आदेश करना और उसका पालन कराना , दोनों में ही अंतर होता है| ये बात दीगर है कि, यहां हाथी के दाँत, खाने के कुछ और दिखाने को कुछ है| वैसे भी ये कोई नयी बात नहीं है, पहले भी अनेकों आदेश धूल फाँक चुके हैं| हवा हवाई करने में जाता ही क्या है , फायदा ही फायदा है, कम से कम अपने अधीनस्थ और चहेतों को बचाने और ऐंठने का तो मौका मिलता है।
ऐसा ही एक मामला फिर प्रकाश में आया है जिसमें बड़े बड़े दोषी दिग्गजों को छोड़, छोटे विवशता से बंधे अधिकारियों व कर्मचारियों पर गाज गिरा दी गई तथा 30-32 करोड़ की बकाया वसूली फिर भी अधर में लटक गयी |
सूत्रों के अनुसार, बिजली क्रय- विक्रय के चर्चित प्रकरण में जिसके उजागर होने पर ऐसा लग रहा था कि,वास्तव में अब यूपीसीएल के घोटालेबाजों व भ्र्ष्ट अफसरों की शामत आ गयी है| उन्हें अब उनके असली ठिकाने (जेल) पहुँचा दिया जायेगा| परन्तु हमेशा की तरह विवश छोटे कर्मचारियों की बली चढ़ाकर चहेते दोषी मगरमच्छों पर चुप्पी साध ली गयी।
बताया जा रहा है कि, इस चुप्पी और संरक्षण की वजह डायरेक्टर स्तर व मुख्य अभियंता का ताना बाना है और इस मायावी नागपाश को समझ पाना शासन में बैठे, इन आला अफसरों के वश की बात कहाँ|
ज्ञात हो कि, 2016 में एनर्जी एक्सचेंज अथवा पावर ट्रेडिंग अर्थात बिजली क्रय-विक्रय के लिए यूपीसीएल ने एक अनुबन्ध गाज़ियाबाद की फर्म मैसर्स मित्तल पावर प्रा. लिमिटेड (MPPL) जिसका नया परिवर्तित नाम क्रिएट एनर्जी प्रा. लिमिटेड के साथ 28 सितम्बर 2016 को केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग (CERC) के 2009 की गाइडलाइन के अनुसार इंडियन इलेक्ट्रिसिटी एक्ट 2003 के अनुसार किया था।
उक्त ट्रेडिंग फर्म IEX और PXIL की मेंबर भी है। यूपीसीएल व एमपीपीएल (केपीआई) के मध्य हुए अनुबन्ध की बिलिंग और पेमेंट की शर्त के अनुसार केपीआई पर बाध्यता थी कि, वह बिलिंग के पाँच दिनों के अन्दर प्रत्येक दशा में यूपीसीएल को भुगतान करे,अपितु 18% सरचार्ज भी देय होगा।
किन्तु यहाँ यूपीसीएल के एमडी रहे मिश्रा, डायरेक्टर परिचालन अतुल अग्रवाल, डायरेक्टर वित्त नवीन गुप्ता, तत्कालीन मुख्य अभियंता कमर्शियल रहे अनिल कुमार सिंह (वर्तमान में प्रभारी निदेशक एच आर) सहित अन्य जिम्मेदार व नीतिनिर्धारण करने वाले एक षड्यंत्र के तहत काली कमाई के चक्कर में “अपना काम बनता, भाड़ में जनता” की कहावत के अनुसार अधीनस्थ छोटे अधिकारियों व कर्मचारियों से मनमर्जी से मूर्तरूप देने में लगे रहे और यूपीसीएल को चूना लगवाते रहे।
यही नही उक्त फर्म के अनुबन्ध जिसे तत्काल उल्लघन की दशा में निरस्त कर उसी समय वसूली करनी चाहिए थी| ऐसा न करके नियम, कानूनों में परिवर्तन कर उसी निरंतर बकायेदार को ही अनुचित लाभ पहुचानें में मशगूल रहे और उक्त रकम एक अक्टूबर 2016 से बढ़ती रही | तथा 5 जून 2020 तक लगातार 45-46 बिल साइकिलिंग में आउटस्टैंडिंग के बढ़ते नजरअंदाज किया जाता रहा |
तब यह रकम बढ़कर लगभग 61 करोड़ पर पहुँच गयी और ये सभी रखवाले यूपीसीएल को ही चूना लगवा कमाई करने में मस्त रहे। यूपीसीएल द्वारा केपीआई के विरुद्ध समय पर एक्शन न किया जाना और उसी से सांठगांठ बनाये रखने के लिए MOM भी साक्षात प्रमाण है। यदि निष्पक्षता से इस मामले पर संज्ञान लिया जाए तो पहले तीनों निदेशक और तत्कालीन एमडी व साथ ही पूरी कमेटी जो हिस्सा बटाने के चक्कर में आंख बंद कर sign करती है, ही पूर्णतया दोषी है।
मजे की बात तो यह भी है कि, ऑडिट व बोर्ड एवं चेयरमैन तक सभी की निरन्तर उदासीनता व लापरवाही को कौन कहे, ये भी तो ऑडिट व बोर्ड की मीटिंग के नाम पर गुलछर्रे ही उड़ाते हैं, तभी…?
