चौंकाने वाले हैं कुपोषण के शिकार बच्चों का आंकड़े।पूर्व उत्तरकाशी डीएम आशीष श्रीवास्तव के निजी प्रयासों से कुपोषण के खिलाफ चलाया गया था अभियान। खुद तीन अतिकुपोषित बच्चों को गोद लेने के साथ अन्य जिला स्तरीय अधिकारियों ने भी किया था अनुसरण।
गिरीश गैरोला
सीमांत जनपद उत्तरकाशी में कुपोषित और अति कुपोषित बच्चों के आंकड़े पर नजर डालें तो दैवी आपदा के बाद इनकी तादाद में लगातार ही बढ़ोतरी हुई है। मई 2017 के बाद अचानक पुरोला क्लस्टर में अति कुपोषित बच्चों का आंकड़ा बढ़ता दिखाई देता है, जबकि जनपद के भटवाडी क्लस्टर में मार्च 2017 के बाद से अचानक अतिकुपोषित बच्चों की तादाद बढ़ती दिखाई देती है। जिला कार्यक्रम अधिकारी बाल विकास के कार्यालय से प्रतिमाह शासन को इसकी रिपोर्ट भेजी जाती है। इसके बावजूद अचानक हुए इन परिवर्तन पर विभाग के अधिकारियों के पास कोई सटीक जबाब नहीं है और न कोई कार्य योजना। अक्टटूबर 16 से जून 18 तक के आंकड़ों को देखकर सहज ही अंदाज लगाया जा सकता है कि क्षेत्र विशेष में अति कुपोषित बच्चों की संख्या में अचानक वृद्धि हो रही है।
अक्टटूबर 16 से मई 17 तक जनपद के यमुना घाटी केे पुरोला , मोरी और नौगांव क्लस्टर में अतिकुपोषित बच्चों की तादाद सामान्य दिखाई देती है, जबकि जून 17 से पुरोला क्लस्टर में अति कुपोषित बच्चों की तादाद अचानक बढ़ने लगती है। वहीं मार्च 17 से जनपद के भटवाडी क्लस्टर में भी अतिकुपोषित बच्चों की तादाद अचानक बढ़ने लगती है। पूरे जनपद में अति कुपोषित बच्चों के आंकड़े पर नजर डालें तो अक्टूबर 16 में आंकड़ा 16 से सितंबर 17 में 50 हो जाता है।
जनपद उत्तरकाशी में जिला कार्यक्रम अधिकारी मोहित चौधरी प्रतिनियुक्ति पर अन्यत्र चले गए हैं, किंतु डीडी पावर अभी भी हैं, खुद ही संभाले हुए हैं।
ब्लॉक डुंडा के बाल विकास अधिकारी संगम सिंह को ही प्रभारी बनाकर मुख्यालय का दायित्व दिया गया है। प्रभारी अधिकारी संगम सिंह ने बताया कि प्रत्येक महीने की 5 तिथि को पोषण दिवस मनाया जाता है। इस दिन आंगनबाड़ी पर हर बच्चे का वजन लिया जाता है और उसकी ऊंचाई के अनुरूप ग्रोथ चार्ट से उसकी कैटेगिरी तय की जाती है।
उन्होंने बताया कि हरे शेड में आने वाले बच्चे सामान्य, पीले शेड में आने वाले बच्चे कुपोषित और रेड शेड में आने वाले बच्चों को अतिकुपोषित की श्रेणी में रखा जाता है। इन बच्चों की स्थित में सुधार के लिए अति कुपोषित बच्चों को ऊर्जा पैकेट खाने के लिए दिया जाता है, कुपोषित बच्चों को केवल सलाह दी जाती है।गौरतलब है कि कुपोषित बच्चों को सही समय पर निगरानी और सलाह न देने के चलते ही अचानक किसी इलाके में इनकी तादाद बढ़ने लगी है। यदि विभाग विभाग आंकड़े भेजने और कोरी सलाह से ऊपर उठकर कोई सकारात्मक कदम नहीं उठाता तो कुपोषित से अतिकुपोषित बच्चों का आंकड़ा और बढ़ने लगेगा।
बताते चलें कि पूर्व डीएम dr आशीष कुमार श्रीवास्तव द्वारा सरकारी योजनाओं के साथ निजी प्रयास इस क्षेत्र में किए गए थे। जिसके बाद न सिर्फ अतिकुपोषित बच्चों की दिनचर्या में बदलाव आया, बल्कि पूरे गांव और क्लस्टर में एक जागरूकता का भाव दिखाई दिया पूर्व जिलाधिकारी आशीष श्रीवास्तव ने खुद तीन कुपोषित बच्चों को गोद लिया था। इसके अतिरिक्त सभी जिला स्तरीय अधिकारियों को अपनी क्षमता के अनुरूप एक अथवा दो अति कुपोषित बच्चों को गोद लेने की सलाह भी दी थी। जिसका असर यह हुआ कि हर तीसरे महीने डीएम श्रीवास्तव और सभी अन्य जिला स्तरीय अधिकारी जब गोद लिए कुपोषित बच्चे के घर मिलने जाया करते थे तो अभिभावक पहले से ही बच्ची की साफ सफाई और उनके खानपान को लेकर अलर्ट रहने लगे थे। इस दौरान अधिकारी अपने संसाधनों से उन्हें न्यूट्रिन युक्त खाने के पैकेट दिया करते थे। डीएम श्रीवास्तव के ट्रांसफर के बाद अन्य अधिकारियों ने भी इस कार्य में रुचि लेना कम कर दिया और यह बेहतरीन परंपरा भी दम तोड़ने की कगार पर पहुंच गयी।