हल्द्वानी स्थित वन विकास निगम में सरकारी धन की हेराफेरी का चौंकाने वाला मामला सामने आया है। आरोप है कि कुछ अधिकारियों ने मिलकर एक गैर-मौजूद रेस्टोरेंट के नाम पर बिल तैयार किए और सरकारी खजाने से भुगतान लेने की कोशिश की। मामला सामने आने के बाद विभागीय स्तर पर प्राथमिक जांच की गई, जिसमें पता चला कि जिस रेस्टोरेंट के नाम पर बिल बनाए गए, वह शहर में कहीं भी मौजूद ही नहीं है।
शिकायतकर्ता ने एफिडेविट और सबूतों के साथ विजिलेंस को शिकायत भेजी थी। विजिलेंस ने शासन को पत्र लिखकर इस पर कार्रवाई की जानकारी मांगी। जब शासन ने खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन से रेस्टोरेंट का रिकॉर्ड तलाशा तो यह साफ हो गया कि ऐसा कोई रेस्टोरेंट हल्द्वानी में है ही नहीं—न पंजीकरण, न लाइसेंस और न कोई रिकॉर्ड।
सतर्कता अधीक्षक देहरादून द्वारा कराई गई जांच में खुलासा हुआ कि निगम के कुछ अधिकारियों ने मिलीभगत कर फर्जी बिल, गलत वाउचर और मनगढ़ंत दस्तावेज तैयार किए। जांच में यह भी पाया गया कि बिल में दिखाए गए भोजन संबंधी विवरण की पुष्टि भी संभव नहीं थी क्योंकि रेस्टोरेंट का अस्तित्व ही नहीं था। साफ है कि पूरा प्रकरण सरकारी धन का दुरुपयोग करने के लिए रचा गया था।
मामले की गंभीरता को देखते हुए शासन ने वन विभाग के संबंधित अधिकारियों से एक सप्ताह के भीतर विस्तृत रिपोर्ट मांगी है। साथ ही यह निर्देश दिया है कि कौन-कौन अधिकारी किस स्तर पर लापरवाही या भ्रष्टाचार में शामिल रहा, इसकी सूची तैयार की जाए। शासन का कहना है कि प्रथम दृष्टया बीएनएस की धारा 316, 335, 336, 338, 339 और 61 सहित भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम का उल्लंघन हुआ प्रतीत होता है। आरोप पुख्ता पाए जाने पर दोषियों पर एफआईआर दर्ज होगी और सख्त कार्रवाई की जाएगी।
हल्द्वानी का यह फर्जी बिल घोटाला अब बड़ा रूप लेता दिख रहा है। संकेत मिल रहे हैं कि आने वाले दिनों में विभाग के कई बड़े अधिकारियों के नाम भी जांच के दायरे में आ सकते हैं।