उल्लेखनीय तो यहां यह भी है जिस-जिस छोटे अधिकारी ने फर्ज निभा मामले को उजागर किया उसे ही इन आकाओं ने ‘बन्दर खेत खायें और कुत्ते लटकाए जाएं” कि कहावत के अनुसार सूली पर चढ़वा दिया। इस दुष्कृत्य में भी निदेशक व विवेकहीन एमडी सम्मिलित रहे और जब सिसकियों की गूँज टीएसआर-1 के शासन तक पहुँची तथा जनता में फैली तो आनन फानन में फिर वही नाटक और भ्र्स्टाचार पर जीरो टॉलरेन्स की नौटंकी के तहत ‘दोषी बख्शे नहीं जाएंगे और जेल भेजे जाएंगे| एफआईआर दर्ज होगी जैसे फरमान व बक़तब्य दिए जाने लगे |
परन्तु वही ढाक के तीन पात बस फिर क्या एक आम उपभोक्ताओं पर दस-दस हजार की वसूली का तालिबानी फरमान जारी करने वाले और एई और जेई से वसूली और जुर्माने के आदेश करने वाले यहाँ भीगी बिल्ली क्यों बने या फिर इरादतन साजिश को अंजाम दिया जा रहा है| अथवा ये सभी दिग्गज निदेशक व एमडी व आला अधिकारी सक्षम और वफादार नहीं? क्या ये सभी तथ्य बिना टाइम पास के प्रभावी कार्यवाही के विषय नहीं बनते? वैसे अगर इस पूरे प्रकरण पर काला ही काला है यदि इसकी तह में जाने का कोई प्रयास करें तब!
भुगतान में डिफाल्टर को नियम विरुद्ध क्यूँ किया गया कंटिन्यू वह भी दो साल के लिए जबकि उसे ब्लैक लिस्ट कर तभी कार्यवाही करनी चाहिए थी।
क्या इस गंभीर वित्तीय प्रकरण को भी जांच और नियमानुसार व निगम हित को देखते हुए कार्यवाही की जाएगी के नाम पर लटकाया जाएगा ताकि इस दही का रायता बना ये शातिर भ्रष्ट और गुल खिला सके|
ज्ञात हो कि, केपीआई (MPPL) के इस गोलमाल के 8 माह पूर्व खुलासा होने पर यूपीसीएल के खैरख्वाह कहलाने वाले निदेशक फिर भी हरकत से बाज नहीं आये और बड़ी चालाकी व धूर्तता के साथ जो बकाये की लिस्ट पेश करते हैं उसमें उन 12-13 महीनों के मिले मासिक भुगतान को दर्शा कर विगत 45-46 महीनों के रुके भुगतान पर पानी डालने की फिराक में लग गए तथा बिना किसी प्रावधान की एक सोची समझी साजिश के तहत 32-33 पोस्ट डेटेड चेक्स ले लिए गए और वाहवाही भी लूटने का तथा सरकार की आंखों में धूल झोंकने का एक और दुष्कृत्य रच डाला गया।
केपीआई से लिये गए 24 पीडीसी में से शुरुआती 15 चेक्स मात्र 15 करोड़ के 19 मार्च तक कि तिथियों के, शेष लगभग 32 करोड़ के 6 चेक्स साढ़े सत्ताईस करोड़ की राशि के 30 मार्च 2021 के एवं तीन चेक्स लगभग साढ़े पांच करोड़ के 31 मार्च के बिना किसी शपथपत्र व बॉन्ड के ले लिए गए। अभी भी इनकी संयुक्त चतुरता थमी नहीं और आखरी समय पर केपीआई से एक अनुरोध पत्र बनवा प्रस्तुत कर दिया गया | ताकि टाइम सीक किया जा सके और स्करो एकाउंट या फिर जुलाई 2021 तक का समय और मांगे जाने की कहानियां चर्चा में आ रही हैं शायद इसी लिए 30 मार्च को जेब से कंगाल बन चुके तथा दिल से रईस यूपीसीएल ने साढ़े सत्ताईस करोड़ के चेक्स बैंक में नही लगाए और सहानुभूति के नाम पर रो दिए केपीआई को मल्हम देकर व जनता पर सितम ढाने में फिर महारत। यही हाल 31 मार्च के साढ़े पांच करोड़ के तीन चेकों का हुआ बताया जा रहा है।
