कृष्णा बिष्ट
उत्तराखंड के भ्रष्ट आईएएस अफसर प्रमुख सचिव ओमप्रकाश तथा उनके चहेते अरुणेंद्र सिंह चौहान ने उत्तराखंड के एक ईमानदार लेखा अधिकारी जेपी भट्ट का वेतन पिछले 8 माह से रोका हुआ है।
जेपी भट्ट की खता सिर्फ इतनी थी कि उन्होंने लाख दबाव के बाद भी अपर मुख्य सचिव ओमप्रकाश द्वारा उत्तर प्रदेश से लाए गए एक अयोग्य तथा अवैध नियुक्ति पाए चंद्रभान सिंह का वेतन जारी नहीं होने दिया था और चंद्रभान को आखिरकार 8 महीने बाद वापस उत्तर प्रदेश जाना पड़ा था।
बस इस बात से खफा होकर पहले तो जेपी भट्ट का ट्रांसफर पिथौरागढ़ करा दिया गया और जब वह कोर्ट से स्टे ले आये तो फिर 8 महीने से उनकी तनखा ही रोक दी गई है।
आखिर प्रदेश में यह कैसा जीरो टोलरेंस है कि जो लोग ईमानदारी से कार्य कर रहे हैं, उनके साथ ऐसा सलूक हो रहा है और उत्तराखंड के मुखिया त्रिवेंद्र सिंह रावत मौन होकर धृतराष्ट्र की तरह देख रहे हैं।
सरकार जोर शोर से अनिवार्य रिटायरमेंट की स्कीम का ढोल पीट रही है, लेकिन यहां पर कार्य करने वाले अधिकारियों को हतोत्साहित करके वीआरएस के लिए मजबूर कर दिया जा रहा है, जबकि भ्रष्ट अफसर यहां जमकर ऊधम मचा रहे हैं।
गौरतलब है कि डेढ़ साल पहले ओम प्रकाश द्वारा उत्तर प्रदेश के एक बाबू चंद्रभान सिंह को ग्यारह सितंबर 2017 को उत्तराखंड लाकर चिकित्सा शिक्षा विभाग में प्रतिनियुक्ति के माध्यम से सहायक अभियंता अन्वेषक तकनीकी की कुर्सी पर बिठा दिया गया था।
नियम विरुद्ध हुई तैनाती तथा वेतन निकाले जाने के लिए वांछित दस्तावेज जमा न करने पर चंद्रभान सिंह की तनख्वाह रोक दी गई थी।
संभवत चंद्रभान सिंह के दस्तावेजों में कुछ गड़बड़ थी इसीलिए वह 8 महीने बाद 27-11-2018 को मजबूर होकर उत्तर प्रदेश वापस चले गए लेकिन न तो उन्होंने दस्तावेज जमा किए और न ही उनकी तनख्वाह निकल पाई थी।
यह आपत्ति लेखा अधिकारी जेपी भट्ट द्वारा लगाई गई थी। इस बात से नाराज होकर अपर मुख्य सचिव ओमप्रकाश, जिनके पास तब चिकित्सा शिक्षा विभाग था और अपर सचिव चिकित्सा शिक्षा तथा वित्त का कार्य देख रहे अरुणेंद्र सिंह चौहान ने मिलकर पहले तो जेपी भट्ट का ट्रांसफर किया और जब इसमें कोर्ट के द्वारा रोक लगा दी गई तो फिर जेपी भट्ट का वेतन ही रोक दिया गया जो कि 8 महीने गुजर जाने के बाद भी आज तक जारी नहीं हो पाया है।
गौरतलब है कि चिकित्सा शिक्षा विभाग के निदेशक डॉ आशुतोष सयाना ने उत्तर प्रदेश के सिविल डिपार्टमेंट को चिट्ठी लिखकर बताया है कि चंद्रभान सिंह उत्तराखंड से सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचा कर भाग गया है। जिसका अभी जवाब आना बाकी है।
इसके अलावा श्रीनगर मेडिकल कॉलेज के प्रधानाचार्य सीएमएस रावत ने भी शिकायत की है कि चंद्रभान सिंह ने वहां भी काफी नुकसान पहुंचाया है तथा यहां तक कि निर्माण कार्यों की एमबी बुक ही लेकर भाग गया है, किंतु उत्तर प्रदेश के इस व्यक्ति को उत्तराखंड से जाने के बाद अपर मुख्य सचिव ओमप्रकाश का इतना संरक्षण है कि उसका कुछ भी बाल बांका नहीं हुआ और ना ही उत्तराखंड को पहुंचाए गए नुकसान की भरपाई ही हो पाई है।
गौरतलब है कि अरुणेंद्र सिंह चौहान का भी चंद्रभान सिंह को बराबर संरक्षण था तथा ओमप्रकाश के कहने पर चंद्रभान सिंह की नियुक्ति अरुणेंद्र सिंह चौहान ने ही की थी।
अहम सवाल यह है कि सरकार वाकई जीरो टोलरेंस के प्रति संजीदा है तो ऐसे भ्रष्ट अफसरों के खिलाफ कोई कार्यवाही क्यों नहीं की जाती !