मातृसदन का बाबा शिवानंद एक बार फिर प्रदेश सरकार के लिए मुसीबत बनने जा रहा है। 23 फरवरी से हरिद्वार में धरना देगा। यानी खनन सीजन में मातृसदन का धरना शुरू।
वैसे भी प्रदेश में वैध खनन नहीं होता है। अवैध खनन होता है। खनन अक्टूबर से लेकर जून तक होता है। हरिद्वार के भोगपुर, टांडा, कुंडी, राय घाटी इलाके में 100 से अधिक क्रेशर लगे हैं। लेकिन अधिकांश बंद हैं। पिछले दो साल से खनन बंद है। सूत्रों के मुताबिक कुछ क्रेशर अवैध खनन में जुटे हैं, जिनकी खनन, पुलिस और राजस्व विभाग से मिली भगत होती है। बाकी सारा माल सहारनपुर और अन्य स्थानों से आता है।
प्रदेश की गंगा समेत नदियों में आरबीएम तो भर कर आता है लेकिन उसका दोहन नहीं हो सकता। खनन पट्टे लेने वाले लोगों के करोड़ों रुपये रायल्टी-पैनाल्टी में ही स्वाहा हो गये।
आखिर मातृसदन हरिद्वार में ही गंगा को लेकर चिंतित होता है? वह भी वैध खनन पर। क्या मातृसदन सहारनपुर, पौंधा और हरियाणा के खनन माफिया के इशारे में काम करता है? खनन का सीजन आते ही मातृसदन का धरना शुरू हो जाता है।
सबसे बड़ी बात यह है कि मातृसदन अवैध खनन पर चुप्पी साध लेता है। जून माह तक लक्सर तक गंगा के किनारे गड्ढे बता देते हैं कि रात दस बजे से सुबह छह बजे तक लगातार अवैध खनन होता है। उन किसानों का क्या जिनके खेत गंगा के कारण कट गये? ये सवाल भी उठने चाहिए।
गंगा क्या सिर्फ हरिद्वार में ही है। गंगोत्री से से लेकर गंगा सागर तक 2525 किलोमीटर लंबी मातृसदन को नजर नहीं आती?
प्रदेश सरकार को मातृसदन की उच्चस्तरीय जांच करनी चाहिए कि आखिर बाबा हरिद्वार को ही गंगा क्यों मान लेता है। कानपुर में गंगा की हालत किसी नाले के समान है और इलाहाबाद में भी स्थिति अच्छी नहीं है। हरिद्वार तक गंगा फिर भी निर्मल है। अविरल गंगा अब कोई मुद्दा नहीं है। बाबा को चाहिए कि वो कानपुर में बैठे या इलाहाबाद में। तो गंगा को लेकर उसकी चिन्ता पता लग जाएगी।