कमल जगाती/नैनीताल
उत्तराखंड उच्च न्यायालय में ऋषिकेश की गंगा नदी के किनारे किये गए अतिक्रमण मामले में आज जिलाधिकारी पौड़ी धिराज गर्भयाल उपस्थित हुए। खण्डपीठ ने परमार्थ निकेतन के अधिवक्ता से अंडर टेकिंग लेते हुए कहा कि विवादित भूमि में किसी भी तरह का निर्माण नहीं हो और स्नानघाट में किसी तरह का ताला नहीं लगे । इसके अलावा मुख्य न्यायाधीश ने जिलाधिकारी को 6 जनवरी तक जांच कर विवादित भूमि का नक्शा और डिटेल बनाने को कहा है ।
मुख्य न्यायधीश रमेश रंगनाथन और न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खण्डपीठ ने अधिवक्ता और याचिकाकर्ता हरिद्वार निवासी विवेक शुक्ला की जनहित याचिका पर सुनवाई की। याचिका में आरोप लगाए गए कि ऋषिकेश के परमार्थ निकेतन स्वर्गाश्रम द्वारा गंगा किनारे सरकारी भूमि पर 70 मीटर में कब्जा किया गया है। शिकायत की गई कि गंगा नदी में दो पुलों का अवैध निर्माण कर नदी में एक मूर्ति और व्यवसायिक भवन का निर्माण किया गया है। निकेतन की तरफ से कहा गया कि 2.39 एकड़ भूमि में स्नानघाट, वाचनालय और पुस्तकालय बनाए गए हैं और इसके अलावा सारी भूमि आश्रम की है। परमार्थ निकेतन की भूमि में एक घर, आश्रम और एस.टी.पी.बना है।
दस्तावेजों में दिखा की सरकार ने आश्रम को 1975 में नोटिस देकर कहा था कि अगर वो 1976 तक पुस्तकालय नहीं खोलते तो वो भूमि को वापस ले लेंगे। न्यायालय ने कहा कि सरकारी भूमि में आप बिना अनुमति के कैसे घर बना सकते हो? आपकी लीज 1964 से 1978 में खत्म होने के इतने वर्ष बाद भी कोई लीज नहीं है।
न्यायालय ने जवाब नहीं देने पर पूर्व में जिलाधिकारी पौड़ी को कारण बताओ नोटिस जारी किया था। आज वो व्यक्तिगत रूप से उपस्थित हुए और न्यायालय को बताया कि वो छुट्टी पर थे। न्यायालय ने कहा कि पिछले 42 वर्षों से ना तो कोई लीज रिन्यू हुई है और न ही कोई कार्यवाही की गई है।
खण्डपीठ ने परमार्थ निकेतन के अधिवक्ता से अंडर टेकिंग लेते हुए कहा कि विवादित भूमि में किसी भी तरह का निर्माण नहीं हो और स्नानघाट में किसी तरह का ताला नहीं लगे।
इसके अलावा मुख्य न्यायाधीश ने जिलाधिकारी को 6 जनवरी तक जांच कर विवादित भूमि का नक्शा और डिटेल बनाने को कहा है। मामले में अगली सुनवाई 6 जनवरी 2020 को होनी तय हुई है।