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खुलासा: दस वर्षों से होर्डिंग और यूनीपॉल के टेंडर में चल रहा खेल। नगर निगम को करोड़ो का फटका

November 27, 2023
in उत्तराखंड
खुलासा: दस वर्षों से होर्डिंग और यूनीपॉल के टेंडर में चल रहा खेल। नगर निगम को करोड़ो का फटका
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नगर निगम देहरादून में विगत दस वर्षों (2013-2023) से होर्डिंग और Unipole के टेंडर में गंभीर अनियमिताओं और सांठ गाँठ से संभावित कंपनियों के (Cartel)  300 करोड़ रुपए के धंधे पर सर्वस्व की जाँच की कांग्रेस माँग की हैं।

 

इस संभावित कार्टेल सिस्टम व टेंडर में हुई अनियमिताओं से नगर निगम देहरादून को करोडों रुपयों की हानि हुई और कई योग्य कंम्पनियों को गलत तरीके से टेंडर में भाग करने से रोका गया । 

टेंडर की शर्तों में न सिर्फ ” पार्टी के चयन ” का खेल हुआ मगर ” एक्सटेंशन ” के नाम पर करोड़ों रुपए के कार्य का अपने चहेतों को बिना – टेंडर आवंटन किया गया।

तकनीकी रूप से 2013 से लेकर 2023 तक 5 से 7 टेंडर होने चाहिए थे किन्तु सिर्फ 3 टेंडर हुए है और इन  सभी टेंडरों में सारा खेल इन्ही तीनों कंपनियों के ” संभावित कार्टेल ” को मिला है – जिनका नाम है- मीडिया 24/7 दिल्ली, Stimulus Advertising, और Catalyst Adv.।

प्रथम दृष्टया टेंडर की व्यवस्था बनायी जाती है फिर पार्टियों को टेंडर भरने से रोका जाता है, फिर कुछ पार्टियां कोर्ट जाति है फिर वो कोर्ट जाने के बाद बिना पैरवी के वो टेंडर 2–3 साल बाद निरस्त हो जाता है। इसमें ये टेंडर और ये पूरा कार्य है होर्डिंग और यूनीपोल का इसमें कुछ कंपनियां ने मिलकर नगर निगम का पूरा राजस्व लूट लिया है इसलिए इसकी जांच होनी बहुत जरूरी है। 

नगर निगम देहरादून 2013 से 2023 के बीच में जितने भी होर्डिंग्स के टेंडर निकाले उनमें उत्तराखंड की अधिप्राप्ति प्राप्ति नियमावली 2008 का भारी उलंगन हुआ है।

नियमावली में स्पष्ट उल्लेख है की किसी भी टेंडर कार्य को 2% से ज्यादा EMD न ली जाए अधिकतम किंतु नगर निगम ने इसको 10% किया जिससे कई Eligible bidders को रोका गया। 

ये घोटाला नियमों के हेर-फेर से कंपनियों को रोकने से शुरू हुआ और हाईकोर्ट के आदेशों को तोड़ मरोड़कर अपने हिसाब से इस्तेमाल करने से तक चलता रहा।

बहुत खींचा तानी करने के बाद जनवरी 2022 में नगर निगम एक टेंडर निकालता है, जिसमे अंततः मीडिया 24*7 फिर से 30 मार्च 2023 को सफल bidder साबित घोषित किया, जिसमे स्पष्ट लिखा है की टेंडर की शर्तो के अनुसार 3 दिन के अंदर उनको जमानत धनराशि जमा करनी है और एक एग्रीमेंट के लिए 2% राशि के स्टांप नगर निगम देहरादून में जमा कराने है किंतु *कई नोटिस देने के बाद भी उन्होंने यह कार्य नहीं किया और उसके बाद कंपनी अंतिम नोटिस दिया गया जिसके 3 दिन में कार्यवाही न होने के बाद नियमनुसार उनको ऑर्डर कैंसल होना चाहिए था और कंपनी ब्लैकलिस्ट होनी चाहिए थी पर चमत्कारिक रूप से उसके भी 2–3 महीने बाद 9 सितंबर 2022 को उसी कम्पनी को पुनः कार्यादेश जारी होता है* ।  इस खेल में जिसको ब्लैकलिस्ट और कार्यादेश निरस्त होना था, उसको नगर निगम देहरादून ने अपने ही टेंडर की सारे नियमों को दरकिनार करते हुए ऑर्डर पुनः दे दिया।

 

सबसे बड़ा घोटाला तो इन टेंडरों में माननीय हाई कोर्ट नैनीताल के 13.06.2017 Order के MisInterpretation को लेकर हुआ है जिसमे माननीय हाई कोर्ट नैनीताल ने स्पष्ट रूप से आदेश किया की इस टेंडर में जो भी कार्यवाही की जाएगी वो माननीय हाई कोर्ट के संज्ञान में लाने और अनुमति के लाने के बाद की जाएगी किंतु इन्होंने इसका उल्टा घुमाके उसको अपने हर आदेश में यह लिखा है की माननीय हाई कोर्ट ने आगे ये कार्यवाही करने ने मना कर दिया हैं और अपने चहेतों को दे दिया। यह केवल जनता के साथ धोखे का मामला नहीं है किन्तु यह न्याय पालिका के आंखों में धूल झोंक कर अपने चहेते को अनैतिक लाभ पहुंचाने का पूरे भारत में अपने आप में एक अनूठे  प्रकार का मामला है।

