उपनल व्यथा सीरीज की शुरुआत हम उपनल की शुरुआत और उसके पतन की कहानी समझने से शुरू कर रहे हैं।
उत्तराखंड पूर्व सैनिक कल्याण निगम लिमिटेड( उपनल )का गठन उत्तराखंड के भूतपूर्व सैनिकों और उनके आश्रितों को विभिन्न निजी और सरकारी संस्थानों में आउटसोर्स कर्मचारियों की पूर्ति करने के लिए किया गया था।
इसके पीछे एक बड़ा उद्देश्य यह था कि कम उम्र में ही रिटायर हो जाने वाले फौजियों और उनके आश्रितों को आर्थिक संबल मिल सकेगा।
उपनल के कर्मचारी उत्तराखंड के साथ ही दिल्ली मुंबई कोलकाता चंडीगढ़ आदि के विभिन्न केंद्रीय सरकारी तथा निजी संस्थानों में सुरक्षा से लेकर यथा योग्यता के पदों पर कार्यरत हैं।
पिछली सरकारों ने गैर फौजी पृष्ठभूमि के बेरोजगारों के लिए भी उपयोग के दरवाजे खोल दिए और विभिन्न सरकारी संस्थानों में बैक डोर से बेरोजगारों की नियुक्ति कर ली गई। जाहिर है कि इसमें प्रभावशाली नेताओं और अधिकारियों ने वोट बैंक रिश्वत तथा अन्य कारणों से चहेतों को नियुक्तियां दी। इन नियुक्तियों में न तो सब को समान अवसर दिए गए और न ही योग्यता का ध्यान रखा गया।
जिसकी जितनी जहां चली उसने वहां अपने अभ्यर्थियों को तैनात कर दिया। इससे एक ओर विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में लगे बेरोजगार नाराज हो गए तो दूसरी ओर सामान्य अभ्यर्थियों की अधिक नियुक्तियां होने से भूतपूर्व सैनिक संगठनों में भी विरोध के स्वर बुलंद कर दिए।
असली खेल शुरू
फिर यह निर्णय लिया गया कि उपनल से सिर्फ सैनिकों और उनके आश्रितों को ही रोजगार दिया जाएगा। बस यहीं से उपनल का चक्र उल्टा घूमना शुरू हो गया। इस आदेश के बाद से विभिन्न सरकारी विभागों में उपनल के माध्यम से नियुक्तियां पाने वाले पूर्व फौजियों और उनके आश्रितों के लिए तो दरवाजे बंद हो ही गए, साथ ही गैर फौजी बैकग्राउंड वाले उत्तराखंड मूल निवासियों के लिए भी दरवाजे लगभग बंद हो गए।
इस आदेश के बाद असली खेल शुरू हुआ। अब अलग-अलग सरकारी विभागों ने आउटसोर्सिंग के माध्यम से अधिकारियों ने अपने चहेतों को तैनाती देना शुरु कर दिया है। हालत इतनी अधिक खराब हो गई है यदि कोई अधिकारी अपने ऑफिस का बॉस है तो उसने अपने लड़के अथवा परिचित के नाम से ₹5000 का फॉर्म भरा कर प्लेसमेंट एजेंसी खुलवा ली है और एजेंसी के माध्यम से मनचाही नियुक्तियां कर रहा है।
उपनल के खतम होने मे किसका फायदा
उत्तराखंड में वर्तमान में 1 दर्जन से अधिक निजी प्लेसमेंट एजेंसियां सरकारी विभागों में आउटसोर्सिंग के माध्यम से कर्मचारियों को सप्लाई करने का काम कर रही है और उपनल हाथ पर हाथ धरे तमाशा देखने को मजबूर हो चला है।
उपनल पर चाहे लाख सवाल उठें, लेकिन यह एक अकाट्य सत्य है कि उपनल को सर्विस टैक्स के माध्यम से होने वाली आय से पूर्व फौजियों और उनके आश्रितों के लिए कई कल्याणकारी योजनाएं संचालित की जा रही थी। इन योजनाओं में फौजी आश्रितों के लिए विभिन्न रोजगारपरक कार्यक्रम और प्रशिक्षण के साथ साथ विभिन्न तरह की राहत और मदद भी दी जाती थी। जब कर्मचारी उपनल के माध्यम से न दिए जाकर निजी ठेकेदारों के माध्यम से दिए जाएंगे तो यह सर्विस टैक्स का पैसा फौजियों के लिए कल्याणकारी कार्यों में नहीं लग सकेगा और न ही दिया गया पैसा सरकार को मिलेगा।
