इन डाॅक्टरों को सरकार का जरा भी खौफ नहीं? मेडिकल पर चल रहे यह डाॅक्टर धडल्ले से निजी क्लिीनिक में देख रहें है मरीज?सरकारी नौकरी में होते हुए निजी क्लिीनिक खोलकर बैठे हैं ये डाॅक्टर
देहरादून। धरती का भगवान कहे जाने वाले डॉक्टर को मरीजों की तकलीफ से कोई वास्ता नहीं रह गया है। उनका पूरा ध्यान सिर्फ अपनी जेबें भरने में लगा हुआ है। उत्तराखंड स्वास्थ्य विभाग की लचर कार्यप्रणाली का फायदा कुछ डाॅक्टर जमकर उठा रहे हैं। आज बात ऐसे ही दो डाॅक्टरों की, जिनका अन्य डाॅक्टरों की तरह पिछले साल तबादला किया गया था। जिन डाॅक्टरों के तबादले हुए उनमें डाॅ ऋचा रतूड़ी और डाॅक्टर महेश सैनी भी शामिल थे। डाॅक्टर ऋचा रतूड़ी का तबादला संयुक्त चिकित्सालय ऋषिकेश से जिला चिकित्सालय, रूद्रप्रयाग हुआ। डाॅक्टर महेश सैनी का तबादला भी संयुक्त चिकित्सालय, ऋषिकेश से जिला चिकित्सालय चंपावत में हुआ। तबादले की बाद से यह दोनों डाॅक्टर ज्वाइन करने के साथ ही मेडिकल लीव पर चले गए। यहां तक तो सब ठीक है। डाॅक्टर को मेडिकल लीव लेने का पूरा अधिकार है। लेकिन असली कहानी यहां से शुरू होती है, मेडिकल लीव पर चल रहे इन दोनों ही डाॅक्टरों ने संयुक्त चिकित्सालय ऋषिकेश के सामने ही अपने निजी क्लीनिक खोल कर उसमें मरीज देखने शुरू कर दिए। जबकि सरकारी आदेशों में साफ है कि सरकारी सेवा में रहते हुए कोई भी डाॅक्टर खुद के नाम से निजी क्लीनिक नहीं खोल सकता है। जबकि यह दोनों डाॅक्टर अभी भी सरकारी सेवा में हैं और सरकार द्वारा दिए जाने वाले वेतन भी ले रहे हैं या मेडिकल खत्म होने का बाद पूरा वेतन लेंगे।
डाॅ ऋचा रतूड़ी ने सरकारी सेवा में होते हुए खोला निजी क्लीनिक
जरा ध्यान से देखिए इस बोर्ड को। संयुक्त चिकित्सालय ऋषिकेश के सामने सड़क पार लगे इस बोर्ड पर लिखा है- डाॅक्टर ऋचा रतूड़ी, मिलने का समय सुबह 9 से दिन के 1.30 बजे तक, सोमवार से शनिवार।
डाॅक्टर ऋचा रतूड़ी सरकारी सेवा में हैं और रूद्रप्रयाग अस्पताल में तैनात हैं। सरकार ने पिछले साल संयुक्त चिकित्सालय ऋषिकेश से इनका तबादला रूद्रप्रयाग जिला अस्पताल में किया। ऋचा रतूड़ी ने रूद्रप्रयाग जिला अस्पताल में ज्वाइन तो किया लेकिन ज्वाइन करने के साथ ही एक लम्बे मेडिकल अवकाश की चिट्ठी चिकित्सा अधिकारी को थमा दी।
यहां तक तो सब ठीक था लेकिन अवकाश पर जाने के बजाय यह खुद का क्लीनिक खोल कर बैठ गई। मेडिकल अवकाश पर चल रही डाॅक्टर ऋचा रतूड़ी सुबह 9 से दिन के 1.30 बजे तक, सोमवार से शनिवार तक धडल्ले से मरीज देख रही हैं। मरीज का पर्चा भी इस बात की पुष्टि कर रहा है कि 400 रूपये हर मरीज से परामर्श फीस लेकर वह सरकारी सेवा में होते हुए भी निजी क्लीनिक खोलकर मरीज देख रही हैं। न इन्हे स्वास्थ्य महकमे का डर है और न सरकार का। अगर होता तो इन्हें इस बात की परवाह जरूर होती कि सरकारी सेवाओं में होते हुए अपना निजी क्लीनिक नहीं खोल सकती हैं। सरकारी सेवा से इस्तीफा देने के बाद ही वह अपना क्लीनिक खोल सकती हैं। गौर करने वाली बात यह है कि डा ऋचा रतूड़ी की सरकारी सेवाओं में पहली पोस्टिंग संयुक्त चिकित्सालय ऋषिकेश में ही हुई थी और पहली बार इनका तबादला मैदान से पहाड़ में हुआ था। अब आप इस बात का अंदाजा खुद लगा सकते हैं कि यह अपनी सेवाओं को लेकर कितना संवेदनशील हैं।
