भारत में त्यौहार और उपहार एक दूसरे की पहचान बनते जा रहे हैं। आज के बदलते परिवेश में सौ रूपए से लेकर हजारों रूपए के उपहार बाजार में उपलब्ध हैं। हर व्यक्ति अपने सामर्थ्य के अनुसार अपने रिश्तेदारों को उपहार भेंट करते हैं। ऐसे में मांग के अनुरूप पूर्ति पूरी नहीं होती और मिलावट का खेल शुरु हो जाता है जिससे कई तरह की बीमारियां होने का खतरा रहता है।
यदि ऐसे में शुद्ध पहाड़ी संस्कृति से ओतप्रोत मिठाइयां खाने को मिल जाएं तो क्या कहना!
हर बार कुछ अलग करने से हमेशा चर्चाओं में रहने वाले समाजसेवी कविन्द्र इष्टवाल ने एक बार फिर अनूठी पहल की है। इस बार चौबट्टाखाल के विभिन्न गांवों की मदद लेकर एक ऐसा उपहार तैयार किया जिसे देखकर राज्यपाल मैडम बेबी रानी मौर्य भी खुश हो गई और उन्होंने उस उपहार को बनाने में सहयोग करने वाले जनसमूह के साथ-साथ कविन्द्र इष्टवाल के इस प्रयास की भूरि भूरि प्रशंसा की।
कविन्द्र इष्टवाल ने अपने इस उपहार को “समूण” नाम दिया। जिसमें बांस की एक कंडी है जिसके अंदर एक लोटे में गाय का शुद्ध घी, मंडुए का आटा, अरसे, रोटने और पहाड़ी अखरोट रखे गए हैं। इस समूण को ग्रामीण अंचल की महिलाओं के सहयोग से तैयार किया गया है जिसमें संस्कृति के संरक्षण के साथ-साथ स्वरोजगार सृजन का प्रयास किया गया है। कंडी बनाने वाले लोगों से लेकर, गाय का शुद्ध घी, अरसे, रोटने बनाने वाली महिला समूहों की दीपावली में भी खुशियां लाने में कविन्द्र इष्टवाल की इस पहल ने अहम् भूमिका निभाई।
इससे पूर्व वे प्लास्टिक मुक्त भारत की दिशा में कपड़े के दो हजार से ज्यादा थैले विभिन्न महिला समूहों के द्वारा तैयार करवा चुके हैं।