उपनल ने अपनी घटते राजस्व को लेकर चिंता जताते हुए शासन को पत्र लिखा था किंतु शासन की मिलीभगत के चलते उपनल को इसका जवाब तक नहीं दिया गया। प्रमुख सचिव सैनिक कल्याण आनंदवर्धन तो उपनल से अछूत की तरह पल्ला झाड़ लेते हैं, वह उपनल को कोई भी सहयोग करने को सहमत नहीं दिखते।
पर्वतजन ने उनसे उपनल की उपेक्षा के बारे में बात की तो उन्होंने साफ कह दिया कि हर एक विभाग कहीं से भी कर्मचारी आउट सोर्स करने को स्वतंत्र है, पर वह इसमें कुछ नहीं कर सकते।
जाहिर है एक सरकारी संस्था को जानबूझकर खत्म करने के लिए छोड़ दिया गया है। क्योंकि इसी में अधिकारियों का “अंडर टेबल” फायदा है।
सरकार की एजेंसी दरकिनार
वर्तमान में देहरादून में तीन आउटसोर्सिंग एजेंसीज हैं, जिनसे सही तरीके से बेरोजगारों को विभिन्न विभागों में आउट सोर्स किया जा सकता है। उपनल के अलावा पीआरडी और होमगार्ड दो अन्य एजेंसी भी हैं। किंतु इन तीनों एजेंसियों को दरकिनार कर के अधिकारियों ने अपने स्वार्थ के लिए निजी आउटसोर्सिंग एजेंसियों से अनुबंध करके चहेतों को नियुक्तियां दे रखी हैं और कई नियुक्तियां तो सीधी अपनी मर्जी से आउट सोर्स की गई हैं। यह किसी एजेंसी के माध्यम से भी नहीं है।
निजी आउट सोर्स एजेंसियों में
गर्ग कांट्रेक्टर
उज्जवल कांट्रेक्टर
कनेक्ट वन सिक्योरिटी
ओरियन सिक्योरिटी
सी आई एस बी सिक्योरिटी
निशा सिक्योरिटी
एसआईएस सिक्योरिटी
अरुण एविएशन सिक्योरिटी
साइंटिफिक सिक्योरिटी
किंग सिक्योरिटी और
सेल्फ हेल्प जैसी एजेंसियां अधिक सक्रिय हैं।
वन विभाग के उदाहरण से स्थिति पर एक नजर
गर्ग कांट्रेक्टर तथा उज्जवल नामक एजेंसी ने वन विभाग में अपनी अच्छी पकड़ बना रखी है, तो सेल्फ हेल्प एजेंसी विद्युत विभाग में कर्मचारियों को सप्लाई करने का काम करती है।
वन विभाग में उज्जवल कॉन्टेक्टर के द्वारा दर्जनों लोगों की भर्तियां की गई है तथा गर्ग कॉन्ट्रैक्टर भी वन विभाग में बेरोजगारों को आउटसोर्स करने के लिए एक बड़ी एजेंसी है।
मजेदार बात यह भी है कि राजपुर रोड स्थित वन विभाग के मुख्यालय में एक दर्जन से अधिक परियोजनाओं तथा वन संरक्षकों के कार्यालय हैं।
अलग-अलग विभागों ने अपने-अपने ढंग से कर्मचारियों को विभिन्न एजेंसियों के माध्यम से अथवा सीधे तौर पर अपने कार्यालयों और घरों में नियुक्तियां दे रखी हैं तथा इनका कोई लेखा-जोखा एकमुश्त एक जगह पर नहीं है। अर्थात वन विभाग के मुखिया को भी यह जानकारी नहीं होगी कि उनके अधीन किस परियोजना अथवा वन संरक्षक ने कितने लोगों को आउट सोर्स के माध्यम से तैनात किया हुआ है।
उदाहरण के तौर पर मुख्य वन संरक्षक परियोजना के कार्यालय में 14 कर्मचारी आउटसोर्स किए गए हैं। इसमें से 5 कर्मचारी वर्ग कॉन्ट्रैक्टर के माध्यम से लगे हैं। एक पीआरडी के माध्यम से है तो 8 कर्मचारी उपनल के माध्यम से तैनात हैं।
