देहरादून के धर्मपुर इलाके से शुरू हुआ अतिक्रमण हटाओ अभियान पर यूं तो राजपुर रोड तक आते-आते ब्रेक तो ब्रेड तो लग ही गए थे, साथ ही आंच मलिन बस्तियों तक पहुंची तो कांग्रेस और भाजपा सहित यूकेडी भी एक सुर में मलिन बस्तियों को ना हटाए जाने पर एकजुट हो गई।
लिहाजा सरकार को नया अध्यादेश लाने का सबसे बेहतरीन मौका हाथ लग गया। आज कैबिनेट बैठक में कुल 12 विषयों पर चर्चा की गई, जिसमें से चार विषय तो स्थगित हो गए लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह रही कि राज्य के अंदर 2016 में बने एक्ट में संशोधन किया गया है और एक नया अध्यादेश लाया गया है।
इसमें यह व्यवस्था की गई है कि जब तक नई नियमावली नहीं बन जाती तब तक पुरानी नियमावली ही चलेगी और 3 साल के अंदर सरकार मलिन बस्तियों की समस्याओं का समाधान करेगी तब तक मलिन बस्तियों पर कार्यवाही रोक दी गई है। सरकार का कहना है कि नई नियमावली 3 साल तक बन जाएगी।
जाहिर है कि अतिक्रमण हटाओ अभियान के बाद से निकाय चुनाव हाथ से फिसलते देखकर सरकार के हाथ पांव फूल गए थे। मलिन बस्तियों के वोट बैंक के दम पर विधायक बने भाजपा के उमेश शर्मा काऊ से लेकर गणेश जोशी और कांग्रेस के सूर्यकांत धस्माना तथा राजकुमार जैसे नेता भी अतिक्रमण हटाओ अभियान के खिलाफ किसी भी सीमा तक जाने के लिए तैयार हो गए थे।
सरकार इस नए अध्यादेश के साथ बृहस्पतिवार को कोर्ट में जाकर अपनी बात रखेगी और 3 साल तक के लिए मलिन बस्तियों में अतिक्रमण हटाओ अभियान रोकने की रिपोर्ट सबमिट करेगी।
सरकार का कहना है कि मलिन बस्तियों के अलावा अन्य जगहों पर अतिक्रमण हटाओ अभियान जारी रहेगा। हालांकि जिन लोगों के अतिक्रमण हटा दिए गए हैं, उनमें सरकार के इस कदम से जरूर गुस्से का माहौल है। सरकार को हाईकोर्ट के आदेश के बाद की गई कार्यवाही के तहत 26 तारीख को कोर्ट को यह बताना है कि उन्होंने क्या कार्यवाही की है !
सरकार के इस कदम की संभावना पहले से ही जताई जा रही थी। अध्यादेश के बाद से यह बात साफ है कि देहरादून में स्मार्ट सिटी तथा रिवर फ्रंट डेवलपमेंट स्कीम जैसी महत्वकांक्षी योजनाओं को अब हाशिए पर डाल दिया जाएगा।
इसका एक कारण यह भी है कि पिछले डेढ़ साल में सरकार ने स्मार्ट सिटी को लेकर एक कदम भी आगे नहीं बढ़ाया है और स्मार्ट सिटी के लिए केंद्र सरकार से मिले 14 करोड रुपए में से एक ढेला भी खर्च नहीं किया है सरकार के इस अध्यादेश से यह भी साफ हो गया है कि रिस्पना को ऋषिप्रणा बनाने का अभियान महज एक-दो दिन पेड़ लगाने का सुर्खियां बटोरने वाला एक इवेंट बनकर रह जाएगा।
अध्यादेश के बाद यह माना जा रहा है कि सरकार निकाय चुनाव और लोकसभा चुनाव के बाद तक इस झंझट वाले मसले को टाल देना चाहती है। देखना यह है कि सरकार को चुनाव में मलिन बस्तियों से कितनी राहत मिल पाती है।