बड़ी ख़बर: उत्तराखंड रियल एस्टेट में बढ़ती हलचल के बीच रेरा सख्त।उपभोक्ता हितों की सुरक्षा पर जोर
देहरादून: उत्तराखंड के शहरी इलाकों, खासकर राजधानी देहरादून में रियल एस्टेट क्षेत्र ने बीते वर्षों में जबरदस्त रफ्तार पकड़ी है। जमीन की प्लॉटिंग से लेकर ग्रुप हाउसिंग और कमर्शियल प्रोजेक्ट्स तक की बाढ़ आ चुकी है। लेकिन इस तेजी के बीच उपभोक्ताओं के हित अब भी उपेक्षित नजर आते हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए उत्तराखंड रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी (रेरा) ने एक अहम कार्यशाला का आयोजन किया।
कार्यशाला में मुख्य सचिव आनंद बर्धन, रेरा अपीलेट ट्रिब्यूनल के अध्यक्ष जस्टिस आरसी खुल्बे, रेरा अध्यक्ष रबिंद्र पंवार और सदस्य नरेश सी मठपाल सहित अन्य प्रमुख अधिकारी मौजूद रहे।
एजेंटों के पंजीकरण की चिंताजनक स्थिति
कार्यशाला में यह उजागर हुआ कि राज्यभर में हजारों प्रॉपर्टी डीलर सक्रिय हैं, लेकिन पंजीकरण की स्थिति बेहद कमजोर है। रेरा के आंकड़ों के अनुसार, पूरे प्रदेश में मात्र 452 रियल एस्टेट एजेंट ही पंजीकृत हैं। रेरा अध्यक्ष रबिंद्र पंवार ने इसे गंभीर विषय बताते हुए कहा कि प्रॉपर्टी डीलर उपभोक्ता से पहला संपर्क होते हैं, और यदि यही रेरा के दायरे से बाहर होंगे तो धोखाधड़ी के मामले बढ़ सकते हैं।
बिना पंजीकरण पर लगेगा भारी जुर्माना
रेरा ने साफ किया कि अपंजीकृत रियल एस्टेट एजेंटों पर रोजाना ₹10,000 का जुर्माना और कुल संपत्ति मूल्य का 5 प्रतिशत तक जुर्माना लगाया जा सकता है। रेरा अब इस नियम के सख्त अनुपालन के मूड में है।
बिल्डरों पर पारदर्शिता और वित्तीय अनुशासन का दबाव
कार्यशाला में यह भी बताया गया कि बिल्डरों के लिए कई नियम बनाए गए हैं, जिनका पालन अनिवार्य है। उदाहरण के लिए, फ्लैट बुकिंग के समय कुल मूल्य का 10% से अधिक नहीं लिया जा सकता। साथ ही, फ्लैट खरीदारों से ली गई राशि का 70% एक अलग बैंक खाते में जमा करना होगा, जिससे केवल इंजीनियर, आर्किटेक्ट और चार्टर्ड अकाउंटेंट की संयुक्त अनुमति से ही निकासी हो सकेगी।
केवल 165 प्रोजेक्ट्स को मिला कंप्लीशन सर्टिफिकेट
राज्य में रजिस्टर की गई 576 परियोजनाओं में से अब तक केवल 165 को ही कंप्लीशन सर्टिफिकेट मिल पाया है। विकास प्राधिकरण से यह प्रमाणपत्र तभी जारी होता है जब पूरी परियोजना स्वीकृत नक्शे के अनुरूप होती है। लेकिन कई बिल्डर निर्माण में नियमों की अनदेखी करते हैं, जिससे प्रमाणपत्र मिलने में अड़चन आती है।
विवाद सुलझाने के लिए वैकल्पिक मंच की जरूरत
रेरा अपीलेट ट्रिब्यूनल के अध्यक्ष जस्टिस आरसी खुल्बे ने सुझाव दिया कि रेरा में मामला दर्ज करने से पहले काउंसिलिंग या आपसी समझौते के लिए अलग मंच बनाया जाए। इससे समय, धन और कानूनी प्रक्रियाओं की बचत हो सकती है। रेरा अध्यक्ष पंवार ने इस सुझाव का समर्थन करते हुए बिल्डरों से भी इसी तरह की पहल की अपेक्षा जताई।
स्थानीय संसाधनों के अनुसार हो प्रोजेक्ट प्लानिंग
पैनल डिस्कशन के दौरान एसडीसी फाउंडेशन के अनूप नौटियाल ने इस बात पर जोर दिया कि बिल्डरों को परियोजनाएं बनाते समय स्थानीय जरूरतों और संसाधनों का ध्यान रखना चाहिए। उन्होंने उदाहरण दिया कि पानी की भारी किल्लत वाले इलाकों में स्विमिंग पूल जैसी सुविधाएं देना केवल दिखावा है।
रेरा की यह कार्यशाला न सिर्फ नियमों की जानकारी देने का जरिया बनी, बल्कि इससे यह भी स्पष्ट हुआ कि उपभोक्ता अधिकारों की रक्षा के लिए अब कड़े कदम उठाए जाएंगे। राज्य सरकार और रेरा की इस संयुक्त पहल से उम्मीद की जा रही है कि उत्तराखंड का रियल एस्टेट क्षेत्र अधिक पारदर्शी, जवाबदेह और उपभोक्ता केंद्रित बनेगा।