वन विभाग के नमामि गंगे प्रोजेक्ट में 2 कर्मचारी पीआरडी से लगे हैं। दो उज्जवल नामक प्राइवेट एजेंसी के मार्फत लगे हैं तो 2 कर्मचारियों को सीधे भर्ती किया गया है।
प्रमुख वन संरक्षक के कार्यालय में भी 40 कर्मचारी उज्जवल कॉन्ट्रैक्टर के माध्यम से आउट सोर्स किए गए हैं।
मुख्य वन संरक्षक वन्यजीव के कार्यालय में 12 कर्मचारी उपनल के माध्यम से तैनात हैं तो 10 कर्मचारी गर्ग कॉन्ट्रैक्टर के माध्यम से तैनात किए गए हैं।
उत्तराखंड पावर कारपोरेशन लिमिटेड में सेल्फ हेल्प आउट सोर्स एजेंसी के माध्यम से सैकड़ों कर्मचारियों की तैनाती की गई है।
यह है नुकसान
पहला नुकसान यह है कि इससे एक ओर उपनल पीआरडी और होमगार्ड जैसी सरकारी एजेंसियों को सर्विस टैक्स का नुकसान हुआ है।
दूसर नुकसान यह है कि उपनल को मिलने वाले राजस्व से जो मदद पूर्व सैनिक आश्रितों को मिलती थी उस में भारी कटौती हो गई है।
तीसरा नुकसान यह है कि पूर्व सैनिकों को रोजगार मिलना लगभग उपनल के माध्यम से बंद हो गया है। निजी आउट सोर्स एजेंसियां पूर्व फौजियों को लेना पसंद नहीं करती।
चौथा नुकसान यह हुआ है कि निजी आउट सोर्स एजेंसियों के मार्फत बेरोजगारों का शोषण काफी अधिक बढ़ गया है। अब वह रोजगार नहीं, बल्कि मजदूरी कर रहे हैं। कुछ एजेंसियों के माध्यम से तैनात कर्मचारियों की यह भी शिकायत है कि एजेंसी का मैनेजर उनका ATM अपने पास रख लेता है और तनख्वाह मिलते ही एक निश्चित रकम नगद में अपने पास रखा लेता है।
उपनल पीआरडी और होमगार्ड जैसी संस्थाओं से बेरोजगार कर्मचारियों को आउट सोर्स करने के बजाए निजी एजेंसियों को खुली छूट दे दिए जाने से उत्तराखंड के युवा बेरोजगारों का शोषण काफी बढ़ गया है और इसके भविष्य में परिणाम भयावह हो सकते हैं।
पांचवा नुकसान यह है कि आउट सोर्स किए जा रहे कर्मचारियों की योग्यताओं का निर्धारण न होने से योग्य बेरोजगारों के हक समाप्त हो रहे हैं।
छठा नुकसान यह हो रहा है कि आउट सोर्स के माध्यम से तैनाती होने से विकलांग महिला अनुसूचित जाति जनजाति वर्ग के लोग नियुक्त नहीं हो पा रहे हैं। आउटसोर्सिंग में इनका कोटा खत्म कर दिया गया है पर्वतजन की “उपनल व्यथा- पार्ट वन” उपनल के बरअक्स कुकुरमुत्तों की तरह उगाए नई आउटसोर्सिंग एजेंसियों के मार्फत उत्तराखंड से बाहर लोगों की तैनाती किए जाने और उससे उत्तराखंड को हो रहे नुकसान पर फोकस है।
यदि सरकार ने इस पर निर्णय नहीं लिया तो अन्य विभाग भी निजी एजेंसियों से चहेतों को भर्ती करना शुरू कर देंगे और फिर स्थितियां और बदतर हो जाएंगी।
अगले अंक से आप उपनल कर्मियों हो रहे दुर्व्यवहार की व्यथा-कथा से रूबरू होंगे। आपके सुझावों का स्वागत है। उन्हें भी आगामी अंकों में स्थान दिया जाएगा। आप से अनुरोध है कि यदि आपको यह सीरीज पसंद आए तो इसे कमेंट तथा शेयर जरूर करें, ताकि समय रहते हमारे नीति-नियंता इस पर विचार करने को सहमत हों और हमारे राज्य के बेरोजगारों के हित में एक बेहतरीन पॉलिसी बना सके।