कृष्णा बिष्ट
इसे कहते हैं जनमत का असर। त्रिवेंद्र सरकार ने पूर्व मुख्यमंत्रियों को भविष्य में दी जाने वाली सुविधाओं से हाथ पीछे खींच लिए है।
हालांकि उन पर जो बकाया शेष था, वह भी माफ कर दिया जाएगा।
रूलक सामाजिक संस्था के चेयर पर्सन अवधेश कौशल द्वारा हाईकोर्ट में पूर्व मुख्यमंत्रियों को दी जाने वाली सुविधाओं के खिलाफ एक जनहित याचिका डाली गई थी, इसमें हाईकोर्ट में इन सुविधाओं पर तत्काल रोक लगाने और पूर्व मुख्यमंत्रियों से अब तक का आधा-आधा करोड़ तक का बकाया वसूलने के आदेश जारी कर दिए थे।
कोर्ट से ऊपर कोश्यारी !
इस फैसले के खिलाफ भगत सिंह कोश्यारी और विजय बहुगुणा हाई कोर्ट चले गए थे किंतु हाईकोर्ट ने उनकी एक नहीं सुनी और उन्हें पुराना बकाया चुकाने का आदेश जारी रखा।
यहां तक कि जब भगत सिंह कोश्यारी ने बकाया चुकाने की हैसियत न होने की बात कही तो फिर कोर्ट ने यहां तक चेतावनी दे डाली थी कि क्यों ना आप की संपत्ति की जांच करा ली जाए !
हाईकोर्ट में जब सरकार तथ्यों और तर्कों के आधार पर हार गई और पूर्व मुख्यमंत्री को दी जाने वाली सुविधाओं के औचित्य को सिद्ध नहीं कर पाई तो फिर त्रिवेंद्र सिंह रावत ने सिर्फ और सिर्फ अपने राजनीतिक गुरु भगत सिंह कोशियारी के लिए सभी पूर्व मुख्यमंत्रियों का बकाया माफ करने और सुविधाएं जारी रखने के लिए अध्यादेश ही ले आया था। इस बात को इसलिए भी बल मिलता है कि भगत सिंह कोश्यारी के अलावा बाकी सब ने कोर्ट में अथवा कोर्ट से पहले बकाया भरने की सहमति दे दी थी।
और सरकार की गलत मंशा इसी बात से जाहिर हो जाती है कि जब इस मामले को लेकर निर्णय किया गया तो फिर मीडिया से भी यह बात छुपा ली गई थी और कैबिनेट में गुपचुप निर्णय करके अध्यादेश को मंजूरी के लिए राजभवन भेज दिया गया था।
जब यह बात खुली तो पूरे प्रदेश में चौतरफा विरोध शुरू हो गया। इसके बाद सरकार ने यू-टर्न लेते हुए राज्यपाल के यहां गया हुआ अध्यादेश वापस मंगाया तथा इसमें पूर्व मुख्यमंत्रियों को दी गई सुविधाएं मात्र 31 मार्च 2019 तक जारी रखी जाने का प्रावधान जोड़ दिया।
अब एक तरह से इस अध्यादेश का कोई खास मतलब नहीं बनता क्योंकि 2019 के बाद पूर्व मुख्यमंत्रियों को यह सुविधाएं नहीं मिलेंगी।
अब इस अध्यादेश का सिर्फ यही मतलब निकलता है कि पूर्व मुख्यमंत्रियों का मात्र पुराना बकाया ही माफ किया गया है।
सरकार के कदम पीछे खींचने के पीछे तीन कारण रहे पहला कारण सरकार के इस फैसले का चौतरफा विरोध शुरू हो गया था।
दूसरा कारण यह रहा कि जिन मुख्य व्यक्ति और त्रिवेंद्र सिंह रावत के राजनीतिक गुरु भगत सिंह कोशियारी के लिए यह किया गया था उनका महाराष्ट्र के राज्यपाल पद पर पुनर्वास हो गया है।
तीसरा कारण यह रहा कि रूलक चेयर पर्सन अवधेश कौशल ने इस अध्यादेश को ही हाईकोर्ट में चुनौती देने की तैयारी कर ली।
कब क्या हुआ
13 अगस्त को पूर्व मुख्यमंत्रियों को सुविधाएं बहाल रखी जाने का गुपचुप निर्णय कैबिनेट में हुआ।
20 अगस्त को इस अध्यादेश को मंजूरी के लिए राजभवन भेजा गया।
5 सितंबर को भारी विरोध के कारण अध्यादेश संशोधन कर लिया गया।