अवैध खनन के लिए लगभग एक करोड़ रुपए जुर्माना होने पर भी अपराधी किस तरह बच जाते हैं, उत्तराखंड स्टोन क्रेशर का वाकया इसका एक उदाहरण भर है
प्रमोद कुमार डोभाल
अफसर किस तरह से फर्जी आदेश कर खनन माफिया को लाभ पहुंचाते हैं, इसका ताजा उदाहरण नैनीताल का जिला प्रशासन है। अवैध खनन में पकड़े जाने पर उत्तराखंड स्टोन क्रशर को जुर्माना लगाया गया था। कारोबारी जुर्माने के खिलाफ जिलाधिकारी और कुमाऊं कमिश्नर से भी अपील करने पहुंचा, किंतु उसे राहत नहीं मिली, लेकिन नैनीताल जिला प्रशासन ने उसका जुर्माना अपने स्तर से माफ कर दिया। जब इस बारे में इस संवाददाता ने सूचना के अधिकार में जानकारी मांगी तो झूठी सूचना दे दी गई कि उक्त जुर्माना जिलाधिकारी के कहने पर माफ किया गया है, लेकिन जब जिलाधिकारी कार्यालय से पूछा गया तो जवाब मिला कि जिलाधिकारी स्तर से पैनल्टी को कम नहीं किया गया है।
हल्द्वानी में उत्तराखंड स्टोन क्रेशर को अवैध खनन करते हुए ८ जनवरी २०१३ को उपजिलाधिकारी और खान अधिकारी और वन विभाग के अधिकारियों ने अपने संयुक्त निरीक्षण के दौरान अवैध खनन ले जाते हुए पकड़ा था। २९९०० घनमीटर अवैध खनन पकड़े जाने पर उन पर ८० लाख ९८ हजार का अर्थदंड लगाया गया था। इस स्टोन के्रशर ने बहुत बड़े क्षेत्रफल में खनन भंडारण के स्थान पर बड़े-बड़े गड्ढे खोदकर यह खनन सामग्री अवैध रूप से निकाली थी, जबकि यह पूरी भूमि वन विभाग की थी। वन विभाग ने इस भूमि से खनन सामग्री की निकासी पर रोक लगा रखी थी।
नैनीताल की जिलाधिकारी निधिमणि त्रिपाठी ने २ मार्च २०१३ को आदेश दिया था कि एक महीने के अंदर जुर्माने की राशि कर दी जानी चाहिए।
साठ लाख का पता नहीं
जिलाधिकारी के आदेश पर स्टोन क्रेशर ने तत्काल २० लाख रुपए तो जमा कर दिए, लेकिन बाकी धनराशि जमा करने के बजाय इस आदेश के खिलाफ उत्तराखंड स्टोर के्रशर के मालिक ने कुमाऊं कमिश्नर की कोर्ट में अपील कर दी। तत्कालीन कुमाऊं कमिश्नर अवनेंद्र सिंह नयाल ने नैनीताल जिलाधिकारी द्वारा पारित आदेश में कोई हस्तक्षेप न करते हुए ४ मार्च २०१५ को क्रेशर मालिक की अपील खारिज दी थी। इसके बावजूद भी इस स्टोन क्रेशर से शेष ६० लाख ९८ हजार की धनराशि अब तक नहीं वसूली गई है।
जब इस संदर्भ में इस संवाददाता ने कार्यालय में पता किया तो यह बताया गया कि धनराशि जमा हो चुकी है, किंतु सूचना के अधिकार में जानकारी मांगे जाने पर सारी पोल खुल गई। न तो इस स्टोन क्रेशर का जुर्माना माफ किया गया था और न ही इसके खिलाफ वसूली की कोई कार्यवाही की गई।
आयुक्त कार्यालय से अपील खारिज होने के पश्चात उत्तराखंड स्टोन क्रेशर का निदेशक महेशचन्द्र शर्मा ने ९ अप्रैल २०१५ को उत्तराखंड शासन में अपर मुख्य सचिव औद्योगिक विकास के कार्यालय में अपील कर दी थी। नैनीताल के उपनिदेशक खनन के कार्यालय से प्राप्त सूचना के अनुसार ९ अप्रैल २०१५ को इस अपील की सुनवाई होनी थी, किंतु ६ मई २०१५ तक भी नैनीताल के जिलाधिकारी कार्यालय का यही जवाब था कि जिलाधिकारी के आदेश के विरुद्ध कोई भी आदेश पारित नहीं किया गया है।
अपर मुख्य सचिव के सम्मुख की गई अपील का क्या निस्तारण हुआ, इसकी कोई सूचना जिलाधिकारी नैनीताल के कार्यालय में उपलब्ध नहीं है।
इससे पहले भी वर्ष २०१०-११ में उत्तराखंड स्टोन क्रेशर पर ३८ लाख ६५ हजार ४८० रुपए का जुर्माना लगाया जा चुका है तथा इसी दौरान इस पर २५ हजार रुपए का एक और अर्थदंड आरोपित किया गया था।
जिलाधिकारी कार्यालय की जानकारी के अनुसार यह धनराशि १८ मई से ९ जून २०११ के मध्य जमा कर दी गई थी, लेकिन हकीकत में यह धनराशि जमा हुई भी या नहीं, इसकी जांच करने पर ही हकीकत का पता चल पाएगा।
सूचना के अधिकार में जानकारी मांगी तो झूठी सूचना दे दी गई कि उक्त जुर्माना जिलाधिकारी के कहने पर माफ किया गया है, लेकिन जब जिलाधिकारी कार्यालय से पूछा गया तो जवाब मिला कि जिलाधिकारी स्तर से पैनल्टी को कम नहीं किया गया है।