं हुआ है। इसी भीषण सड़क दुर्घटना के बाद राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी ने कोटद्वार में अपनी सांसद निधि से आईसीयू का निर्माण करवाया था।
उक्त पीआईएल के बाद परिवहन विभाग को प्रत्येक तहसील में प्रवर्तन दल गठित करने के निर्देश दिए गए थे, किंतु विभाग द्वारा शासन को भेजे गए प्रस्ताव पर भ्रष्ट अधिकारी कुण्डली मारकर बैठे हैं। पहाड़ी जिलों में एआरटीओ प्रवर्तन के पद ही नहीं है। एक ही अधिकारी नियुक्त हैं, वही कार्यालय के कार्य मीटिंग और चैकिंग तीनों कार्य करता है। सभी कार्य ऑनलाइन होने के कारण अधिकारी की लॉगइन से ही सारे कार्य होते हैं। ऐसे में उसका 10 बजे से 5 बजे तक कार्यालय में होना आवश्यक है। इसके पहले व बाद में वह चैकिंग कार्य भी करता है। इतने बड़े पहाड़ी जिलों में इतना काम करने के बाद निलंबन की कार्रवाई तो बहुत आसान है, किंतु आज तक देहरादून शासन में बैठे भ्रष्ट अधिकारियों ने यह नहीं सोचा कि आखिरकार एक व्यक्ति 10 बजे से पांच बजे तक ऑफिस में बैठने के बाद पूरे जिले में व्याप्त अव्यवस्था को कैसे ठीक कर सकता है। कायदे से कार्यवाही उत्तराखंड शासन में बैठे महाभ्रष्ट बाबुओं पर हो होनी चाहिए, जिन्होंने उक्त कार्य रोके हुए हैं। यदि जनहित याचिका दायर करने वाले व्यक्ति इसी मसले को पुन: न्यायालय में लेकर चला जाए तो उत्तराखंड सरकार पर न्यायालय की अवमानना का मुकदमा भी दर्ज हो सकता है और न्यायालय इसी खबर का संज्ञान लेकर सरकार को दंड भी दे सकती है।
इस सड़क दुर्घटना के लिए सरकार किस कदर जिम्मेदार है, यह इस बात से भी समझा जा सकता है कि 19 जुलाई को उप शिक्षा अधिकारी धनवीर सिंह द्वारा हस्ताक्षरित पत्र जारी हुआ था, जिसमें मदन नेगी स्थित उक्त विद्यालय को भी मानकों के अनुरूप न चलने के कारण बंद करने के आदेश दिए गए थे, किंतु भ्रष्ट अधिकारियों ने स्कूल संचालकों के साथ सांठ-गांठ कर कोई कार्यवाही नहीं की। परिणामस्वरूप 9 अबोध बच्चों को काल के गाल में समाना पड़ा।