जब इस मामले पर पारदर्शिता का ढोंग करने निगम के निदेशक वित्त से वास्तविकता जानने का प्रयास किया गया तो उन्होंने कुछ भी बताने से इंकार कर दिया और मीडिया प्रभारी बनाये गए निदेशक एच आर ए के सिंह का तो कहना ही क्या, उन्होंने तो यह कर असमर्थता व्यक्त कर दी कि, उनके संज्ञान में कुछ नहीं है| जबकि असली तौर पर वे भी तभी से इस प्रकरण में प्रत्यक्ष रूप से सम्मिलित व दोषी बताये जा रहे हैं जब चीफ इंजीनियर कामर्शियल थे। सारी ब्यूह रचना व नियमों को तोड़मरोड़ परिवर्तन करने में वर्तमान के ये तीनो निदेशक और पूर्व एमडी ही असल किरदार भी साफतौर पर नजर आ रहे हैं और निर्दोषों को लटकवाने व अपने को बचाने के इन माहिरों पर जिसकी मेहरबानी है| वह भी जग जाहिर है इसलिये भी है कि, जो निदेशक के साक्षात्कार में अयोग्य पाया गया हो उस चीफ ए के सिंह को निदेशक एच आर का प्रभारी बनाया जाना बजाए| इसके की महाशय के विरुद्ध अपने अधीनस्थों चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों के शोषण, उत्पीड़न व उन्हें भुखमरी की ओर धकेलने, बेघर करने एवं नौकरी लगाने के नाम पर फर्जीबाड़े जैसे गम्भीर गम्भीर आरोप भी लगते रहे हैं| ऐसे में विवादित को प्रभारी निदेशक एच आर बनाया जाना कहीं न कहीं सरकार व उसके शासन पर सवालिया निशान अवश्य लगाता है, इसी प्रकार निदेशक परिचालन को नियुक्ति का कार्यकाल पूरा होने के बाद भी पक्षपाती बख्शीश पर बख्शीश और दुधारू गाय बनाये रखने की ललक से ही आये दिन बंटाधार पर बंटाधार हो रहा है और सरकार बदनाम हो रही है क्योंकि कारनामे और गुल ये खिलाते, सेहरा टीएसआर के सिर पहले ‘वन’ और अब ‘टू’ के!
इस प्रकरण पर जब वर्तमान एमडी व अपर सचिव नीरज खैरबाल, आईएएस से वार्ता की गई तो उन्होंने बताया कि, निगम के हित में जो भी कार्यवाही उचित होगी अवश्य की जाएगी। जबकि इन जैसे कड़क और स्वच्छ छवि बाले एमडी व अपर सचिव भी शायद कहीं विवश हैं या फिर कुछ राइडर हैं! फिलहाल कुछ तो है..!
सचिव मैडम का तो कहना ही क्या वे केवल चाटुकार और लुटियन मीडिया से ही बात करना व मिलना पसन्द करती हैं, निष्पक्ष व निर्भीक और जनहित के बेबाक पत्रकार उन्हें रास नहीं आते | तभी तो हमसे मिलने की उन्हें फुर्सत ही कहाँ! और फिर मिलने से मना करवा दिया गया!
स्मरण दिलाना यहां उचित होगा कि, विगत चार वर्षों में सैकड़ों करोड़ के ऊर्जा निगमों व उरेडा के दर्जनों मामले उजागर हो चुके किन्तु एक भी घोटालों पर आज तक कोई भी संतोषजनक कार्यवाही यतार्थ में प्रदर्शित नही हुई| बल्कि विपरीत इसके पर्दाफाश करने वाले इस पत्रकार पर अप्रत्क्ष रूप से शिकंजा कसवाये जाने और हथकण्डे अपनाकर पड़ का दुरुपयोग करते हुए जिस तरह से लेखनी पर विराम लगाने के उद्देश्य से पुलिसिया दुरुपयोग के मामले भी किसी से छिपे नही हैं, पर शायद ये उनकी भूल ही साबित हुई कि मुद्दई लाख बुरा चाहे…! और विजय श्री सत्य की ही होती है।
देखना यहां गौरतलब होगा कि, अभी तक की बेदाग छवि वाले टीएसआर-2 अपने दामन को ऐसे आला अधिकारियों के चंगुल से बचा पाते हैं या नहीं| जो इस देवभूमि और ऊर्जा प्रदेश की जनता को गर्त में धकेलने में लगे हुए हैं। वास्तव में भ्रस्टाचार व भ्र्ष्टाचारियो से देवभूमि को मुक्त कर पाने में और भाजपा सरकार की प्रदेश में बिगड़ी छवि को कम समय में सुधार, सफल हो पाते हैं या नहीं या फिर पूर्व टीएसआर की भांति …वंशी बजाने और कागजी ढोल पीटने में ही…!
क्या टीएसआर-2 सरकार बिजली दरों की वृद्धि के बोझ को कोरोना काल के दौरान बचाने की ओर भी कोई सार्थक पहल करेंगे!क्या विद्युत नियामक आयोग भी चुपचाप इस लूट खसोट और जनधन की बर्बादी पर आँखे मूंदे तमाशा देखता रहेगा या फिर जनहित और जनधन के हित में स्व संज्ञान लेकर फर्ज अदा करेगा?