मार्च 2019 में राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के पदों की विज्ञप्ति जारी की गई थी, जिनके साक्षात्कार 7 जून से 13 जून 2019 तक संपन्न करवाए गए। इन पदों के साक्षात्कार करवाने से पहले 25 अप्रैल 2019 को आपदा प्रबंधन विभाग ने मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक्जीक्यूटिव बाॅडी की बैठक करवाई थी।
इसमें यह निर्णय लिया गया कि राज्य में 2001 से कार्यरत आपदा प्रबंधन के प्रमुख संस्थान आपदा न्यूनीकरण एवं प्रबंधन केंद्र को राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण में विलय कर दिया जाए और आपदा न्यूनीकरण एवं प्रबंधन केंद्र में पूर्व से कार्यरत कार्मिकों को उनकी पात्रता और अनुभव के आधार पर राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के पदों की नियुक्ति में वरीयता प्रदान की जाए।
यह निर्णय एक्जीक्यूटिव बाॅडी में मुख्य सचिव द्वारा लिया गया और उस बैठक में आपदा प्रबंधन विभाग के सभी वरिष्ठ अधिकारी भी मौजूद थे। लेकिन साक्षात्कार के उपरांत जब प्राधिकरण के इन पदों के परिणाम घोषित किए गए तो वह चौंकाने वाले थे क्योंकि इसमें कंसलटेंट और प्लानर के पदों पर दो ऐसे लोगों का चयन कर दिया गया, जिनका कार्य अनुभव मात्र 6 वर्ष और 5 वर्ष था। जबकि इन पदों के लिए विभाग में पूर्व से ही कार्यरत एक कार्मिक ने भी आवेदन किया था, जिसका कार्य अनुभव 16 वर्ष था।
उक्त कार्मिक आपदा प्रबंधन विभाग के अंतर्गत 10 वर्षों से कार्यरत हैं लेकिन इन पदों की नियुक्ति में उक्त कार्मिक को वरीयता प्रदान नहीं की गई, जबकि 25 अप्रैल 2019 को शासी निकाय की बैठक में मुख्य सचिव सबकी सहमति से खुद यह निर्णय ले चुके हैं कि प्राधिकरण के पदों पर नियुक्ति में यदि कोई पूर्व से कार्यरत कार्मिक आवेदन करता है तो उसको वरीयता दी जाएगी।
अब यहां पर विचार करने वाली बात यह है कि शासी निकाय के अध्यक्ष भी मुख्य सचिव हैं और राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के मुख्य कार्यकारी अधिकारी सीईओ भी मुख्य सचिव ही हैं।
यहां पर सबसे ज्यादा हैरान करने वाली बात यह है कि एक्जीक्यूटिव बाॅडी की बैठक में मुख्य सचिव पूर्व से कार्यरत कार्मिकों के लिए नियुक्ति में वरीयता प्रदान करने का निर्णय लेते हैं और जब प्राधिकरण के पदों पर परिणाम घोषित किए जाते हैं तो विभागीय कार्मिक को वरीयता न देकर ऐसे लोगों का चयन कर दिया जाता है, जिनको आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में कार्य करने का अनुभव ही नहीं है और जिनका कार्य अनुभव मात्र 5 से 6 वर्ष है।
अब प्रश्न यह है कि विभागीय कार्मिक जिसको 16 वर्षों का कार्य अनुभव है और 10 वर्षों का आपदा प्रबंधन विभाग में कार्य करने का अनुभव है, ऐसे अनुभवी कार्मिक को चयन न करके गैर अनुभव वाले लोगों को चयन करने के पीछे क्या कारण है ! किसके इशारे पर यह सब कार्य किया जा रहा है !
यथा स्थिति देखकर तो यह समझ आ रहा है कि अधिकारियों द्वारा अपनी पसंद के लोगों को चयन करने के लिए यह सब खेल खेला गया है और एक्जीक्यूटिव बाॅडी के निर्णय की अवहेलना करते हुए इन पदों के परिणाम घोषित किए गए हैं।
आपदा प्रबंधन विभाग राज्य का बहुत ही महत्वपूर्ण विभाग है और इस विभाग में अनुभवी और जानकार कार्मिकों की आवश्यकता होती है, क्योंकि यह विभाग राज्य के लोगों की सुरक्षा और आपदा से निपटने के लिए जिम्मेदार है।
अब जब यहां गैर अनुभवी लोगों का चयन किया जा रहा है तो यह समझा जा सकता है गैर अनुभवी लोगों के द्वारा आपदा के दौरान किस प्रकार के कार्य किए जाएंगे।
इन दोनों पदों पर विभाग के एक ही कार्मिक द्वारा आवेदन किया गया था, जिसमें इन दोनों पदों में से किसी एक पद पर शासी निकाय के निर्णय के अनुसार और उक्त कार्मिक के कई वर्षों के अनुभव को ध्यान में रखते हुए उसका चयन किया जाना चाहिए था।
अब इन पदों पर चयन न होने पर उक्त विभागीय कार्मिक ने इसको अपने अधिकार का हनन समझते माननीय मुख्यमंत्री जी, मुख्य सचिव महोदय तथा सचिव आपदा प्रबंधन को इस विषय से अवगत करवा दिया है। अब देखना यह है कि जीरो टॉलरेंस की सरकार के मुख्यमंत्री इस प्रकरण पर क्या कार्रवाई करते हैं और राज्य के मुख्य सचिव क्या कार्रवाई करते हैं ! क्योंकि यहां पर मुख्य सचिव द्वारा लिए गए निर्णय की अवहेलना हुई है।
परिणाम घोषित करने में यह गलती अधिकारियों द्वारा अनजाने में हुई है या फिर जानबूझकर की गई है, इसका पता जल्द ही चल जाएगा।
यदि मुख्य सचिव नियमानुसार विभागीय कार्मिक को वरीयता देते हुए दोबारा परिणाम घोषित करते हैं तो यह भूल सुधार कही जा सकती है और यदि इस प्रकरण पर विभागीय अधिकारियों द्वारा और मुख्यमंत्री द्वारा कोई निर्णय नहीं लिया जाता है तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि यह सब खेल पूर्व नियोजित था, इसलिए अपने ही बनाए गए नियमों की धज्जियां उड़ा दी गई।
अपने अधिकारियों द्वारा न्याय न मिलने की स्थिति में उक्त कार्मिक द्वारा उच्च न्यायालय की शरण में जाने का निर्णय लिया गया है।
अब देखना यह है कि विभागीय स्तर से न्याय होता है या फिर यहाँ भी न्यायालय को ही निर्णय लेना पड़ेगा। वैसे भी यह प्रदेश मुकदमों और हड़तालों का प्रदेश बन चुका है।
इस प्रदेश में ज्यादातर निर्णय अब न्यायालय द्वारा ही लिए जा रहे है।अब इसे सरकार की नाकामी कहें या फिर अफसरों की नाकामी कहें।लेकिन यह तो विचारणीय है कि इस प्रकार के निर्णय राज्य के अन्य विभागों के लिए नजीर बनेंगे और यह कतई भी राज्य और राज्य के लोगों के हित में नहीं है।