नैनीताल। उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान में सफारी जिप्सियों के पंजीकरण और लॉटरी प्रक्रिया में स्थानीय लोगों के साथ हो रहे कथित भेदभाव पर कड़ा रुख अपनाया है। मुख्य न्यायमूर्ति विपिन सांघी और न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की खंडपीठ ने पार्क प्रशासन से पूछा है कि स्थानीय युवाओं को रोजगार मुहैया कराने के लिए नए वाहन मालिकों को लॉटरी में शामिल करने के क्या माप क्या तय किए गए हैं। कोर्ट ने कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के निदेशक को 10 दिन के अंदर पूरी जानकारी के साथ हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है।
बुधवार को हुई सुनवाई में पार्क निदेशक राहुल वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए कोर्ट के सामने पेश हुए। याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता ने दलील दी कि पार्क प्रशासन ने मनमाने ढंग से कुछ खास श्रेणी के जिप्सी मालिकों को ही पंजीकरण का लाभ दिया जा रहा है, जबकि पिछले दो साल से कम पुराने पंजीकृत वाहनों को लॉटरी में शामिल होने से वंचित रखा जा रहा है।
याचिकाकर्ता चक्षु करगेती, सावित्री अग्रवाल सहित अन्य स्थानीय निवासियों ने कहा कि उनके वाहन पूरी तरह वैध हैं, आरटीओ से सभी जरूरी परमिट मौजूद हैं और वे सभी शर्तें पूरी करते हैं, फिर भी उन्हें जानबूझकर बाहर रखा जा रहा है। इससे न सिर्फ पुराने जिप्सी चालक बेरोजगार हो रहे हैं, बल्कि नए स्थानीय युवाओं को भी रोजगार के अवसर नहीं मिल पा रहे हैं। याचिकाकर्ताओं ने इसे कोर्ट के पिछले आदेशों की अवहेलना बताया।
सरकारी पक्ष की ओर से कहा गया कि पंजीकरण केवल निर्धारित मानकों को पूरा करने वाले वाहनों को ही दिया गया है और जो मानक पूरे नहीं करते, उन्हें बाहर रखना उचित है।
खंडपीठ ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद पार्क निदेशक से स्पष्ट किया कि जब उद्देश्य स्थानीय लोगों को ही रोजगार देना है, तो फिर नए और पुराने पंजीकृत वाहन मालिकों के बीच भेदभाव क्यों? कोर्ट ने पार्क प्रशासन को पारदर्शी नीति अपनाने और सभी पात्र स्थानीय लोगों को समान अवसर देने का संकेत दिया।
अगली सुनवाई दस दिन बाद होगी।


