कृष्णा बिष्ट//
वर्तमान में DFO चंपावत A.K Gupta पर सप्लायर से प्रति टिन 3 रुपये का कमीशन मांगने का आरोप है, इस अवैध मांग का ऑडियो सामने आने से खलबली मची हुई है।
यह ठेकेदार बरेली का रहने वाला है तथा उसने वर्ष 2014 15 में 80-80 हजार टिन की सप्लाई की थी।इसका भुगतान नहीं होने पर वह डीएफओ से काफी अनुरोध करता है लेकिन डीएफओ कहता है कि अब 31 मार्च गुजर गया है इसलिए भुगतान होने में दिक्कत हो रही है ।
काफी अनुनय-विनय करने के बाद डीएफओ तैयार तो हो जाता है लेकिन भुगतान करने के एवज में कहता है कि आजकल 3 रूपए प्रति टिन का रेट चल रहा है। ठेकेदार इतना रुपए देने में असमर्थता जताता है ।लेकिन फिर थोड़ा एडजस्ट करने के बाद दोनों तैयार हो जाते हैं।
डीएफओ कहता है कि यदि हर डिपों का अलग-अलग बिल भेज दिया जाता है तो भुगतान हो सकता है।देखना यह है कि उच्चाधिकारी इस ऑडियो का संज्ञान लेते हैं या नहीं
यह काफी चर्चित डीएफओ है। जुगाड़ से चंपावत वन प्रभाग में दोबारा तैनाती लेकर 5-6 साल एक ही वन प्रभाग मे रहने का रिकार्ड भी इन्हीं के नाम है।
आरक्षित वन क्षेत्र में बिना वन भूमि हस्तांतरण के अवैध रूप से सडक़ बनाने तथा लीसा चोरी , अवैध पेड़ों का कटान व कमिश्नर कुमाऊं की मीटिंग में मोबाइल पर Candy Crush खेलने का कीर्तिमान भी इन्हीं के नाम हैं। यह उत्तराखंड के ऐसे पहले अधिकारी हैं, जिनकी वन संरक्षक के पद पर पदोन्नति होने के बावजूद उच्च न्यायालय नैनीताल से अपने खुद के ही पदोन्नति के खिलाफ स्टे ऑर्डर लाकर डीएफओ चंपावत के पद पर बने रहने का कीर्तिमान भी है ।
हालांकि जब पर्वतजन ने पूछा तो डीएफओ क्या कहता है जरा सुनिए,-”
मैने किसी का पेमेन्ट नहीं रोका है, जब पेमेन्ट ही नहीं रोका तो 3 रु. टिन मांगने का मतलब क्या बनता है । अगर कोई किसी की फ़ोन पर बातचीत को रिकॉर्डिंग कर एक- दो साल बाद सार्वजनिक करे तो उसका इन्टेन्सन समझा जा सकता है ।
चीफ़ के आदेशानुसार अब उत्तराखंड के बाहर से टिन नहीं ले सकते हैं, जब मैने उस से टिन लेने से मना किया तो वो ब्लैकमेलिंग पर उतर आया है। इस समय ट्रांसफर सीजन चल रहा है, लिस्ट भी निकलने वाली होगी तो तब इस को मुद्दा बनाया जा रहा है, इस प्रकरण में किसी विभाग के अंदर के किसी शख्स की भी मिलीभगत हो सकती है।”
अब मिलीभगत किसकी है या नही यह तो ठेकेदार और डीएफओ जाने।बहरहाल इस प्रकरण पर विभाग तथा मंत्रालय क्या एक्शन लेता है,यह देखने वाली बात होगी। क्योंकि कभी सालों में ऐसे सबूत जनता तक आ पाते हैं।