स्टोरी(कमल जगाती, नैनीताल):-
उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने प्रदेश की जेलों में सी.सी.टी.वी.कैमरे और दूसरी सुविधाओ को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की।
मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली खण्डपीठ में गृह सचिव रंजीत सिन्हा और जेल महानिदेशक पुष्कर ज्योति न्यायालय में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से उपस्थित हुए।
खण्डपीठ ने मामले को सुनने के बाद सरकार को निर्देश दिए है कि जेलों की सुविधाओ को लेकर एक कमेटी का गठन करें और कमेटी के सुझावो पर अमल करें। उसकी रिपोर्ट हर महीने के तीसरे हफ्ते न्यायालय में पेश करें।
न्यायालय ने जेलों में सुविधाओं को लेकर सरकार को अहम दिशा निर्देश दिए है :-
नई जेलों का निर्माण, गढ़वाल मंडल में ओपन जेल, जेलों की मरम्मत के लिए बजट, कैदियो के रोजगार के लिए फैक्ट्रियां, बच्चों के लिए स्कूल, जेलों में पर्याप्त स्टाफ की भर्ती, जेलों में परमानेंट मैडिकल स्टाफ, हाइजीनिक किचन व बाथरूम।
पूर्व में न्यायालय ने जेल माहानिदेशक व गृह सचिव को निर्देश दिए थे कि वे सभी जेलों का दौरा करें और उसकी रिपोर्ट फोटोग्राफ के साथ न्यायालय में पेश करें। आज उन्होंने शपथपत्र पेश किया जिसपर न्यायालय सन्तुष्ट नही हुई।
शपथपत्र व फ़ोटो देखने पर न्यायालय के सामने चौकाने वाले तथ्य सामने आए। हरिद्वार जेल की क्षमता 870 वर्तमान कैदी 1400 इनके रहने के लिए 23 बैरक है। यानी प्रति बैरक 65 कैदी । 65 महिला कैदियो के लिए एक बैरक। मेडिकल फेसिलिटी डॉक्टर को फोन कर बुलाया जाता है। खाना लकडियो में बनाया जाता है। सब जेल रुड़की में 200 की क्षमता वर्तमान में 625 कैदी 8 बैरक प्रति बैरक 75 कैदी और 18 महिला कैदी एक बैरक।
देहरादून जेल की क्षमता 518 वर्तमान में 1491 कैदी । 26 बैरक प्रति बैरक 54 कैदी। 87 महिला कैदी 2 बैरक। सब जेल हल्द्वानी की क्षमता 535 वर्तमान में 1736 कैदी।9 बैरक प्रति बैरक 180 कैदी। यहाँ रोटियाँ फर्श पर बनाई जाती है। नैनीताल जेल की क्षमता 70 वर्तमान में 174 कोई बैरक नही जमीन पर सोते है।अल्मोड़ा जेल की क्षमता 102 वर्तमान में 325 कैदी 6 बैरक प्रति बैरक 52 कैदी रह रहे है 11 महिला कैदी है।
जिला जेल चमोली 114 कैदी कोई बैरक नही टिन सेड में सोते है। पिथौडागढ़, बागेश्वर, उत्तरकाशी ,रुद्रप्रयाग व चंपावत की अपनी जिला जेल नही है। कोर्ट ने लोहाघाट की जेल के बारे में कहा कि कैदियो को बैरक में जानवरों की तरह ठूंस कर रखा है उनका खाना बाथरूम में बन रहा है।जिला जज को निर्देश दिए है कि इसका मौका मुयाना कर रिपोर्ट कोर्ट में पेश करने को कहा है।
कोर्ट ने अपने आदेश मे यह भी कहा है कि छोटे अपराध में सामील कैदियो को पैरोल पर क्यों नही छोड़ा जा रहा है। जिनकी सजा आधी से अधिक हो चुकी है जिनका आचरण अच्छा है उन्हें भी पैरोल पर छोड़ने का विचार करें। कोर्ट ने टिप्पणी करके कहा कि अभी हम 21 शदी में है जेलों की दशा देखर लगता नही जेलों की हालत शैलूलर जेल या अहमदनगर जेल से कम नही है। नैनीताल जेल व सब जेल हल्द्वानी हाइकोर्ट की नाक के नीचे है वहाँ की स्थित भी वैसी ही है।
कोर्ट ने नाराजगी ब्यक्त करते हुए यह भी कहा कि अधिकारी अपने बच्चों को 24 घण्टे इस हालत में वहां रखकर देखें । खण्डपीठ ने चेरापल्ली तेलांगना जेल का उदाहरण भी दिया जहाँ पर सारी सुविधाएं उपलब्ध है।मामले की सुनवाई मुख्य न्यायधीश आरएस चौहान व न्यायमुर्ति एनएस धनिक की खण्डपीठ में हुई। मामले के अनुसार सन्तोष उपाध्याय व अन्य ने अलग अलग जनहित याचिकाएँ दायर कर कहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में एक आदेश जारी कर सभी राज्यो से कहा था कि वे अपने राज्य की जेलों में सीसीटीवी कैमरे लगाएं और जेलों को मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराएं। राज्य में खाली पड़े राज्यों मानवाधिकार आयोग के खाली पड़े पदों को भरने के आदेश जारी किए थे लेकिन पाँच साल बीत जाने के बाद भी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन नही किया। याचिकर्ताओ का कहना है कि सरकार को निर्देश दीए जायँ कि वह सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी निर्देश का पालन करे।