डाॅ महेश सैनी ने भी खोला हुआ है अपना निजी क्लीनिक
ऐसे ही एक और डाॅक्टर है डाॅ महेश सैनी। डाॅक्टर महेश सैनी का तबादला भी संयुक्त चिकित्सालय ऋषिकेश से जिला अस्पताल चंपावत में किया गया। लेकिन यह डाॅक्टर सहाब भी सिर्फ ज्वाइनिंग के लिए चंपावत जिला अस्पताल गए और ज्वानिंग के बाद से ही लगातार मेडिकल पर चल रहें हैं।
मेडिकल अवकाश पर चल रहे डाॅ सैनी ने भी अपना निजी क्लीनिक संयुक्त चिकित्सालय ऋषिकेश के सामने खोला हुआ है और रोजाना धडल्ले से मरीज देख रहे हैं। यह भी सुबह 9.30 बजे से दिन के 2.00 बजे तक रोजाना मरीज देख रहें हैं। निजी क्लीनिक के बाहर लगा इनका बोर्ड और परामर्श पर्चा इस बात की पुष्टि कर रहा है कि यह वही महेश सैनी हैं।
सुलगते सवाल
बड़ा सवाल यह है कि चिकित्सा अवकाश यानि मेडिकल लीव होने के बावजूद यह दोनों डाॅक्टर बिना किसी डर के बेहद आराम से अपना क्लीनिक चला रहे हैं, और मेडिकल खत्म होने के बाद मेडिकल फिटनेस प्रमाण पत्र जमा कर अपना पूरा वेतन भी निकाल लेेगें। जैसा कि सेटिंग-गेटिंग के खेल से हर विभाग में होता है। अब एक बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या ईश्वर की पदवी पा चुके डॉक्टरों के लिए ये कृत्य उचित है? डॉक्टरों पर सरकार कोई कार्यवाही करेगी या नही ये तो वक्त ही बताएगा!
अधिकारियों के बयान
रूद्रप्रयाग जिला चिकित्सालय के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डा दिनेश सेमवाल के मुताबिक अस्पताल में डाॅक्टरों का भारी टोटा है। डाॅक्टर ऋचा रतूड़ी ज्वाइनिंग के बाद से मेडिकल लीव पर चल रही हैं। इसके साथ ही कुछ इएमओ भी लम्बे समय से गैरहाजिर चल रहें हैं।
चंपावत जनपद के मुख्य चिकित्साधिकारी डा मदन सिंह बोरा ने बताया कि जनपद के साथ ही जिला अस्पताल में डाॅक्टरों की भारी कमी है। जिला अस्पताल में 02 डाक्टर मेडिकल लीव पर हैं। जिनमें डाक्टर महेश सैनी और डाॅ अभिलाषा कोहली शामिल हैं।
“सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं में रहते हुए निजी क्लीनिक खोलकर या फिर बोर्ड लगाकर प्राइवेट प्रैक्टिस करना गैरकानूनी है। ऐसे डाॅक्टरों के खिलाफ यदि विभाग के पास कोई भी शिकायत आती है, तो विभागीय नियम अनुसार सख्त कार्यवाही की जायेगी।”-अर्चना श्रीवास्तव, स्वास्थ्य महानिदेशक, उत्तराखंड।
क्या है नियम
1-निजी प्रैक्टिस सिर्फ शासकीय कर्तव्य की अवधि के बाद ही की जा सकती है।
2-विभाग के अंर्तगत कार्यरत शासकीय चिकित्सक अपने निवास पर निजी प्रेक्टिस के अंर्तगत सिर्फ परामर्श सेवाएं ही दे सकते हैं।
3-शासकीय चिकित्सक खुद के नाम या फिर अपने किसी परिजन के नाम से कोई क्लीनिक व नर्सिंग होम संचालित नहीं कर सकते।
4-किसी भी निजी अस्पताल में जाकर प्रैक्टिस करने की अनुमति नही है।
मरीजों को ये होता है नुकसान
शासकीय चिकित्सक जब प्रायवेट अस्पताल चलाते है तो उनका पूरा ध्यान अपने निजी अस्पताल पर रहता है। इस स्थिति में प्राथमिकता बदल जाती है। नतीजतन सरकारी अस्पताल में आने वाले मरीजों को इसका खामियाजा उठाना पडता है।