कल 2 मई को देहरादून के चमन विहार निवासी एक दुकानदार को कोरोना संक्रमण का केस प्रकाश में आया। एम्स ने इसकी ट्रेवल हिस्ट्री जारी की।
लेकिन एम्स द्वारा दी गई ट्रैवल हिस्ट्री को दरकिनार करके तथा मरीज के परिजनों से भी फोन नंबर होने के बावजूद जानने की अखबारों ने जहमत नहीं उठाई बल्कि सीधे लिख दिया कि यह मरीज कमला पैलेस के नजदीक मस्जिद में गया था ट्रैवल हिस्ट्री में यह लिखा था कि मरीज 24 तारीख अप्रैल को कैंसर की जांच कराने के लिए महंत इंद्रेश अस्पताल में गया था किंतु बड़े अस्पताल का नाम होने के कारण अखबारों ने इसका जिक्र ही गायब कर दिया। हालांकि दूसरे दिन अस्पताल और पुलिस प्रशासन ने अपने 23 कर्मियों को क्वारंटाइन कर दिया है।
जरा सोचिए यदि किसी मुद्दे पर अखबार और प्रशासन दुर्भाग्य से एक हो जाए तो भला जनता सच जानने के लिए कहां जाएगी !
यह थी मरीज की ट्रैवल हिस्ट्री
पहले से पेनक्रिएटिक कैंसर के शिकार यह दुकानदार अपने इलाज के लिए 28 अप्रैल को इलाज के लिए दिल्ली के अपोलो अस्पताल में गए और 30 तारीख तक वहीं रहे। अस्पताल में भर्ती होने पर 29 अप्रैल को अपोलो अस्पताल में उनका कोरोना का टेस्ट किया और उनकी रिपोर्ट पॉजिटिव आई। अगले दिन 30 को कोरोनावायरस की रिपोर्ट भी आ गई। उसी दिन वह दिल्ली से अपने घर देहरादून के लिए लौट आए, क्योंकि कोई भी अस्पताल उनको दिल्ली में क्वॉरेंटाइन करने के लिए तैयार नहीं था।
देहरादून आने के बाद उन्होंने अस्पताल को फोन किया और उन्हें फिर एम्स मे क्वारंटीन वार्ड मे भर्ती करा दिया गया। इनके क्लोज कांटेक्ट में इनका बेटा इनकी बिटिया और उनकी पत्नी थी।
पिछले 28 दिन की ट्रैवल हिस्ट्री के अनुसार ये 25 दिन पहले आईएसबीटी के रिलायंस ट्रेंड स्टोर में गए थे और 24 अप्रैल को महंत इंद्रेश अस्पताल में कैंसर से संबंधित चेकअप के लिए गए थे।
29 को यह हेल्थ चेकअप के लिए दिल्ली गए थे। पिछले 45 दिनों में यह किसी भी मस्जिद में नहीं गए। इन सभी के सबूत परिवार के पास हैं।
अब आते है मुख्य बात पर।
कोरोनावायरस के यह मरीज 24 अप्रैल को कैंसर से संबंधित जांच के लिए श्री महंत इंद्रेश अस्पताल में गए थे अस्पताल का पर्चा इसकी तस्दीक करता है और एम्स अस्पताल की मेडिकल रिपोर्ट इस बात की तस्दीक करती है कि यह 45 दिन में किसी भी मस्जिद में नहीं गए। इसके बावजूद अखबारों ने यह बात तो कहीं भी नहीं लिखी कि यह मरीज देहरादून के किसी भी अस्पताल में गए थे किंतु अखबारों ने यह जरूर लिख दिया कि यह मरीज कमला पैलेस के पास स्थित मस्जिद में गए।
एम्स का बुलेटिन
सवाल यह है कि क्या यह इसलिए लिखा गया कि ताकि इस मरीज को भी जमाती घोषित किया जा सके ! या फिर इस मामले को भी हिंदू-मुस्लिम करके थोड़ा सा सनसनीखेज बनाया जा सके !
इंद्रेश अस्पताल का पर्चा
पर्वतजन से बातचीत में कोरोना संक्रमित की पत्नी ने कहा कि “समाज में लोग बहुत अच्छे हैं। एक दूसरे की सहायता करते हैं लेकिन उन्हें पत्रकारों से बहुत शिकायत है जो कोरोनावायरस बीमारी को भी हिंदू-मुस्लिम करने के लिए आतुर दिखते हैं। एक समय आएगा कि समाज सारा एक हो जाएगा और इन पत्रकारों के लिए फिर विश्वसनीयता का सवाल खड़ा हो जाएगा।”
पर्वतजन ने अपनी तस्दीक में पाया कि महंत इंद्रेश अस्पताल ने भी अपनी ओर से यह जानकारी नहीं छुपाई 24 अप्रैल को जब कैंसर से संबंधित जांच के लिए या दुकानदार इंद्रेश अस्पताल में गया था तब तक उनके अंदर कहीं से भी कोरोना के संक्रमण के लक्षण नहीं थे इसलिए अस्पताल की भी कोई जिम्मेदारी नहीं बनती।
लेकिन इसके बावजूद अखबार वालों के द्वारा अस्पताल का नाम जानबूझकर छुपा देना इसी बात को इंगित करता है कि उनको अस्पताल से कुछ लालच है।
वही दूसरी ओर जानबूझकर उनके कमला पैलेस की मस्जिद जाने की बात को लिखकर अखबारों ने इस मामले को जमाती और जाहिलों से जोड़कर हिंदू मुस्लिम देने का प्रयास किया है।
महंत इंद्रेश अस्पताल के मेडिकल सुपरिटेंडेंट डॉ विनय राय ने बताया कि उन्होंने एक डॉक्टर सहित 23 कर्मियों के स्टाफ को 14 दिन के लिए क्वॉरेंटाइन कर दिया है।