 

2019 में नगर निगम द्वारा एक सर्वे कमिटी बनाई गई इसने 325 अवैध होर्डिंग की रिपोर्ट दी किंतु आजतक यह नहीं बताया गया की अवैध होर्डिंग जनता में बेच कौन रहा था? क्या यही तीन कंपनियां थी या इनकी सहयोगी कंपनियां थी? और जो भी कंपनियां अवैध Hoarding बेच रहे थी उस पर नगर निगम ने क्या  कार्यवाही करी।

 

उल्लेखनीय है की 27 मार्च 2015 को भाजपा के ही कम से कम 10 पार्षदगणों ने इसमें जांच के लिए एक पत्र लिखा इसमें स्पष्ट रूप से कहा गया है की *3 बड़ी कंपनियों ने मिलकर पुल बनाकर ये कार्य किया है इससे नगर निगम को आर्थिक हानि होने की संभावनाएं है,* किंतु नगर निगम ने इन सब शिकायतों को नज़रंदाज़ करते हुए उन्ही कंपनीयों को काम दिया जिसके खिलाफ सबसे ज्यादा शिकायत थी। इन दस वर्षो में नगर निगम द्वारा किए गए इस अनैतिक कार्य से कुछ कंपनियों को लगभग 25 से 30 करोड़ रुपए का प्रतिवर्ष व्यापार का फायदा हुआ जो 10 साल में 250 से 300 करोड़ रुपए का व्यापार का अनुमान है और इससे नगर निगम देहरादून को 50 करोड़ से ज्यादा का राजस्व हानि होने का भी अनुमान है। नगर निगम अपने राजस्व को भी जमा करने में कई बार असफल रहा और अपने चहेतों के चेक जमा न करके उनको बार–बार उनको समय दिया गया। ऐसी कई अनियमिताओं खुलासा करने के साथ सामाजिक कार्यकर्ता व कांग्रेस नेता *अभिनव थापर ने कहा कि प्रथम दृष्टया कुछ कंपनियां मिलकर पिछले 10 साल से उत्तराखंड को लूट रही है किंतु 10 वर्षों- 2013 से 2023 में किसी भी  मेयर या नगर आयुक्त ने इनके खिलाफ कोई जाँच की बड़ी कार्यवाही नही करी है, इसीलिए कांग्रेस इसपर निष्पक्ष जांच की मांग करती है ।* नगर निगम के हर टेंडर में स्पष्ट उल्लेख है की कोई भी कार्टेल या सिंडिकेट की अनुमति नहीं होगी किंतु जिस तरीके से अब तक कार्यवाही हुई उससे संभावना है की कंपनियों ने मिलकर टेंडर भरे एक दूसरे को अनैतिक पर्दे के पीछे से support किया और यह खेल 2013 से 2023 तक चलता रहा तो उसमें प्रथम दृष्टया स्पष्ट रूप से Cartilisation होने की पूरे संभावना है।

 

 अब कांग्रेस पार्टी इस गंभीर भ्रष्टाचार पर जांच की मांग कर रही है जिसमें दोषि कंपनियों को ब्लैकलिस्ट कर और एक 3rd पॉर्टी (Audit Assessment) करवाया जाए, पिछले दस वर्षों के नगर निगम देहरादून में हुई राजस्व हानि को ब्याज सहित इन बड़ी कंपनियों से वसूला जाए।* अगर कांग्रेस की भ्रष्टाचार की जाँच की मांगो पर मेयर, सरकार या मुख्यमंत्री ने जल्द ही कोई सख्त कार्यवाही नहीं करी तो हम माननीय उच्च न्यायालय नैनीताल का भी दरवाजा खटखटाएंगे। कांग्रेस नेता और सामाजिक कार्यकर्ता अभिनव थापर ने आरटीआई के माध्यम से सारी जानकारियां एकत्रित करी एकत्रित करने के बाद मेयर नगर देहरादून सुनील उनियाल गामा जी से मुलाकात कर 11.08.2023 को पत्र दिया, फिर MNA और तत्पश्चात शासन को 12 सितंबर 2023 शासन को तथ्यों सहित शिकायत पत्र दिया गया। अब शासन ने 8 नवंबर 2023 को नगर निगम से आख्या मांगी है किन्तु नगर निगम की अंतिम बोर्ड बैठक 28 नवंबर 2023 को प्रस्तावित है और अभी तक इसको ठंडे बस्ते में डाल रखा है जिससे प्रतीत होता है इन कंपनियों की नगर निगम के गहरी सांठ-गांठ है इसीलिए टेंडर पर कोई कानूनी कार्यवाही हो नही रही है, मगर कांग्रेस पार्टी ये प्रयास करेगी की नगर निगम देहरादून में इतने बड़े घोटाले को जनता के बीच में लाया जाए और इसमें पारदर्शी कार्य किया जाए जिससे जाँच के बाद नगर निगम को हुई राजस्व की हानि को यह इन ठेकेदारों से ब्याज सहित वसूला जा सके।


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